शिल्पा सिंह
कुत्सित मति, रीति और नीति पर चलने के बाद भी अपनों व परायों से आंखें मिलाने तक में जब कोई दिक्कत न पैदा हो तो फिर आंखें चुराने का सवाल ही कहां पैदा होता है? बेशर्मी तब से और जिंदाबाद हो गई, जब से लोग आयोग में मोटी रकम देकर नौकरी नहीं, बल्कि अफसरी पाने लगे थे। याद होगा कि एक दौर में आयोग बुरी तरह बदनाम हो गया था और आरोप लगा था कि एक ही जाति के लोग बहुतायत में एसडीएम और डिप्टी एसपी बने जा रहे थे।
इंसान की साख का भी हाल पौधे व पेड़ की डाल (शाखा) और भैंस की खाल जैसा होता है, जिसे मेहनत व सेवा करके बनाने-बढ़ाने में लंबा अरसा लग जाता है और बिगड़ने-काटने में चंद मिनट। कोई अधिकारी जब सफलता के लिए शॉर्टकट पकड़ लेता है तो फिर उसकी खाल भी भैंस क्या, गैंडे की तरह मोटी हो जाती है? दरअसल वह खुद को हाथी समझने लगता है। उसके बाद नैतिकता या शर्म के चाहे जितने लट्ठ मारो, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
वह शर्म और सम्मान से परे हो जाता है। न उसे मान की चिंता रहती है और न ही अपमान का भय। इन सब बातों से ऊपर उठ जाता है वह। यह अपनों को रेवड़ी बांटने की कला व कलाकारी ही थी, जिसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि अब परत दर परत खुलती चली जा रही हैं तेजतर्रार शिक्षा अधिकारी माने जाने वाले कौस्तुभ कुमार सिंह की। कभी जिन लोगों के पीछे पड़ा था यह अधिकारी, फिर साहस बटोर कर वही लोग जब पीछे पडे तो बखिया उधेडने के क्रम में पता चला कि जल्द करोड़पति बनने के चक्कर में मोटी रकम लेकर दूसरों की नियुक्तियां करने वाले की खुद की नियुक्ति ही धांधलेबाजी से हुई थी।
प्रपत्रों से पता चला है कि हत्या के आरोप में प्रयागराज जेल में साथी संजय वर्मा के साथ बंद इस बंदे की मुलाकात वहीं पर नियुक्तियों में धांधली के आरोप में बंद लोकसेवा उत्तर प्रदेश के आयोग के कथित सदस्य से हुई थी। उसी ने ज्ञान दिया था पीसीएस में बैकडोर एंट्री के बारे में यानी कि शॉर्टकट से कठिन परीक्षा पास करने का। इसी वाले रास्ते से पीसीएस (शिक्षा अधिकारी) बना था यह बंदा। इतना ही नहीं उक्त सदस्य द्वारा पेश की गई दो (मोटी रकम) पर एक फ्री की स्कीम के चलते और भी कई लोगों ने नियुक्ति पाई थी।
कुत्सित मति, रीति और नीति पर चलने के बाद भी अपनों व परायों से आंखें मिलाने तक में जब कोई दिक्कत न पैदा हो तो फिर आंखें चुराने का सवाल ही कहां पैदा होता है? बेशर्मी तब से और जिंदाबाद हो गई, जब से लोग आयोग में मोटी रकम देकर नौकरी नहीं, बल्कि अफसरी पाने लगे थे। याद होगा कि एक दौर में आयोग बुरी तरह बदनाम हो गया था और आरोप लगा था कि एक ही जाति के लोग बहुतायत में एसडीएम और डिप्टी एसपी बने जा रहे थे।
यह वह दौर था, जब किसी प्रकार पीसीएस प्री (प्रारंभिक परीक्षा) पास करनी होती थी, उसमें भी हाथों-हाथ आगे-पीछे फॉर्म जमा कर आगे-पीछे सॉल्वर बैठाकर दोयम दर्जे के भी परीक्षार्थियों को पास करा दिया जाता था। बाकी सब काम उक्त स्कीम के तहत हरे-हरे कड़क गांधी छाप कर देते थे। बाद में आयोग की सभी नियुक्तियों की जांच सीबीआई से कराने का फैसला लिया गया था।
उस मामले में सात साल में अभी सिर्फ इतनी ही प्रगति हो पाई है कि दो एफआईआर दर्ज हुई हैं, जिससे लगने लगा है कि नतीजा ढाक के तीन पात जैसा ही होने वाला है। आयोग से एक अन्य जिस नियुक्ति के बारे में पता चला है, वह आजकल शिक्षा विभाग में ही सहायक निदेशक जैसे पद पर आसीन है। उक्त एंट्री के बारे में चहार दीवारी के बाहर के लोगों को जानकारी न के बराबर होती थी। गांवों से लेकर कस्बों व महानगरों तक बस कई लाख लोग दीन-दुनिया, नाते-रिश्ते और मुंडन-बारात छोड़कर प्रतियोगिता पर विजय पाने के प्रयास में रात-रात भर लगे रहकर जवानी गलाते रहते हैं और पिता का पैसा भी।
ऊंची दीवारों के पार जब कोई जानकारी छनकर पहुंच भी जाती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, फिर भी तीर्थराज प्रयाग की जुझारू मानसिकता ने कई दशकों में कई बार आयोग का घेराव किया है, हंगामे किए हैं और बम फोड़े हैं। रही धरना व प्रदर्शन की बात तो वह तो तकरीबन हमेशा ही नॉर्मल कोर्स में किसी न किसी मुद्दे पर चलता ही रहता है। आजकल भी चल रहा है। कई प्रदर्शनकारियों को हाल ही में जेल भी भेजा गया है।
अपने पूर्ववर्ती के नक्श-ए-कदम पर चलकर वह शोहरत भी खूब पा रहे थे। युवा होने के कारण भाग-दौड़ व छापेमारी की कार्रवाई करके सुर्खियां भी खूब बटोर रहे थे, पर जैसे ही उनका फोकस भर्तियों के जरिए पैसा बटोरने पर हुआ, वैसे ही बनी-बनाई अच्छी-भली साख एक झटके में ही खेत हो गई। साथ ही बदनामी का पूरा का पूरा जिन्न बोतल से बाहर आ गया। उसके बाद मामले को जिले की सीमा के बाहर जाने में देर नहीं लगी।
राजधानी के अधिकारियों, कई तैनाती स्थलों, सूचना आयुक्त व लोकायुक्त के यहां से होते हुए बात उनके गृह जनपद तक पहुंच चुकी है और फिर हर उस जिले व विभाग में भी पहुंची, जहां-जहां उनकी नियुक्ति रही है। ऐसा भी नहीं था कि उन्नाव में इतना सब हो गया और जिलाधिकारी को पता ही नहीं चला, पर सपा सरकार में ऊंची पहुंच के चलते कोई उसका बाल बांका नहीं कर पा रहा था।
बीएसए रहते हुए नियुक्तियों में धांधली का पानी जब सिर के ऊपर से बहने लगा तो तत्कालीन जिलाधिकारी ने चार्ज छीन कर कार्रवाई की कोशिश की थी, परंतु शासन में पकड़ व प्रभाव के चलते दो माह तक उसने किसी को भी चार्ज नहीं दिया और दोमाह बाद पुनः उन्नाव पहुंच कर चार्ज छीन लिया और सीना ठोक कर विधि विरुद्ध नियुक्तियों को अनुमोदन भी प्रदान किया था। स्कूल महानिदेशक को जांच के लिए लिखे मांग पत्र में लखनऊ के एक वरिष्ठ अधिवक्ता रोहित त्रिपाठी ने कहा है कि इस शिक्षाधिकारी ने साथियों पर दबाव बनाकर अपने भाई अभिषेक की भर्ती व पोस्टिंग पैतृक गांव में ही करवा ली।
इस तरह नियुक्ति के साथ पोस्टिंग भी अवैध है। इसी तरह बहन ममता की भी भर्ती हुई थी, जिसे 2019 में ही बर्खास्त कर दिया गया था। उन्होंने कहा है कि उसके हाथों उन्नाव में की करीब दो दर्जन भर्ती की गई हैं। पूर्व बीएसए उन्नाव ने नियमों को ताक पर रखकर सहायता प्राप्त जूनियर विद्यालयों में सहायक अध्यापकों एवं प्रधानाध्यापकों की फर्जी व विधि विरुद्ध नियुक्तियां कर अवैध धन अर्जित किया है, जिससे बीबीडीयू के पास लखनऊ में एक करोड़ से अधिक की लागत का आलीशान घर बनवाया है।
साथ ही बताया कि सपा सरकार में कद्दावर मंत्री के विधानसभा क्षेत्र का निवासी होने के कारण वह खूब फूला और फला। यही समय उन्नाव में बीएसए पद पर नियुक्ति का था। चहेते सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी राजेश सिंह के एक पुत्र प्रतीक सिंह की नियुक्ति सरदार पटेल जूनियर हाईस्कूल चमियानी उन्नाव में की तो दूसरे पुत्र प्रदीप सिंह की नियुक्ति सरदार पटेल जूनियर हाईस्कूल में की थी।
राजेश के एक भाई दिनेश सिंह की नियुक्ति लाला शिव दयाल कन्या जूनियर हाई स्कूल मौरावां में लिपिक पद पर की तो दूसरे भाई बृजेश सिंह की पत्नी कामना सिंह की नियुक्ति जनता पूर्व माध्यमिक विद्यालय पतारी उन्नाव में प्रधान शिक्षिका के पद पर की, जबकि उनकी शैक्षिक योग्यता भी पूर्ण नहीं थी। चूंकि सारे ज्ञानी राजेश सिंह के ही घर में पैदा हुए, इस आशय का शपथपत्र उनसे भी लेना चाहिए कि प्रार्थी द्वारा लगाए गए सारे आरोप गलत हैं।
खंड शिक्षा अधिकारी पुरवा के भाई की नियुक्ति सर्वोदय विद्यापीठ पूर्व माध्यमिक विद्यालय नवई हसनगंज में की औरके डी यादव को हाजी रमजान खां जूनियर हाईस्कूल पुरवा में मानक को ताख पर रखकर प्राधिकारी नियंत्रक पद पर नियुक्ति किया। उन्होंने आरोप लगाया कि कौस्तुभ कुमार सिंह ने बिना किसी शसनादेश के ही अपने फायदे के लिए जिले में लगभग 350 स्थानांतरण किए,जिससे कहीं-कहीं छात्र व शिक्षक अनुपात भी गड़बड़ा गया था।ज्ञात हो कि जूनियर हाई स्कूल में लिपिक की भर्ती पर शासन से अगस्त 2015 से ही रोक है।
इसके बावजूद राघवेंद्र सिंह पुत्र प्रेम कुमार सिंह की लिपिक पद पर बजरंग शिक्षा निकेतन में नियुक्ति की गई। शासन को लिखे पत्र व लोकायुक्त से की गई शिकायत मेंपूरी जिम्मेदारी से उन्होंने आरोप लगाया कि 30 लाख रुपए लेकर बांके बिहारी कन्या जूनियर हाईस्कूल में प्रबंध समिति होने, शैक्षिक योग्यता पूर्ण न होने व आचार संहिता लागू होने के बाद भी छह नवंबर 2015 को एक प्रधानाध्यापक की नियुक्ति की गई। इसके अलावा चार सहायक अध्यापकों की भी नियुक्ति मानकों के विपरीत की गई।
जान-बूझकर प्रधानाध्यापक पद पर टीईटी पास अभ्यर्थियों की नियुक्ति इसलिए नहीं की गई, क्योंकि बीएड पास 40 लाख(विभाग में जमा प्रपत्रों में उल्लेख) लिए घूम रहे थे। इसी कारण उन्नाव, सुल्तानपुर व तैनाती के अन्य जनपदों में जान-बूझकर टीईटी वालों को प्रधानाध्यापक नहीं बनाया गया। इस तरह उन्नाव में कुल 16 प्रधानाध्यापक की नियुक्ति विधि विरुद्ध है। बाकी सहायक अध्यापक इससे इतर हैं।
उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालयने स्पेशल अपील (358/2016) पर 16 मई 2016 के अपने आदेश में स्पष्ट निर्देश दिया है कि बिना टीईटी पास किए नियुक्त अवैध है।साथ ही 05/12/2012 के बाद प्रधानाध्यापक पद के लिए टीईटी की योग्यता आवश्यक है। ऊंट दिखने की एक्टिंग करने वाले को आखिर शासन और कानून के पहाड़ के नीचे आना ही पड़ा। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में सुल्तानपुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी के तौर पर पहले ही सस्पेंड हो चुके कौस्तुभ कुमार सिंह को गाजीपुर डीआईओएस पद से भी हटा दिया गया है।
उन पर सहायक शिक्षा निदेशक ने जालसाजी का केस दर्ज कराया था औरपुलिस गिरफ्तारी के लिए छापेमारी कर रही थी। हालांकि बाद में बहाली करके कन्नौज बीएसए होते हुए गाजीपुर का जिला विद्यालय निरीक्षक बना दिया गया था। हरकतों में कोई सुधार न देखकर उन्हें पद से हटाने की कवायद शुरू कर भाष्कर मिश्रा को प्रभारी बनाया गया था। शासन द्वारा जारी हालिया सूची में भाष्कर को ही गाजीपुर का जिला विद्यालय निरीक्षक बना दिया गया है।
ज्ञात हो कि कौस्तुभ पर नियुक्ति के अलावा मान्यता और विभागीय योजनाओं में भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे। खेल तो बोर्ड के सेंटर बनाने में भी होता था, पर यह मुद्दा बड़ों की आड़ में खो गया। सस्पेंशन के बाद उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली थी। हैरत की बात है कि सभी को कठघरे में खड़े करने वाले ने खुद को कठघरे में खड़ा करते हुए एक ऐसे आदमी को उसी जिले में उन्हीं फाइलों का इंचार्ज बना दिया, जिन फाइलों की कुंडली खंगाली जा रही थी।
सभी को सतर्क रहना चाहिए था कि नामजद आरोपी सुबूतों को मिटाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, क्योंकि छात्र जीवन में भी कई अपराध करने के आरोप उस पर हैं। दरअसल कोर्ट से तैनाती के पहले ही सीडीओ और एडी बेसिक अयोध्या रवींद्रकुमार सिंह ने बीएसए कार्यालय में छापेमारी कर दस्तावेजों को कब्जे में ले लिया था और आलमारियों को सील कर दिया था,लिहाजा विभागीय जांच जारी रही और बड़े पैमाने पर धांधली का खुलासा हुआ था।
एडी रवींद्र ने बताया था कि बीएसए ने अपनी बहन ममता सिंह को कूट रचित दस्तावेजों के सहारे सुल्तानपुर के मोतिगरपुर ब्लॉक के एक जूनियर हाईस्कूल में नियुक्ति दी है। हत्या के एक मामले में भी वह अपने मित्र संजय वर्मा के साथ सह अभियुक्त है और उसे भी दोस्तपुर के विद्यालय में नियुक्ति दे दी।अन्य मामले भी पाए गए थे, जिसमें कुछ की जांच रिपोर्ट शासन को पहले ही मिल गई थी। कुछ रिपोर्ट शेष थीं। ऐसे में पुलिस ने बीएसए के विरुद्ध संगीन धाराओं में केस दर्ज कर विवेचना शुरू कर दी थी।
इसी बीच शासन स्तर पर पूर्व बीएसए के खिलाफ चल रही जांच सिरे पर पहुंची और उनके कार्यकाल में हुई तीन नियुक्तियों पर बर्खास्तगी की गाज गिरी। इनमें उनकी बहन ममता भी शामिल है। बीएसए रहते जूनियर हाईस्कूल चौहानपुर, मोतिगरपुर में ममता की नियुक्ति की थी। साथ ही संजय गांधी स्मारक पूर्व माध्यमिक विद्यालय विरैतापाली दोस्तपुर में सह अपराधी दोस्त संजय वर्मा की नियुक्ति की थी, उसे भी बर्खास्त कर दिया गया था। लघु माध्यमिक विद्यालय शहाबुद्दीनपुर करौंदीकलां में एक करीबी अभय कुमार सिंह की नियुक्ति की थी।
बाद में वह महात्मा सर्वेश जूनियर हाईस्कूल मालपुर सैनी बल्दीराय में स्थानांतरित हो गया था। उसकी भी नियुक्ति रद्द कर दी गई थी। ज्ञात हो कि इन सभी की नियुक्ति 25 नवंबर 2016 को हुई थी। उस दौरान कौस्तुभ कुमार सिंह स्वयं बेसिक षsh शिक्षा अधिकारी था। उसने बताया था कि चूंकि नियोक्ताधिकारी प्रबंधक है, इसलिए बर्खास्तगी का आदेश प्रबंधक ही जारी करेगा। बीएसए ने नियुक्तियों में दिया गया अनुमोदन निरस्तकर दिया था। इस तरह नियुक्तियां स्वतः अवैध हो गई थीं, पर इससे आपराधिक कृत्य व मानसिकता पर पर्दा तो नहीं पड़ सकता,वह तो डेढ़ दशक से उजागर होती रही है।
अवैध नियुक्तियों में बीएसए कौस्तुभ कुमार सिंह, खंड शिक्षाधिकारी पंकज यादव,शिव कुमार मौर्या व बीएसए के स्टेनो जय प्रकाश तिवारी को सम्मिलित होना पाया गया था, लिहाजा चारों पर निलंबन की कार्रवाई हुई थी। तीन शिक्षकों की सेवा समाप्ति के बाद अब तत्कालीन बेसिक शिक्षा अधिकारी के कार्यकाल में एडेड स्कूलों में हुई अन्य नियुक्तियों पर भी संशय के बादल मंडराने लगे हैं। यहां उल्लेखनीय है कि पूर्व बीएसए ने बहन समेत 43 शिक्षक गलत तरीके से नियमों को दर किनार कर नियुक्त किए थे।
अमान्य विद्यालयों को मान्यता देने के भी इस बंदे ने रेट तय कर रखे थे।डीलिंग के लिए तीन दलाल पाल रखे थे, जो उसके घर पर गुप्तमीटिंग क्लाइंट के साथ करते थे और पैसे का लेन-देन करते थे। विभागीय लोग भी सेवा और सहयोग में जुटे रहते थे। इस तरह कानून की धज्जियां उड़ाते हुए उसने 100 से ज्यादा विद्यालयों को फर्जी आधार पर मान्यता दे डाली थी। फर्जी नियुक्ति व मान्यता के खेल में पटल लिपिक अजय प्रताप सिंह उर्फ पिंटू भी साथी था।
बहन व दोस्तों की बर्खास्तगी के बाद उसके अनुमोदन पर नौकरी पाने वाले 40 अन्य शिक्षकों व गलत तरीके से मान्यता हथियाने वाले विद्यालयों पर भी कार्रवाई की तलवार लटक गई है।फर्जीवाड़ा करते समय वह बहुत होशियारी बरतता था। बहन व दोस्तों को भविष्य में बचाने का रास्ता भी उसने खोज निकाला था। एक तत्कालीन खंड शिक्षाधिकारी को बेसिक शिक्षा अधिकारी का प्रभार देकर व फाइलों को अग्रसारित करने का फरमान सुनाकर। इस बीच वह मेडिकल पर चला गया था ताकि कभी जांच हो तो फर्जी नियुक्तियों की तिथि पर जिले में उसकी मौजूदगी न पाई जाए। हालांकि वह कार्रवाई से बच नहीं सका।
हत्या में जेल व बेल, नियुक्तियों में खेल
इतना ही नहीं कौस्तुभ कुमार सिंह ने तत्कालीन बेसिक शिक्षा अधिकारी फतेहपुर विनय कुमार के सगे भाई राकेश कुमार की नियुक्ति महाराज बिंद्रा आश्रम बलदेवा आश्रम जूनियर हाईस्कूल राजेपुर उन्नाव में की थी। उसके बाद ही इस बात का खुलासा हुआ था कि चरित्र के चक्कर में हुई हत्या के आरोप में वह काफी समय जेल में रहा था, जहां आयोग का एक सदस्य भी बंद था। उस मुलाकात के बाद ही जुगाड़ से पीसीएस बना था यह आदमी। साथ ही विनय को भी बनवा दिया था।
उसी क्रम में पता चला कि यह विश्वविद्यालय का गुंडा था और इसका भाई भी। सुल्तानपुर में भी नियुक्ति के दौरान नियुक्तियों में जमकर धांधली की। दो साल के दौरान अपनी सगी बहन व प्रयागराज में हत्या के आरोप में जेल जाने वाले साथी की भी नियुक्ति की थी। कौस्तुभ कुमार सिंह ने यह बात जांच अधिकारी अपर सचिव बेसिक शिक्षा परिषद रही रूबी सिंह के सामने कूबूल भी की थी।
अशासकीय सहायता प्राप्त स्कूलों में 50 से अधिक शिक्षकों-कर्मियों व कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों में वार्डेन और पूर्णकालिक शिक्षक व लेखाकार आदि पदों पर चहेतों एवं जुगाड़ियों को नियुक्ति देने के मामले में भी कार्रवाई की गई है, फिर भी वह गाजीपुर के जिला विद्यालय निरीक्षक जैसे अहम पद को कई माह तक सुशोभित करता रहा। सुल्तानपुर जिले के लम्भुआ तहसील के बालमपुर गांव निवासी विजय गौतम ने भी शिकायत की है। लोक आयुक्त से बताया गया है कि बीबीडीयू के पास लखनऊ, प्रयागराज, सुल्तानपुर व आजमगढ़ आदि शहरों में भी प्रॉपर्टी खरीदी गई है, जिसमें कुछ बेनामी भी हो सकती है इसलिए परिजन भी जांच के दायरे में लाए जाएं, उनके भी खातों की जांच हो।
इसी कारण जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत पत्नी और बच्चों के भी बैंक खातों के डिटेल व उनके नाम संपत्ति की जानकारी मांगी गई है। साथ ही श्री बांके बिहारी कन्या जूनियर हाईस्कूल बांगरमऊ में प्रधानाध्यापक रेनू यादव व अल्का पटेल की नियुक्ति से संबंधित सूचनाएं मांगी गईं, लेकिन न विद्यालय और न ही विभाग में दोनों से संबंधित कोई सूचना ढूंढ़े मिली, जो कि जांच का विषय है। सगी बहन के बाद सगे भाई अभिषेक सिंह की न सिर्फ नियुक्ति करवा दी, बल्कि गांव में ही पोस्ट भी करा दिया। राज्य में विधि के शासन पर यह बड़ा सवाल है, जिसकी उच्च स्तरीय जांच अनिवार्य है।
इतना सब कुछ होने के बाद जब आरोपी के विरुद्ध कुछ होता नहीं दिखा तो आरटीआई का लोगों ने सहारा लिया। बेसिक शिक्षा अधिकारी/ जन सूचना अधिकारी आजमगढ़ से सूचना मांगी गई कि अभिषेक सिंह पुत्र चंद्रेज निवासी ग्राम गौरा ब्लॉक कौलसा, तहसील बूढ़नपुर, आजमगढ़ की नियुक्ति किस माह व वर्ष में की गई और नियुक्ति के सापेक्ष लगाए गए शैक्षिक योग्यता प्रमाण पत्रों की छायाप्रति उपलब्ध कराएं। गृह जिला छोड़िए, गृह गांव में पोस्टिंग किन प्रपत्रों के आधार पर की गई, उनकी छायाप्रति दें।
इस नियुक्ति के समय अभिषेक सिंह की चल-अचल संपत्ति कितनी थी? अब प्लॉट, भवन कितने हैं व कहां-कहां हैं? पत्नी व बच्चों के नाम कब-कौन प्रॉपर्टी खरीदी गई, पूरी जानकारी दें। अभिषेक व उनकी पत्नी-बच्चों के बैंक खाते किस-किस बैंक में हैं? नियुक्ति के पूर्व अभिषेक के विरुद्ध कितने मुकदमे पंजीकृत थे? प्रयागराज का भी ब्यौरा दें। यह कि नियुक्ति के समय अभिषेक ने शपथ पत्र पर आपराधिक मुकदमों को दर्शाया था या नहीं, लिखित में दें। उसके विरुद्ध किसी अन्य संस्था से जांच चल रही हो तो जांच की स्थिति लिखित में बताएं।
उक्त में कोई दिक्कत हो तो समस्त बिंदुओं पर अभिषेक सिंह से ही एक शपथ पत्र मांग लिया जाए। ऐसे ही दर्जनों जलते और चुभते सवाल कौस्तुभ कुमार के बारे में भी आरटीआई में कई बार किए गए थे, जिनका एक बार भी जवाब नहीं दिया गया। इसके बाद मामला सूचना आयुक्त की चौखट तक पहुंचा तो शिक्षा निदेशक माध्यमिक की ओर से भेजे गए गोल-मोल जवाब का नमूना देखिए।
वह कहते हैं कि रोहित त्रिपाठी द्वारा दायर वाद संख्या एस-1-1460/ ए/2023 के तहत जो सूचनाएं मांगी थीं, वे जिला विद्यालयनिरीक्षक गाजीपुर कौस्तुभ कुमार सिंह के मुताबिक निजी हैं, लिहाजा वह उन्हें उपलब्ध कराने के लिए तैयार नहीं हैं। भेजे गए पत्र में उन्होंने असहमति व्यक्त की है। उल्लेखनीय है कि प्रकरण तृतीय पक्ष से आच्छादित होने व गोपनीय होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपील संख्या-22/2009 में 31 अगस्त 2017 को पारित आदेश के परिप्रेक्ष्य में सूचना उपलब्ध कराना संभव नहीं है। इस पत्र के जवाब में लिखे गए पत्र में आवेदक ने कहा था कि कौस्तुभ सरकारी सेवक हैं।
उनकी सेवा से संबंधित सूचनाएं गुप्त रखने का कोई प्रावधान नहीं है। अपने कार्य, व्यवहार व आचरण के कारण वह जान-बूझकर मुकदमों की सूचना छिपा रहे हैं। यह शासनादेश के भी विरुद्ध है, जिसमें सभी कर्मचारियों को चल-अचल संपत्ति का विवरण पोर्टल पर अपलोड करना होता है। आरोपी के खिलाफ जांच भी हुई थी, पर उस जानकारी को भी छिपाया जा रहा है। कई बार कई स्तर पर प्रतिवादी ने प्रार्थना पत्र दिए हैं, परंतु किसी भी कार्यवाही की किसी भी स्तर से कोई सूचना नहीं है।
प्रयागराज में प्रतिवादी के विरुद्ध आपराधिक केस दर्ज होने की बात भी हर स्तर पर छिपाई जा रही है। किसी भी स्तर पर बात बनती न देख अब प्रतिवादी ने लोकायुक्त का रुख किया है। यह दीगर बात है कि काफी हील-हुज्जत के बाद अब वाद स्वीकृत हो गया है और सुनवाई के लिए 20 जनवरी 2025 की तारीख नियत की गई है। इससे पहले लोक आयुक्त कार्यालय के हवाले से कहा गया था कि प्रस्तुत परिवाद प्रपत्र के 6 (1) में आरोपी लोक सेवक का नाम, पदनाम व वर्तमान तैनाती अंकित नहीं की गई है। यह भी काम अब वादी ने पूरा कर दिया है। अब गेंद लोकायुक्त के पाले में है।