भारत के महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई का 1971 को निधन हो गया था। उन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का पितामह कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव रखी थी और इसे विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। उनका योगदान न केवल अंतरिक्ष विज्ञान में था, बल्कि उन्होंने भारतीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और विकास के कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किए। विक्रम साराभाई न केवल एक वैज्ञानिक थे, बल्कि एक महान विचारक और दूरदर्शी थे। उनके योगदान के कारण भारत आज अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीकी विकास में दुनिया के प्रमुख देशों में शामिल है।
गुजरात के अहमदाबाद के एक प्रतिष्ठित बिजनेस परिवार में 12 अगस्त 1910 को विक्रम साराभाई का जन्म हुआ था। शुरूआती शिक्षा भारत में पूरी की थी और फिर वह उच्च शिक्षा के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के सेंट जॉन्स कॉलेज से पढ़ने चले गए। विक्रम साराभाई ने डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। विक्रम साराभाई के नेतृत्व में भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाए, जिसमें पहला उपग्रह एरीयबेट (Aryabhata) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना प्रमुख थी।
अमेरिका से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने नवंबर 1947 में अहमदाबाद में फिजिकल रिसर्च लैबरेटरी की स्थापना की। शुरूआत में विक्रम साराभाई ने PRL रिसर्च पर काम किया और बाद में साराभाई के अथक प्रयासों से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की नींव रखी गई। बता दें कि इससे पहले इसरो को भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति के नाम से जाना जाता था। इसको 1962 में विक्रम साराभाई की दूरदर्शिता की वजह से भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। इसके बाद उन्होंने इसरो के पहले अध्यक्ष के रूप में काम किया।
वहीं भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को विकसित करने में विक्रम साराभाई ने अहम भूमिका निभाई थी। फिर उन्होंने अहमदाबाद में अतंरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र की स्थापना भी की थी। इसको भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्हें साल 1966 में पद्म भूषण और 1972 में पद्म विभूषण (मृत्योपरांत) से सम्मानित किया गया। उनका दृष्टिकोण और कार्य भारत को अंतरिक्ष कार्यक्रम में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में था, ताकि देश को तकनीकी विकास में एक नई पहचान मिल सके।
बता दें कि विक्रम साराभाई ने अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज रिसर्च एसोसिएशन और भारतीय प्रबंधन संस्थान की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाई थी। यह संस्थान आज भी भारत की प्रगति व उन्नति में अहम भूमिका निभा रहा है। साराभाई के नेतृत्व में भारत ने अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र की स्थापना भी की थी। साराभाई का यह सपना था कि भारत आत्मनिर्भर बनें और अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाए। विक्रम साराभाई की इसी सोच ने भारत को अग्रणी अंतरिक्ष शक्ति बनने में ग्लोबल लेवल पर मदद की।
उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए उन्हें कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों और सम्मान से नवाजा गया। उन्हें पद्मभूषण जैसे उच्चतम राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया, और भारतीय वैज्ञानिक समुदाय में उनका योगदान आज भी याद किया जाता है।केरल के तिरुवनंतपुरम में दिल का दौरा पड़ने से डॉ विक्रम साराभाई का निधन हो गया था। उनका निधन भारतीय विज्ञान और अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक अपूरणीय क्षति था।