1999 में कई अन्य पार्टी नेताओं के समर्थन के आश्वासन के बावजूद लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव हारने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार गिर गई। महज एक वोट ने वाजपेयी सरकार की किस्मत का फैसला कर दिया और लोकसभा अध्यक्ष की ताकत को उजागर कर दिया। यह स्पीकर का वोट नहीं था, बल्कि उनका निर्णय था जिसके कारण सरकार गिर गई। स्पीकर की शक्ति लोगों के मन में वापस आ गई है क्योंकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) दलों की नजर इस पद पर है।
खबरों के मुताबिक, एनडीए के दूसरे सबसे बड़े घटक तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने स्पीकर का पद मांगा है। संयोगवश टीडीपी के अध्यक्ष थे जो 1999 में वाजपेयी सरकार के पतन में सहायक साबित हुए थे।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 71 मंत्रियों के साथ अपने रिकॉर्ड लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए पद की शपथ ली है। पोर्टफोलियो भी आवंटित कर दिए गए हैं। अगर अब भी कोई सस्पेंस है तो वो ये कि लोकसभा स्पीकर का पद किसे मिलता है। बीजेपी को गठबंधन के समर्थन से सरकार चलानी होगी, स्पीकर का पद और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 240 सीटें जीतीं और 272 के आधे आंकड़े से पीछे रह गई। यह पीएम मोदी के पहले और दूसरे कार्यकाल से बहुत अलग है, जब बीजेपी के पास लोकसभा में अपना बहुमत था। 1999 में भी यही स्थिति थी जब अटल बिहार वाजपेई प्रधानमंत्री थे, भले ही भाजपा की ताकत काफी कम थी। ऐसे में स्पीकर की भूमिका अहम हो गई। ओडिशा कांग्रेस नेता गिरिधर गमांग द्वारा डाले गए एक वोट से सरकार गिर गई। यह तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी थे, जिन्होंने कुछ दिन पहले उड़ीसा (अब ओडिशा) के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बावजूद गमांग को वोट देने की अनुमति दी थी।
यदि गमांग को वोट देने की अनुमति नहीं दी गई होती तो समर्थन और खिलाफ के वोट एक समान होते। विश्वास प्रस्ताव पर अंतिम वोट एनडीए के पक्ष में 269 और विपक्ष में 270 वोट पड़े। एक वोट के कारण सरकार बर्खास्त हो गई। उनके निर्णय और विवेकाधीन शक्ति के कारण वाजपेयी लोकसभा में विश्वास मत हारने वाले पहले प्रधान मंत्री बने। एन चंद्रबाबू नायडू के आग्रह पर 1998 में टीडीपी के बालायोगी को लोकसभा अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। पच्चीस साल बाद ऐसी खबरें आ रही हैं कि टीडीपी प्रमुख नायडू एक बार फिर पार्टी के लिए लोकसभा अध्यक्ष का पद चाह रहे हैं।