पंडित रविशंकर, भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान सितार वादक, का निधन 11 दिसंबर को हुआ था। पंडित रविशंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को पूरी दुनिया में एक नई पहचान दी और इसे वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बनाया। उन्होंने न केवल भारतीय संगीत को पश्चिमी दुनिया में प्रस्तुत किया, बल्कि इस संगीत शैली को एक नया आयाम भी दिया। पंडित रविशंकर को उनके अद्वितीय योगदान के लिए तीन सर्वोच्च भारतीय पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें भारत रत्न, पद्म विभूषण और पद्म भूषण शामिल हैं। उनका संगीत और सितार वादन ने उन्हें एक वैश्विक प्रतिष्ठा दिलाई।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 07 अप्रैल 1920 को पंडित रविशंकर का जन्म हुआ था। इनको बचपन से संगीत में रुचि थी, ऐसे में महज 10 साल की उम्र में अपने भाई के डांस ग्रुप का हिस्सा थे। हालांकि शुरूआत में उनका झुकाव डांस की ओर था, लेकिन 18 साल की उम्र में उन्होंने सितार सीखना शुरूकर दिया था। सितार सीखने के लिए पं. रविशंकर ने मैहर के उस्ताद अलाउद्दीन खान से दीक्षा ली। पंडित रविशंकर को सितार से गहरा लगाव था।
कला से कमाया विश्व में नाम
बता दें कि पं. रविशंकर ने अपने गुरु की बेटी अन्नपूर्णा देवी से पहली शादी की, लेकिन फिर 20 साल बाद वह अन्नपूर्णा से अलग हो गए और नृत्यांगना कमला शास्त्री के साथ रहे। उन्होंने अपनी कला से एशिया सहित पूरे विश्व में खूब नाम कमाया था। उनकी खूबसूरत कला के लिए भारत सरकार ने साल 1999 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
सितार से था अटूट रिश्ता
जब पं. रविशंकर 18 साल के थे, तो उन्होंने अमिया कांति भट्टाचार्य को कोलकाता में एक संगीत कार्यक्रम में शास्त्रीय वाद्य यंत्र बजाते सुना। उनके प्रदर्शन से प्रेरित होकर उन्होंने फैसला किया कि उनको भी भट्टाचार्य के गुरु उस्ताद इनायत खान से सितार सीखना चाहिए। इस तरह से पं. रविशंकर के जीवन में सितार आया, जोकि अंतिम सांस तक उनके साथ रहा। गुरु उस्ताद इनायत खान से सितार बजाना सीखने के बाद वह मुंबई चले गए। उनक सितार से लगाव और उसे लेकर उनकी श्रद्धा इतनी गहरी थी कि जब वह अपने संगीत कार्यक्रमों के लिए यात्रा करते थे, तो उनके लिए प्लेन में दो सीटें बुक की जाती थीं—एक उनकी और दूसरी उनके सितार, “सुरशंकर” के लिए। पंडित रविशंकर की यह श्रद्धा और उनके संगीत का समर्पण उन्हें एक अविस्मरणीय संगीतज्ञ के रूप में जीवित रखता है।
आकाशवाणी में किया काम
मुंबई में पं. रविशंकर ने इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन के लिए काम किया। यहां पर उन्होंने साल 1946 तक बैले के लिए संगीत तैयार किया। फिर वह नई दिल्ली रेडियो स्टेशन ऑल-इंडिया रेडियो के निदेशक बने और साल 1956 तक इस पद पर रहे। आकाशवाणी में काम करने के दौरान पं. रविशंकर ने ऑर्केस्ट्रा के लिए रचनाएं की। बता दें कि वह साल 1986 से लेकर 1992 तक राज्यसभा के भी सदस्य रहे। इतना ही नहीं पं. रविशंकर को तीन बार ग्रैमी अवॉर्ड भी मिल चुका था।
स्टेज पर आखिरी परफॉर्मेंस
स्वास्थ्य ठीक न होने के बाद भी 04 नवंबर 2012 को पं. रविशंकर ने कैलिफोर्निया में अपनी बेटी अनुष्का के साथ आखिरी बार परफॉर्म किया। परफॉर्मेंस के दौरान उनकी तबियत इतनी ज्यादा खराब थी कि उनको ऑक्सीजन मास्क पहनना पड़ा था। तबियत खराब चलने के कारण यह कार्यक्रम 3 बार टाला जा चुका था। वहीं 11 दिसंबर 2012 को अमेरिका के सैन डिएगो के एक अस्पताल पं. रविशंकर का निधन हो गया।