अब संविधान की तलवार……

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्याय की देवी की मूर्ति में हालिया बदलाव ने कानून और न्याय के प्रतीकों को नई दिशा दी है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के आदेश पर इस मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा दी गई है, और अब उसे संविधान की तलवार और न्याय का तराजू थामे हुए दिखाया गया है।

मूर्ति का नया स्वरूप

  1. आंखों से पट्टी हटाना: यह बदलाव यह दर्शाता है कि अब कानून “अंधा” नहीं रहेगा। इसका मतलब है कि कानून सभी के लिए समान है, बिना किसी भेदभाव के।
  2. संविधान की तलवार: मूर्ति के बाएं हाथ में संविधान की तलवार रखी गई है, जो यह प्रतीक है कि कानून का उल्लंघन करने पर कड़ी सजा दी जाएगी। यह एक सकारात्मक संकेत है कि संविधान के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाया जा रहा है।
  3. तराजू: दाहिने हाथ में रखा तराजू न्याय के संतुलन का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि भारतीय न्यायालय सभी पक्षों की सुनवाई करता है और निर्णय लेते समय तथ्यों और साक्ष्यों को ध्यान में रखता है।

ऐतिहासिक संदर्भ

इस बदलाव को औपनिवेशिक विरासत को समाप्त करने और नए कानूनों की श्रृंखला के संदर्भ में देखा जा रहा है, जैसे भारतीय दंड संहिता और भारतीय न्याय संहिता। यह एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न्याय और समानता की अवधारणाओं को मजबूत करेगा।

सामाजिक प्रभाव

यह परिवर्तन समाज में कानून के प्रति विश्वास को बढ़ाने और न्यायालय के कार्यप्रणाली को स्पष्ट करने का कार्य करेगा। न्याय की देवी की मूर्ति का नया स्वरूप इस संदेश को फैलाने में मदद करेगा कि कानून और संविधान सभी के लिए समान हैं, और न्यायालय निष्पक्षता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करेगा।

इस प्रकार, यह बदलाव न केवल एक प्रतीकात्मक बदलाव है, बल्कि न्यायपालिका की नई दृष्टि को भी दर्शाता है, जिसमें कानून की पवित्रता और निष्पक्षता को प्राथमिकता दी गई है।

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