
23 दिसंबर को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, पामुलापार्ती वेंकट नरसिम्हा राव का निधन हुआ था। वे भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली नेता थे, जिनका योगदान भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था। नरसिम्हा राव के नेतृत्व में भारत ने 1991 में आर्थिक उदारीकरण की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी।
नरसिम्हा राव का व्यक्तित्व अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण था। वह केवल राजनीति में ही नहीं, बल्कि संगीत, साहित्य, कला और भाषाओं के प्रति भी गहरी रुचि रखते थे। उन्हें कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान था और वे अक्सर अपनी बातचीत में इन भाषाओं का प्रयोग करते थे। राव की शिक्षा और संस्कारों का गहरा प्रभाव उनकी राजनीतिक शैली पर पड़ा, जिससे उन्होंने कठिन निर्णय लेने की क्षमता दिखाई, जैसे कि 1991 के आर्थिक सुधार और विदेश नीति के क्षेत्र में किए गए फैसले।
उनकी कड़ी मेहनत, दूरदर्शिता और राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ने वाला नेता बना दिया। नरसिम्हा राव को एक महान नेता के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने भारतीय राजनीति के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को भी एक नई दिशा दी।
जन्म और परिवार
आंध्र प्रदेश के करीमनगर जिले में स्थित भीमाडेवरल्ली मंडल गांव में 28 जून 1921 को पीवी नरसिम्हा राव का जन्म हुआ था। वर्तमान समय में यह तेलंगाना राज्य का हिस्सा है। उन्होंने छात्र नेता के तौर पर राजनीति की शुरूआत की थी। पी वी नरसिम्हा राव ने आंध्र प्रदेश के विभिन्न इलाकों में सत्याग्रही आंदोलन का नेतृत्व किया था। साल 1930 के दशक में हैदराबाद में हुए वंदे मातरम आंदोलन के भी सक्रिय भागीदार रहे
भारत के पहले दक्षिण भारतीय प्रधानमंत्री
भले ही पी वी नरसिम्हा राव की मातृभाषा तेलगु थी। लेकिन फिर भी राव 6 विदेशी भाषाओं के अलावा 9 भारतीय भाषाओं पर अच्छी पकड़ रखते थे। देश की स्वतंत्रता के बाद राव भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े। साल 1971 से लेकर 1973 तक राव आंध्र प्रदेश के सीएम रहे। फिर वह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी दोनों की सरकारों में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल रहे। पी वी नरसिम्हा राव के अनुभव, शांत स्वभाव और विद्वता के कारण वह साल 1991 में पहले दक्षिण भारतीय प्रधानमंत्री बनें।
सोनिया और राव के बिगड़े रिश्ते
शुरूआत में सोनिया गांधी और राव की बहुत अच्छी बनती थी। हर मामले में सोनिया गांधी राव की सलाह लेती थीं। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि राव ने सोनिया गांधी का भरोसा खो दिया। दरअसल, तिरुपति में साल 1992 में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। जिसके बाद कांग्रेस के कुछ नेता पी नरसिम्हा राव की शिकायतें लेकर सोनिया से मिलने लगे। लेकिन इन शिकायतों का कुछ खास असर नहीं हुआ।
फिर 06 दिसंबर 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई और इसके बाद सोनिया गांधी का पहला सियासी बयान सबके सामने आया। हालांकि इसके बाद भी राव सोनिया गांधी से हर हफ्ते मिलते रहे। वहीं विपक्ष बार-बार सवाल उठाता रहा कि आखिर देश के पीएम को एक आम नागरिक रिपोर्ट करने की जरूरत क्या है। आखिरकार साल 1993 में राव ने सोनिया गांधी के घर 10 जनपथ जाना छोड़ दिया। वहीं विरोधियों को सोनिया गांधी के कान भरने का मौका मिल गया।
वहीं 20 अगस्त 1995 को अमेठी की जनसभा में सोनिया गांधी ने अपने भाषण में कहा कि उनके पति राजीव गांधी को गुजरे कई दिन हो गए। लेकिन अभी भी मामला धीमी गति से चल रहा है। सोनिया का इशारा राव सरकार की ओर था। उनके इस बयान से भीड़ में ‘राव हटाओ, सोनिया लाओ’ के नारे गूंजने लगे। फिर साल 1998 में कांग्रेस की कमान खुद सोनिया गांधी ने संभाल ली और साल 1999 के चुनाव में राव को टिकट भी नहीं मिला था।
23 दिसंबर 2004 को भारत के 9वें प्रधानमंत्री पामुलापार्ती वेंकट नरसिम्हा राव का निधन हुआ था। उनके निधन के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर विवाद पैदा हुआ था। यह सच है कि उनका शव न तो कांग्रेस मुख्यालय (अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी) में रखा गया, और न ही दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार होने दिया गया। इसके बजाय, उनका अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया गया, जहां उनका परिवार रहता था।
Solomons was a rather isolated boat-building town housing the University of Maryland Chesapeake Biological Laboratory, until when the Governor Thomas Johnson Bridge was built.