
भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मानवाधिकार दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) में एक महत्वपूर्ण बयान दिया, जिसमें उन्होंने भारतीय कानूनी प्रणाली में दयालु और मानवीय न्याय को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने विशेष रूप से आपराधिक अदालतों में सुधार की आवश्यकता और कानूनों में बदलाव की बात की।
मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने यह बताया कि एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि हम अपनी कानूनी प्रणाली में दयालु और मानवीय न्याय को कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं और इसे बढ़ावा कैसे दे सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आपराधिक अदालतें एक ऐसा क्षेत्र हैं जहां सुधार की सबसे अधिक आवश्यकता है, ताकि न्याय का वितरण अधिक प्रभावी और न्यायपूर्ण तरीके से किया जा सके।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने कानूनों में बदलाव की आवश्यकता पर भी बल दिया, खासकर उन कानूनों में जो अब पुराने हो चुके हैं। उन्होंने यह कहा कि हालांकि कई अपराधों को अपराधमुक्त कर दिया गया है, फिर भी सुधार की प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए, ताकि कानून अधिक समकालीन और न्यायपूर्ण बन सके।
सीजेआई ने यह समझाने के लिए दो उदाहरण भी साझा किए कि विभिन्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों पर कानून के प्रभाव में असमानताएं कैसे स्पष्ट हो जाती हैं। सीजेआई ने कहा कि कानून के अनुसार छूट मिलने के अलावा किसी भी आरोपी को प्रत्येक तारीख पर व्यक्तिगत रूप से पेश होना पड़ता है। हालांकि अमीरों के लिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, एक रिक्शा चालक या दैनिक आजीविका कमाने वाले व्यक्ति के लिए, अदालत में एक दिन बिताने का मतलब पूरे दिन की मजदूरी खोना, वकील की फीस का भुगतान करना और अपने परिवार के लिए भोजन सुनिश्चित करना है।
मुख्य न्यायाधीश का यह बयान भारतीय न्यायिक प्रणाली के सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसमें दयालुता, मानवाधिकारों की रक्षा और सुधार की निरंतरता पर जोर दिया गया है।