

अनूप गुप्ता
जनता को सांकेतिक, काल्पनिक व प्रतीकात्मक राहत प्रदान करने व ठग रूपी दीमक से सिस्टम की सुरक्षा एवं सतर्कता का अहसास कराने के लिए करोडों के अपव्यय से चुनिंदा चौराहों, ब्लॉक, खासकर तहसीलों एवं कप्तान जिलाधिकारी कार्यालयों में लगाई गई होर्डिंग व अखबारों-न्यूज चैनल के विज्ञापन राहत देते कम और मुंह चिढ़ाते ज्यादा नजर आते हैं। उल्टे अकबर का दीया व बीरबल की हांडी जैसी कथा का एहसास कराते हैं। कुछ पीड़ितों व उनके पैरोकारों ने संघर्षों शक्ति कलयुगे व संकल्पे साधुयति विजयम् की तर्ज पर संकल्प लिया है शाइन सिटी के नाम से किए गए प्रदेश के सबसे बड़े घोटाले, करीब तीन लाख लोगों के सपनों के हत्यारे व 64-65 हजार करोड़ रुपए की ठगी के आरोपी राशिद नसीम के प्रत्यर्पण का।
उनका संकल्प है कि चाहे भगोड़ा दुबई में बैठा हो या दुनिया के किसी भी कोने में सुप्रीम कोर्ट तक जाऊंगा, उसे भारत लेकर आऊंगा। डंके की चोट पर बेनकाब करूंगा। परत दर परत खुलासा करूंगा। इसी कड़ी में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ व न्यायमूर्ति एके सिंह देशवाल की खंडपीठ ने ठगी के मुख्य आरोपी व एमडी राशिद के प्रत्यर्पण की कवायद के बारे में केंद्र सरकार से हाल ही में हलफनामा दाखिल करने को कहा है। उन्होंने यह आदेश प्रकाश चंद्र तिवारी की याचिका पर दिया है। साथ ही अर्जी निस्तारित करने व पूर्व में आदेश के अनुपालन में की गई कार्यवाही की रिपोर्ट भी पेश करने को कहा है।
इतना ही नहीं, धोखा खाए पीडितों व निवेशकों को भी बड़ी राहत दी है। अब पीएमएलए की विशेष अदालत में निवेश की गई रकम की वसूली के लिए वे दावा पेश कर सकेंगे। इससे पहले एक जुलाई 2024 के अंतरिम आदेश में कोर्ट ने सिर्फ याचियों को ही दावा पेश करने की अनुमति दी थी। अब कोई भी निवेशक विशेष अदालत में दावा पेश कर सकेगा, चाहे वह हाईकोर्ट आया हो या नहीं। अंतरिम आदेश का लाभ सभी को समान रूप से मिलेगा। यह आदेश भी उक्त जजों ने तिवारी की ही याचिका पर दिया है।
दृष्टांत न्यूज इस घोटाले के कई लाख पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए शातिर ठग व नटवर लाल के खिलाफ सीरीज चलाएगा। उसकी कुंडली खंगालने वाले हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सत्येंद्र नाथ श्रीवास्तव आईआईएम के पास स्थित स्टूडियो आए। उनके साथ प्रश्नों के एनकाउंटर में उसके प्रत्यर्पण की भी बात पुरजोर तरीके से उठी। उन्होंने कहा कि पैसा वापसी का जब उस पर दबाव बनने लगा तो सपा-भाजपा के बड़े नेताओं के संरक्षण व कथनी-करनी में फर्क के कारण ही वह भागने में सफल रहा व उसे लाने की दिशा में सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है।
देश में लाने की प्रक्रिया कठिन व जटिल जरूर है, पर उसे एक दिन भारत आना होगा और सलाखों के अंदर जाना होगा। नौ अगस्त 2020 को पहली बार अप्रोच के बाद लुकआउट नोटिस जारी कराने में सफलता मिली। इसे वहां की भाषा (अरबी) में छह सेट में एक प्रॉपर फॉर्म तैयार करके भेजा जाता है? वह होते-करते आता था चौकी इंचार्ज के पास, जो शाइन सिटी मुख्यालय के नीचे बैठकर मैनेज करता था। एसआई अरविंद राय आता था और वो सही तरीके से फॉर्मेट को तैयार नहीं करता था, लिहाजा फॉर्मेट ऐज इट इज वापस आ जाता था।
135 नंबर की रिपोर्ट की चार्जशीट में बाकायदा आया है कि साल 2020 से लुकआउट जारी हो रहा है, पर कोर्ट में झूठ बोला गया कि 2022 से नोटिस के प्रयास शुरू हुए। रेड कॉर्नर व इंटरपोल नोटिस जारी हो रहा है, लेकिन होता कुछ नहीं है। अगर नोटिस जारी हो गया तो एनफोर्समेंट डायरेक्टर से लेकर के सीबीआई की वेबसाइट तक पर नाम चढ़ जाता है। वेबसाइट पर उसका नाम व नोटिस का जिक्र ढूंढे नहीं मिलेगा, लेकिन साइट पर मेहुल चौकसी सहित आधा दर्जन नाम मिल जाएंगे।
क्या ठग भू-माफिया के आगे सिस्टम ने घुटने टेक दिए हैं, के सवाल पर बोले कि एक-एक मिलकर 11 बनते हैं, इनमें जो एक है, वह दूसरे को उसके हक में मैनेज कर रहा है यानी कि मिल-जुलकर लोग सिस्टम को कोलैप्स कर रहे हैं। कोर्ट में अपीयर होकर आर्गुमेंट की तो ऑर्डर हुआ सोशल मीडिया अकाउंट बंद करने का। इसके बावजूद अकाउंट चलता रहा, फिर भी टेली कम्युनिकेशन व फॉरेन मिनिस्ट्री के लोग कहते हैं कि एकाउंट बंद है। कोर्ट ने कहा कि कौंसिल कह रहे हैं कि छह घंटे पहले वीडियो अपलोड हुआ है। एक अपराधी का कद इतना बड़ा हो गया है कि विभागीय सेक्रेटरी को बुलाना पड़ेगा।
इससे लगता है कि भारत सरकार की सारी एजेंसियां बौनी साबित हो रही हैं। देश में हाल के दशकों से खुली लूट की छूट का एक ट्रेंड सा देखने को मिला है। स्याह व सफेद कुछ भी करो और करोड़ों-अरबों समेट कर चलते बनो। बाकी की बची जिंदगी विदेश में शान से काटो रईशों की तरह क्योंकि वहां किसी से किसी को कोई मतलब होता नहीं है। साइबर युग में भी लोग अगले की करतूतों के बारे में नहीं जान पा रहे हैं या जानना नहीं चाहते या जानने के लिए समय नहीं है। देश में जिस दिन से जनधन योजना लागू हुई थी व बाद में सड़क किनारे रेहड़ी-ठेलिया वाले जब से ऑनलाइन पेमेंट लेने लगे थे, उसी दिन अहसास हो गया था कि अपना देश नए युग में प्रवेश कर गया है।
इसी का नतीजा है कि दुनिया में हम सबसे बड़े डिजिटल पेमेंट वाले बन गए हैं। हालांकि किसी भी चीज की बाढ़ अपने साथ भलाई के साथ कुछ बुराई भी लेकर जाती है। नतीजतन कम वेतन में जी रहे पढ़े-लिखे, काबिल व बेरोजगार टेक्नोक्रेट ठगी पर उतर आए। सफलता की शार्टकट पॉलिसी के चलते उन्होंने मान लिया कि इससे बेहतर कुछ नहीं। एकदम से फोन व वीडियो कॉल की बाढ़ सी आ गई है। ऐसा लगता है कि जैसे हर छोटे-बड़े शहर में लोगों ने कॉल सेंटर खोल रखे हैं व शहर-शहर स्टूडियो बन गए हैं। ऐसे लोग लाख-दो लाख प्रतिदिन पीट रहे हैं तो मौजूदा कानून बौने साबित हो रहे थे। लंबे इंतजार और काफी कुछ गंवाने के बाद अब नए युग की ओर भारत ने बड़ा कदम बढ़ाया है।
अपराध करके व अरबों लूटकर विदेश भागने वाले अपराधी भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के शिकंजे से अब नहीं बच सकेंगे। आधुनिक तकनीक इंटरपोल की मदद से एजेंसियां भगोड़ों को दबोच लेंगी, क्योंकिडाटाबेस के आधार पर जांच में अप्रत्यासित तेजी आने वाली है। इसमें सारथी की भूमिका अदा करेगा भारतपोल पोर्टल। ड्रग्स, हथियारों व मानव तस्करी, सीमा पार आतंकवाद जैसे अपराधों में नई व्यवस्था बहुत मददगार साबित होने जा रही है। इसके जरिये साइबर अपराध की चुनौतियों से बेहतर ढंग व तेज गति से निपटा जा सकेगा।
सीबीआई की ओर से विकसित पोर्टल की अहम विशेषता रियल टाइम इंटरफेस है। इसी कारण उनसे भी एक कदम आगे सोचने की बात पर गृह मंत्री अमित शाह ने न केवल बल दिया है, बल्कि फरवरी में तीनों नए आपराधिक कानून लागू करने की बात सीएम योगी आदित्यनाथ से कही है। उनके क्रियान्वयन के लिए अधिकारियों की समीक्षा बैठक में उन्होंने कहा किस भी कमिश्नरेट में 31 मार्च तक व पूरे राज्य में जल्द से जल्द तीनों कानूनों का सौ फीसदी क्रियान्वयन सुनिश्चित करें। ये दंड नहीं, बल्कि पीडित केंद्रित हैं। त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उन्होंने तकनीक के उपयोग को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया व कहा कि राज्य के हर जिले में एक से अधिक फॉरेंसिक सचल वैन होनी चाहिए। जांच को तीन श्रेणियों गंभीर, सामान्य व अति सामान्य में विभाजित करें। केंद्र द्वारा लाए गए कानूनों में अनुपस्थिति में ट्रायल का प्रावधान जोड़ा गया है।
इस प्रावधान व भारतपोल के जरिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए दुनिया के किसी कोने में छिपे अपराधियों को भारतीय न्याय प्रणाली के तहत सजा दिलाना बहुत सरल हो जाएगा। भारत की अंतर्राष्ट्रीय जांच की स्थिति की बात करें तो इस दौर में भी काफी कमजोर रही है और ले-दे कर प्रत्यर्पण संधि के अलावा हमारे हाथ में कुछ नहीं रहा, वह भी आमतौर पर दो देशों के बीच होती है व अलग-अलग करनी पड़ती है सभी से। हालांकि बहुत क्लॉज होते हैं, जिनकी आड़ लेकर बांग्लादेश ने असम के अपराधी व उल्फा उग्रवादी परेश बरुआ का प्रत्यर्पण करीब दो दशक से नहीं किया है।
इंटरपोल से प्रेरित होकर वैसी ही और उसके साथ कदमताल करने के लिए भारतपोल पोर्टल केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा विकसित कराया गया है। इसमें 19 प्रकार के डाटा बेस होंगे, जो अपराध का विश्लेषण करने व भगोड़ों को पकड़ने में मदद करेंगे। इसकी मदद से सीबीआई आदि एजेंसियां इंटरपोल अफसर से सीधे जुड़ सकेंगी। अब पोर्टल पर ही जानकारी साझा की जाएगी और ई-मेल व फैक्स आदि की जरूरत नहीं पड़ेगी। फिलहाल सीबीआई के एसपी डीएसपी आदि अधिकारी पत्र, ई-मेल व फैक्स के जरिए इंटरपोल अफसर से जानकारी साझा करते रहे हैं। भारतपोल के पांच प्रमुख स्तंभ हैं कनेक्ट, इंटरपोल नोटिस, रेफरेंस, ब्रॉडकास्ट और रिसोर्स।
गृह मंत्री ने दिल्ली स्थित भारत मंडपम में हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय पुलिस की सहायता के लिए इसे लांच किया है। उनके मुताबिक करोड़ों देशवासियों के साथ बहुत कुछ हो चुका है, लेकिन अब और नहीं। हर अपराधी व भगोड़े को खींचकर न्याय के कठघरे में आधुनिक तकनीकों के जरिए लाएंगे। हमें वैश्विक चुनौतियों पर न सिर्फ नजर रखने की जरूरत है, बल्कि उनके साथ कदमताल भी करना होगा व अपराधियों से एक कदम आगे का सोचना होगा। आंतरिक प्रणाली को अपडेट करते रहना होगा। केंद्र व राज्य की एजेंसियां इंटरपोल के सदस्य 195देशों से सीधे जुड़ सकेंगी। उनके इंटरपोल रेफरेंस के जरिए विदेश में जांच के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहायता लेना देना सरल हो जाएगा।
सीबीआई निदेशक प्रवीण सूद ने कहा कि इससे एजेंसियां सीधे इंटरपोल से जुड़कर जांच तेज कर सकेंगी। अपराधियों के खिलाफ रेड कॉर्नर समेत अन्य कलर कोड नोटिस जारी करने की प्रक्रिया आसान होगी। इस तकनीकी मंच के टूल कनेक्ट के जरिए सभी कानून प्रवर्तन एजेंसियां एक प्रकार से इंटरपोल की नेशनल सेंट्रल ब्यूरो बन जाएंगी। इंटरपोल नोटिस के लिए अनुरोधों का त्वरित व सुरक्षित प्रसारण इससे सुनिश्चित हो जाएगा। इस तकनीक के बाद अहम है कि जिन्हें भागे हुए दशकों हो चुके हैं, उन पर भी शिकंजा कस जाएगा।
अधिवक्ता श्रीवास्तव बताते हैं कि साल 2014 में कानपुर में एक कंपनी रजिस्टर होती है। नाम रखा गया साइन सिटी इंफ्रा प्राइवेट प्रोजेक्ट लिमिटेड। कंपनी ने सपने बेचने शुरू किए कि हम रेजीडेंसियल व कामर्शियल प्लॉट और फ्लैट देंगे। फ्लैट किसे बनाने थे तो नाममात्र रकम से नाममात्र की जमीन खरीद कर प्लाट के नाम पर गेम शुरू किया। कालांतर में पर्दे के पीछे राजनीति व व्यापार के बहुत बड़े-बड़े खिलाड़ी जुड़ते गए। उनकी काली कमाई को नसीम ने इसमें लगाने का ढोंग किया। बिना बड़े इनवेस्टमेंट के इतना बड़ा न तो कोई भू-माफिया बन सकता है और न ही घोटाला हो सकता है।

ठगी का मास्टर प्रिंट तैयार किया गया। कुछ जमीनों का एग्रीमेंट कराया गया, कुछ खरीदी गईं और एक विस्तृत क्षेत्रफल दिखाकर निवेशकों से कहा गया कि सारा प्रोजेक्ट हमारा है। इसमें पैसा लगाइए जल्द डबल होगा। शुरू में 51 प्रतिशत शेयर राशिद नसीम के पास थे तो बाकी उसके भाई आसिफ नसीम के पास। आगे कंपनी ग्रो करती गई और मोटी रकम लेकर आने वाले करीब दर्जन भर लोगों को असिस्टेंट डायरेक्टर के नाम पर प्रवेश कराया गया। इसने भी किसानों से बाकायदा रजिस्ट्री कराई शाइन सिटी कंपनी के नाम। रजिस्ट्री एग्जीक्यूट होती है कुछ बीघे की। इसके बाद सैकड़ों किसानों को ज्यादा कमाई का लालच देकर एग्रीमेंट कराया जाता है, उन्हें जुताई-बुआई करने से रोक दिया जाता है।
इसके लिए साम, दाम, दंड और भेद की नीति पर चलकर जमीन पर झंडे लगाने के लिए 50000 महीने तक रकम अदा की गई या जो नहीं मान रहे थे, उन्हें पार्टनर बना लिया गया। किसी जो जब कुछ देना ही नहीं था तो अपना पूरा कारोबार उन्हीं का बताने दिखाने में हर्ज क्या था? गांव या क्षेत्र के बिचौलिए के कारण लालच में आए किसान यदि समय से जाग जाते तो प्रदेश के नागरिकों का इतना बड़ा नुकसान हो ही नहीं पाता। लोग दुनिया से निकल लेते हैं, पर किसी शीर्षस्थ के साथ एक फोटो नहीं खिंचा पाते उम्र भर, उसने जिसके साथ चाहा, उसको बुके देते हुए या स्वागत करते हुए न सिर्फ फोटो खिंचाया, बल्कि आंखों में धूल झोककर दिनदहाड़े डकैती डालने में उन फोटो व उन नामों का इस्तेमाल भी किया।
पूरा दिमाग लगाकर खेल करने के क्रम में नई जेल रोड, निगोहां, गोसाईंगंज एवं किसान पथ सहित राजधानी की आधा दर्जन से अधिक साइट पर नाममात्र जमीन खरीदी थी, उसमें शानदार गेट, डिवाइडर व निवेशकों खरीददारों को आकर्षित करने के लिए जो भी जरूरी था,वह सब करवाने में काफी रकम गलाई, क्योंकि उसका साफतौर पर मानना था कि दिखेगा तो बिकेगा नहीं, बल्कि फंसेगा। यही चाल काशी सहित दूसरी भी करीब दर्जन साइट के मामले में चली। इसी झांसे में जहां निम्न, मध्यम व मध्यम वर्ग के लोग फंसे, वहीं उच्च वर्ग के लोगों से भी जमकर इनवेस्ट कराया और बाद में सबका लेकर भगोड़ा बनकर दुबई में बैठा है।
शुरू में जिसने भी संपर्क करने की कोशिश की, उन्हें नई-नई तारीखें देता रहा, फिर बाद में वीडियो जारी कर अन्य भगोड़ों वाला ही हथकंडा अपनाया। फलां के साथ क्या हुआ, फलां के साथ क्या हुआ, सरकार सख्त है और जान को खतरा हो सकता है आदि की बातें करने की खबर मिली है? इस दरम्यान सैकड़ों छोटे व बड़े लोगों को चेक भी जारी किए गए, लेकिन कंगाल बैंक के होने के कारण वे सब बाउंस हो गए। शुरू में तो किसान भी समझ नहीं पाए, पर बाद में कोई झंडी उखाड़ने पहुंचा तो पीटा गया, कोई जुताई करने पहुंचा तो पीटा गया और कोई एग्रीमेंट का बकाया मांगने पहुंचा तो पीटा गया। गुंडई चरम पर थी।
अगर किसी खरीददार ने जल्द रजिस्ट्री कराने की बात कही और गलती से गोमतीनगर ऑफिस या साइट पर पहुंच गया तो इतना पीटा गया कि फिर कभी पैसे मांगने की हिम्मत ही नहीं कर सका। इस क्रम में जो दबाव बनाने में सफल रहे, उन्हें शुरू में खरीदे गए खेत में से प्लॉट दे दिए गए थे। आखिर में जेल गए बीच वाले, जो किसान व शैतान के बीच ब्रिज का काम कर रहे थे। वे जिन्हें कार पर जल्दी चढ़ने, जल्दी आगे बढ़ने व समाज में बड़ा दिखने की बहुत जल्दी थी। माता-पिता व बीवी-बच्चों की जरूरतें पूरी हो रही थीं तो घर से दिन-रात भागने की पूरी छूट थी इन बेरोजगारों को।
इनमें कई छोटे-मोटे काम कर रहे थे तो कई छोटी-मोटी नौकरी। वे सब कुछ छोड़कर कंपनी के एक इशारे पर किसी से भी भिड़ने व किसी से भी जूझने के लिए हर पल तैयार रहते थे। यह वह वर्ग था, जिसने अपने व पराये में भेद ही खत्म कर दिया था। बाद में क्या हुआ? इस खेल में सभी को जेल मिली, कुछ को बेल मिली। बाकी के घरवाले चक्कर लगा रहे हैं। ठप्पा अलग से लग गया कि ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको ठगा नहीं। दरअसल ये प्यादे थे, जो कि किसान के पास जाकर पूछते थे कि साल में एक एकड़ में कितने का गेहूं पैदा करते हो और कितने का धान, 50 हजार का…?
एग्रीमेंट करो एक लाख रुपए सालाना दूंगा और घर बैठो, कुछ करने की जरूरत नहीं। पैसा खाते में पहुंच जाएगा। शर्त बस खेत पर झंडा-झंडी लगाने की थी। इस तरह सैकड़ों बीघे (पचासों एकड़) की झंडी और झंडे से सजी आधा दर्जन से अधिक साइट दिखाकर एक ओर जहां कम पैसे वालों को एजेंट के जरिए ठगा जाता था, वहीं बड़े-बड़े इनवेस्टर को एग्रीमेंट के पेपर दिखाकर जमीन में इनवेस्ट कर रकम को दो साल में ही डबल करने का सब्जबाग सीधे घोटालेबाज राशिद दिखाता था या कंपनी के डायरेक्टर टाइप के बड़े अधिकारी, जिन्हें बाद में लैंड मैनेजर कहा जाने लगा था।
छोटे-बड़े निवेशकों की संख्या 69000 के आसपास बताई जा रही है। पहले ही दिन से वह दिमाग से खेल रहा था और आठ आंखें रखने का दावा करने वाले भी उसे पढ़ नहीं पाए थे। वह रोजाना चाल पर चाल चलता था, पर हमेशा खुदपीछे रहकर वजीर, सेनापति, हाथी, घोडे, ऊंट व पैदल प्यादे (बाइकर एजेंट को कार का लाभदेकर) को आगे (फ्रंट पर) रखता था। मन में इरादे स्पष्ट होते ही वह एग्रीमेंट भी लोकल एजेंट के नाम से कराने लगा था।
छुटभैया नौकर से नटवरलाल का सफर
राशिद जब पैदा हुआ होगा तो उसके मां-बाप की खुशी का ठिकाना नहीं होगा। सपना देखा होगा कि बेटा पढ़-लिखकर ख्यात होगा। 140 करोड़ देशवासियों की सेवा करेगा, पर यह क्या? वह सेवा के बजाय अमीरों के साथ गरीबों की भी हजारों करोड़ की मेवा लेकर भाग गया और एजेंसियां हाथ पर हाथ धरे बैठी रहीं। विख्यात के बजाय उसकी नजर हमेशा से ही कुख्यात बनने पर रही। जैसे-जैसे इस रास्ते पर बढ़ता गया, लूट के इरादे पुख्ता व खतरनाक होते चले गए। बड़ा आदमी बनने का सपना देखने के क्रम में भू माफिया व दूसरे गलत क्षेत्रों से कम समय में धन कमाने वाले लोगों का कारवां जुड़ता चला गया। अब जब उसे देश का सबसे बड़ा भगोड़ा अपराधी घोषित किया जा चुका है तो बाकी दो नंबर वाले छिपे-छिपे घूम रहे हैं।
इतना ही नहीं, कोई ऐसा दौलत व कलेजे वाला माई का लाल नहीं मिला, जो यह कह सके कि राशिद उसका इतने करोड़ लेकर भाग गया है। आज मां को भी लज्जा आती होगी। बेटा कहने से शर्म के मारे इंकार करती होगी। शायद इसी कारण उन्होंने संपत्ति से बेदखल कर दिया था। समाज में दोनों ही तरह के उदाहरण मौजूद हैं, जब माता-पिता ने बेटे की करतूत से परेशान होकर अतीत में हजारों बेटों को बेदखल किया है। हालांकि इस बेदखली को कई जानकार रणनीति का हिस्सा करार देते हैं। छुटभैया नौकर से धीरे-धीरे बन गया नटवर लाल। पहले वह साधारण आदमी था। स्पीक एशिया व रामसर्वे के लिए काम करता था। बाद में बजाज एलियांज की फ्रेंचाइजी ली। कूटरचित कागजों के जरिए प्रीमियम के पैसे डकारने से शुरुआत की थी।
साल 2013 में राजधानी के एक अखबार ने फ्रॉड के बारे में बाकायदा छापा था, फिर भी जो राजनेता व आईएएस-आईपीएस उसके इतिहास के बारे में नहीं जानते थे, वे बातों में आकर फंसते चले गए। लखनऊ की पहली साइट चालू की थी पैराडाइज गार्डेन। इनिशियली जब आप शुरुआत करते हैं किसी भी काम की तो ईमानदारी दिखानी पड़ती ही है। सभी भगोड़ों का ऐसा ही इतिहास रहा है। सस्ते प्लॉट के विज्ञापन, निवेश और कार्रवाई के बारे में वह कहते हैं कि 2023 में एनफोर्समेंट व ईओडब्लू ने एक जांच करवाई उस समय एसपी स्वप्निल ममगईं थे। उन्होंने अपनी निगरानी में एक जांच कमेटी बनाई तो चार-पांच लोगों के नाम पता चले। उन्होंने तीन बैंकों के 35 अकाउंट की जांच कराई तो दो लाख 19 हजार लोगों से पैसे लेने के सुबूत मिले थे।
इसमें कुछ बड़े पेमेंट थे तो बाकी धन जीडीबीसी से आया था, जो इनीशियल प्रोजेक्ट (खुदरा स्कीम) था। इसमें हजार से 3000 रुपए प्रतिमाह लोग जमा करते थे। हाईकोर्ट में रिट में जो डिटेलिंग आई है, उसमें 45 बैंकों के 121 अकाउंट के बारे में बताया गया है। अभी सारे बैंकोंके डिटेल नहीं आए हैं, जिस दिन सारे डिटेल आ जाएंगे, तब पीड़ितों की संख्या तीन लाख से ऊपर पहुंच जाएगी और तभी पता चलेगा कि वस्तुतः कितने हजार करोड़ का घोटाला है।
प्रारंभिक तौर पर 64-65000 करोड़ का जरूर बताया जा रहा है। इनवेस्टर किस श्रेणी के थे, के सवाल पर वह कहते हैं कि टॉप टू बॉटम हर तरीके के थे। खुदरा खरीदार भी थे और बड़ी मछलियां भी। सही मायने में आईपीएस-आईएएस व जजों को इनवेस्टर कहना ठीक रहेगा। देहात के बेरोजगारों को जोड़ने के लिए फ्रिज व वाशिंग मशीन जीतने का विज्ञापन दिया गया था। उसने कई टीम बनाई थी। जैसे चैंपियंस टीम, स्पार्टन टीम और कोहिनूर आदि, जो फ्रंट पर काम करती थीं और वह पर्दे के पीछे रहता था और बड़े-बड़े खिलाड़ियों को भी पर्दे के पीछे ही रखता था। उसने पूरे सिस्टम को बौना बनाकर रखा था।
इस आशय की ऑडियो रिकॉर्डिंग को कोर्ट में भी पेश किया गया है। ज्ञात हो कि उसका कॉर्पोरेट ऑफिस गोमतीनगर थाने के ही तहत आता था। कोई जब जांच एजेंसी को हर माह वेतन देने लगेगा तो लोगों की सुनवाई कहां होगी और कोई जांच करके अपने पैर पर भला क्यों कुल्हाड़ी मारेगा? आपके कथनानुसार साफ है कि राशिद पहले से ही तय कर चुका था कि निवेशकों का पैसा लेकर भागना है। हाईकोर्ट के निर्देश के बाद क्लेम फाइल करना शुरू कराने पर पता चला है कि 2014 की रजिस्ट्री लिए लोग टहल रहे हैं और दस साल से कब्जा नहीं मिला है तो साफ है कि डे वन से ही उसके इरादे साफ थे। अगर कोई नहीं समझ पाया तो समझदार होने का दावा करने वाले पढ़े-लिखे लोग।
उसको संजीवनी कहां से मिल रही है, के सवाल पर बोले कि हर बड़े राजनेता के साथ उसके फोटोग्राफ हैं। हम दशकों तक कार्यकर्ता रहे एक सियासी दल के, पर किसी ने मौका नहीं दिया फोटो खिंचाने का। इसके विपरीत जिस पर कई केस हों और पीएमएलए में अभियुक्त हो, उसके साथ राम नाईक, रीता बहुगुणा जोशी, उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक व केशव प्रसाद मौर्य व जगदीश मुखी आदि फोटो खिंचाते थे। पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्रियों ने भी उसे संरक्षण दिया हुआ था। उनके चित्रों के साथ राजधानी में बड़े होर्डिंग लगते थे। मतलब जेब में पैसे हों तो कुछ भी संभव है, पर कहा कि राशिद का नमूना सामने है तो। वह सिस्टम के सिर पर चढ़कर पेशाब कर रहा था। पूरे के पूरे सिस्टम को ही हैक कर लिया था।
उसके ऑफिस में सेल्स टैक्स व इनकम टैक्स का छापा पड़ा और उसका बाल बांका नहीं हुआ। कई बार विभागों ने पेनाल्टी इंपोज की, पर कहीं कुछ नहीं। 2013 से मीडिया लिख रहा है कि यह आदमी उग है, चोर है और इस पर दर्जनों मुकदमे पंजीकृत हैं, फिर भी लोग न जाने किस लालच में बेशर्मी से उसके साथ फोटो खिंचा रहे थे। 2017 से भाजपा सरकार है, योगी आदित्यनाथ मुखिया हैं। हर बड़े प्लेटफार्म और मंच से वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं। ऐसे में चाहिए कि इतने सुबूत हाथ में होने के बाद पार्लियामेंट्री रिपोर्ट बनवाकर गरीबों के अरमानों के हत्यारे को दंडित करवाने में मदद करें और जब तक उस पर कार्रवाई नहीं होती, तब तक दृष्टांत न्यूज की मुहिम जारी रहेगी।