
नई दिल्ली । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयानों और नीतियों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल मचा दी है। उनकी टैरिफ नीतियों और व्यापार युद्ध को तेज करने की रणनीति ने एक बार फिर सुर्खियां बटोरी हैं। हाल ही में ट्रंप ने मंदी की आशंकाओं पर अपनी प्रतिक्रिया दी, जिसने चर्चा को और गर्म कर दिया है। इतना ही नहीं, उनके एक बयान ने अमेरिकी शेयर मार्केट में 1 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा डुबा दिए।
ट्रंप प्रशासन ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही आक्रामक आर्थिक नीतियां लागू की हैं। उनकी “रेसिप्रोकल टैरिफ” नीति ने वैश्विक व्यापार को झटका दिया है। इस नीति के तहत अमेरिका अन्य देशों से उतना ही टैरिफ वसूल करेगा जितना वे अमेरिका पर लगाते हैं। ट्रंप का दावा है कि इससे अमेरिकी उद्योगों को संरक्षण मिलेगा और घरेलू उत्पादन बढ़ेगा। लेकिन हाल ही में 9 मार्च, 2025 को फॉक्स न्यूज के “संडे मॉर्निंग फ्यूचर्स” पर मारिया बार्टिरोमो के साथ एक इंटरव्यू में, जब उनसे पूछा गया कि “क्या आप इस साल मंदी की उम्मीद कर रहे हैं?”, तो ट्रंप ने सीधा जवाब देने से परहेज किया।
ट्रंप ने कहा, “मुझे ऐसी चीजों की भविष्यवाणी करना पसंद नहीं। यह एक ट्रांजिशन का दौर है, क्योंकि हम जो कर रहे हैं, वह बहुत बड़ा है। हम अमेरिका में पैसे वापस ला रहे हैं। इसमें थोड़ा वक्त लगता है।” यह जवाब न तो मंदी की आशंका को खारिज करता है और न ही पक्के तौर पर पुष्टि करता है, जिससे अनिश्चितता और बढ़ गई है। अमेरिका में उपभोक्ता विश्वास सूचकांक में गिरावट और ट्रेजरी यील्ड के निचले स्तर पर पहुंचने की खबरें मंदी की आशंका को बल दे रही हैं। ट्रंप ने भारत पर भी 100% तक टैरिफ की बात कही है, जिसका असर भारतीय निर्यात पर पड़ सकता है। विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। कुछ इसे अल्पकालिक अस्थिरता मानते हैं, तो कुछ इसे वैश्विक मंदी का शुरुआती संकेत।
मंदी को लेकर ट्रंप की टिप्पणी के एक दिन बाद, सोमवार 10 मार्च को अमेरिकी शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी गई, जिसमें एक ही दिन में 1.1 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ। इसके पीछे कई कारण जिम्मेदार रहे। सबसे बड़ा ट्रिगर था ट्रंप की टैरिफ नीतियों को लेकर बढ़ती अनिश्चितता, खासकर मैक्सिको और चीन जैसे देशों पर उनके आक्रामक रुख ने निवेशकों में घबराहट पैदा की। इसके अलावा, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत दिखे, जैसे कमजोर रोजगार डेटा और टेक सेक्टर में सुस्ती। इसने बाजार को और दबाव में डाला।
नैस्डैक में 4% की गिरावट इस बात का सबूत है कि निवेशक जोखिम से बचने के लिए बिकवाली कर रहे हैं। टेस्ला जैसे बड़े शेयरों में 15% तक की गिरावट ने इस कोहराम को और बढ़ाया। मंदी पर अस्पष्ट रवैया अपनाने वाली ट्रंप की हालिया टिप्पणी ने इसने बाजार को स्थिर करने के बजाय और अस्थिर कर दिया। इन फैक्टर्स ने मिलकर निवेशकों को एक दिन में भारी नुकसान करा दिया।
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्ते मजबूत हैं, लेकिन ट्रंप की नीतियों ने इसमें तनाव पैदा कर दिया है। भारत अमेरिका को करीब 85 बिलियन डॉलर का निर्यात करता है, जिसमें आईटी, फार्मा, टेक्सटाइल और ऑटोमोबाइल शामिल हैं। अगर अमेरिका भारत से आयात पर भारी टैरिफ लगाता है, तो इन सेक्टरों को नुकसान होगा। एसबीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप के कार्यकाल में भारतीय रुपये का मूल्य डॉलर के मुकाबले 8-10% तक कमजोर हो सकता है। इससे आयात महंगा होगा, खासकर कच्चा तेल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में, जिससे महंगाई बढ़ेगी। हालांकि, ट्रंप की नीतियों से अप्रत्यक्ष फायदा भी हो सकता है। यूरोपीय संघ और अन्य देश, जो अमेरिका से तनाव के बीच नए साझेदारों की तलाश में हैं, भारत की ओर रुख कर सकते हैं।
ट्रंप की नीतियों और उनकी हालिया टिप्पणी ने भारत में चिंता की लहर पैदा कर दी है। सोशल मीडिया पर लोग इसे “डॉलर की तानाशाही” से लेकर “अमेरिकी नीतियों का आतंक” तक बता रहे हैं। शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव और रुपये की गिरती कीमत ने आम लोगों से लेकर उद्योगपतियों तक को परेशान कर दिया है। ट्रंप के “ट्रांजिशन पीरियड” वाले बयान को कुछ लोग आश्वासन के तौर पर देख रहे हैं, तो कुछ इसे अनिश्चितता का सबूत मानते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को विविधता देनी होगी। अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिए घरेलू उत्पादन बढ़ाना और अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत करना जरूरी है। लेकिन यह रातोंरात नहीं होगा। ट्रंप की नीतियां लागू होने में समय लगेगा, और भारत के पास तैयारी का मौका है- बशर्ते कदम तेजी से उठाए जाएं।
ट्रंप की मंदी वाली बात और उनकी ताजा टिप्पणी में कितना दम है, यह वक्त बताएगा। उनकी अस्पष्ट प्रतिक्रिया- “मुझे भविष्यवाणी करना पसंद नहीं” – ने बाजारों में कोहराम मचा दिया है, लेकिन यह भी साफ है कि उनकी नीतियां वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेंगी। भारत के लिए यह संकट भी है और अवसर भी। अगर भारत अपनी कमजोरियों को दूर कर ले, तो यह तूफान एक नई शुरुआत बन सकता है। वैसे भारत ने पहले भी आर्थिक चुनौतियों का सामना किया है और हर बार मजबूती से उभरा है।