‘रमन प्रभाव’ की खोज से चौंधियां गई थी दुनिया

आज ही के दिन, 7 नवंबर को भारतीय भौतिक विज्ञानी और नोबेल पुरस्कार विजेता सर चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म हुआ था। सीवी रमन को विज्ञान के क्षेत्र में उनकी शानदार खोजों के लिए सदैव याद किया जाएगा, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण उनकी खोज ‘रमन प्रभाव’ है। रमन प्रभाव ने विज्ञान की दुनिया में तहलका मचाया। यह खोज प्रकाश के फैलने के दौरान उसके द्वारा सोख लिए गए ऊर्जा के परिवर्तित रूप को स्पष्ट करती है, और इसके आधार पर यह सिद्धांत प्रस्तुत किया गया कि जब प्रकाश एक माध्यम से गुजरता है, तो उसकी तरंगदैर्ध्य में बदलाव आता है, जिसे अब ‘रमन प्रभाव’ के रूप में जाना जाता है। इसके लिए उन्हें 1930 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था, और वह इस सम्मान से नवाजे जाने वाले पहले भारतीय वैज्ञानिक बने।

सीवी रमन का इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रो. मेघनाद साहा से गहरा संबंध था, और उनका भारत के वैज्ञानिक समुदाय के लिए मार्गदर्शन महत्वपूर्ण था। उनकी वैज्ञानिक दृष्टि और कार्य ने न केवल भारतीय वैज्ञानिकों को प्रेरित किया, बल्कि पूरी दुनिया में भौतिकी के क्षेत्र में एक नई दिशा दी। उनका योगदान आज भी भारत और दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। रमन की यह खोज न केवल उनके व्यक्तिगत करियर के लिए एक मील का पत्थर बनी, बल्कि यह पूरे विज्ञान के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम साबित हुई। उनके योगदान के कारण विज्ञान के क्षेत्र में भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन हुआ।

जन्म

तमिलनाडु के तिरूचिरापल्ली में 07 नवंबर 1888 को सीवी रमन का जन्म हुआ था। उनके पिता गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। माना जाता है के शुरूआत शिक्षा के दौर में ही उनका विज्ञान के प्रति रुचि जगी। शुरूआती शिक्षा उन्होंने अपने घर पर पूरी की और उच्च शिक्षा के लिए सीवी रमन ने मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। साल 1904 में भौतिकी में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। अपनी असाधारण योग्यता के चलते पूरे मद्रास यूनिवर्सिटी में फर्स्ट स्थान मिला। फिर उन्होंने एम.ए की पढ़ाई की और यहीं से उनके वैज्ञानिक सफर की शुरूआत हुई।

रमन प्रभाव की खोज

बता दें कि डॉ रमन की सबसे बड़ी खोज ‘रमन प्रभाव’ के रूप में जाना जाता है। जिसकी वजह से उनको साल 1930 में भौतिकी के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। रमन प्रभाव यह घटना है, जिसमें जब प्रकाश की किरणें किसी पारदर्शी पदार्थ से होकर गुजरती है। तो उसकी तरंग दैर्ध्य में परिवर्तित होता है। सीवी रमन की इस खोज ने वैज्ञानिकों को परमाणुओं और अणुओं की संरचना को समझने का एक नया तरीका दिया। इसलिए हर साल इस दिन 28 फरवरी को ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। रमन की यह खोज आधुनिक भौतिकी में क्रांति थी औऱ इसको विज्ञान के क्षेत्र में असाधारण योगदान माना जाता है।

करियर और अन्य उपलब्धियां

डॉ. रमन ने अपनी खोज के अलावा शिक्षा के क्षेत्र में भी अहम योगदान दिया था। उन्होंने कोलकाता में इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइंस में शोध किया और अपनी रिसर्च को वहां के स्टूडेंट्स और वैज्ञानिकों के बीच साझा किया। बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान भौतिकी विभाग के प्रमुख बने। साल 1948 में सीवी रमन ने रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की। 

भारतीय विज्ञान में योगदान

डॉ सीवी रमन का मानना था कि विज्ञान में अनुसंधान और शिक्षा दोनों का समान महत्व है। विज्ञान के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए। सीवी रमन ने अपने जीवनकाल में भारतीय छात्रों और वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित किया।

विज्ञान के क्षेत्र में सीवी रमन ने जो योगदान दिए, उसका महत्व आज भी बना है। उनका जीवन और हर उपलब्धि हर भारतीय को विज्ञान के क्षेत्र में कुछ नया करने की प्रेरणा देती हैं। सीवी रमन का विज्ञान के क्षेत्र में योगदान आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनकी खोज, विशेष रूप से रमन प्रभाव, ने न केवल भौतिकी के अध्ययन में नई राहें खोलीं, बल्कि यह आधुनिक विज्ञान की नींव में एक अहम कड़ी बन गई। रमन ने यह साबित किया कि भारतीय वैज्ञानिक वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ सकते हैं, और उनके द्वारा की गई खोजों से आज भी शोधकर्ताओं को प्रेरणा मिलती है। उनका जीवन और कार्य हर भारतीय को यह सिखाता है कि विज्ञान में किसी भी दिशा में कुछ नया करने के लिए कल्पना, मेहनत और समर्पण जरूरी है। उनका उदाहरण यह दर्शाता है कि दृढ़ संकल्प और जुनून से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।

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