चुनावी रैलियों में एआई का इस्तेमाल

नई दिल्लीः दुनिया के सबसे बड़े चुनावी उत्सव का बिगुल बजते ही राजनीतिक पार्टियां बड़े स्तर पर सोशल मीडिया का प्रयोग तो कर ही रही है, साथ ही इस बार आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) भी बड़ा फैक्टर साबित होने जा रहा है। प्रचार में नई-नई तकनीकों का प्रयोग करने में बीजेपी अभी बाकी राजनीतिक दलों से आगे ही दिखाई दे रही है। पिछले साल दिसंबर 2023 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी तमिल संगमम् के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण को AI तकनीक का उपयोग करके वास्तविक समय में तमिल दर्शकों के लिए अनुवादित किया गया। हिंदी भाषण का तमिल में अनुवाद करने के लिए एक खास AI टूल का इस्तेमाल किया गया था, जो असली समय में काम करता है। मतलब यह है कि भाषण होते वक्त ही अनुवाद कर देता है। आने वाले चुनाव में बड़े नेताओं की रैलियों या रोड शो के आयोजन में भी AI तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है।

साइबर कानून विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता बताते हैं कि अमेरिका में सीनेट की खुफिया और नियम समिति के सदस्य सीनेटर बेनेट ने वॉट्सऐप और फेसबुक के मालिकाना हक वाली कंपनी मेटा से पूछा है कि भारत के चुनावों में डीपफेक के इस्तेमाल से सोशल मीडिया में फर्जी और झूठी सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए उनकी क्या तैयारी है? इससे साफ है कि एआई के सप्लीमेंट्स से सोशल मीडिया में ऑडियो-विडियो और डिजिटल कंटेंट का प्रसार करने के साथ पार्टियां इसका ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं। ऐसे में यह बड़ा फैक्टर हो सकता है।

2024 के लोकसभा चुनाव में वॉट्सऐप जैसे ‘मेसेजिंग’ मंच और सोशल मीडिया ‘एन्फ्लूएंसर्स’ का सहारा तो लिया ही जाएगा, साथ ही एआई के जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने का प्रयास भी किया जाएगा। लोकसभा चुनाव में प्रमुख राजनीतिक पार्टियों को पूरे देश में प्रचार करना पड़ता है। दक्षिण भारत जैसे राज्यों में जब उत्तर भारत के नेता प्रचार करते हैं तो उनके भाषणों को अलग-अलग भाषाओं में बदलने के लिए AI का इस्तेमाल किया जाएगा। बंगाली, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, पंजाबी, मराठी, उड़िया और मलयालम जैसी भाषाओं में भी भाषण सुना जा सकता है। पाकिस्तान में हाल ही में आम चुनाव संपन्न हुए हैं और पड़ोसी देश में भी आम चुनाव में एआई का इस्तेमाल देखने को भी मिला था। इमरान खान की पार्टी ने उनके नए भाषणों में उनकी आवाज की कॉपी करने के लिए एआई तकनीक का इस्तेमाल किया था।

के. एन. गोविन्दाचार्य की अर्जी के बाद अक्टूबर 2013 में चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया को रेगुलेट करने के लिए नीति बनाई थी। उन नियमों के अनुसार एआई के इस्तेमाल के नियमन के तीन पहलू हैं। पहला-कंटेंट की सत्यता, दूसरा-एआई के इस्तेमाल का खर्च, तीसरा-चुनाव सामग्री का नियमों के अनुसार अनुमोदन। सरकार ने देश में एआई के इस्तेमाल के लिए अनुमोदन के नियम बनाए थे, जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया। आईटी इंटरमीडियरी नियमों के अनुसार एआई कंपनियों को अपने शिकायत और नामांकित अधिकारियों का ब्योरा चुनाव आयोग को देना चाहिए, जिनके माध्यम से चुनावी पर्यवेक्षक नियमों को अविलम्ब लागू करके स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कर सकें।

जानकारों का कहना है कि एआई तकनीक को लेकर चुनौतियां भी कम नहीं है। फेक न्यूज या गलत जानकारी भी इस तकनीक के जरिए तेजी से फैल सकती है। इस पर अंकुश लगाना भी एक चुनौती होगा। डीपफेक भी एक तरह से एआई का ही रूप है, जिसका उपयोग विश्वसनीय भ्रामक छवि और विडियो बनाने के लिए किया जा सकता है। चुनाव में एक गलत जानकारी फैलने से सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। हाल ही में बांग्लादेश के चुनाव में विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि सरकार समर्थक लोगों ने एआई का दुरुपयोग किया और विपक्ष को नीचा दिखाने के लिए डीपफेक विडियो बनाए। वहीं चुनाव के समय जनता को लुभाने के लिए सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों की बाढ़ आ जाती है और यह बहुत गंभीर मुद्दा है। जानकारों का कहना है कि राजनीतिक पार्टियां ऐसे सोशल मीडिया मंच को चुनती है जो उन्हें बगैर ज्यादा पाबंदियों के और बड़े उपयोगकर्ता आधार के साथ तेजी से जनता से जोड़ने में मदद करते हैं। इंस्टाग्राम और ट्विटर (अब एक्स) जैसे कई अन्य मंच हैं जो जनता के एक खास वर्ग की जरूरतों को पूरी करते हैं और उनके अलग-अलग प्रारूप हैं।

Related Articles

Back to top button