

अनूप गुप्ता
दुनिया भर की सैकड़ों जगहों पर हजारों बार कहा गया है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा, लेकिन दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरू के हाल के हालात देखकर यही लगता है कि उससे पहले पानी के लिए कहीं गृह युद्ध न हो जाए। इस मुद्दे पर देश में युद्ध स्तर पर काम करने की जरूरत है तो इसके विपरीत हर स्तर पर लापरवाही हो रही है। हम देख रहे हैं कि दिल्ली विधानसभा के चुनाव-2025 में पानी व यमुना मुद्दा बन रही है। भले ही किसी के घोषणा या संकल्प पत्र में नमामि यमुना की बात न कही गई हो, पर अघोषित रूप से यमुना का रोज उद्घोष हो रहा है। यही लय बनी रही तो यमुना जी का जयघोष भी दूर नहीं क्योंकि आबादी है तो पहली जरूरत हवा व पानी की होगी। रोटी, कपड़ा व मकान का नंबर दूसरे, तीसरे व चौथे पर आएगा।
जीवनदायिनी नदियां मानव सभ्यता के हजारों-लाखों साल पहले से मौजूद रही हैं देश व दुनिया में, तभी तो हजारों साल पहले से नदी किनारे ऊंचाई पर ही बस्ती बसाने के प्रमाण विभिन्न सभ्यताओं में मिलते रहे हैं क्योंकि जीवन के लिए पानी जरूरी था, है और रहेगा। पानी का स्रोत सिर्फ नदी, नाले, तालाब, झील और झरने ही थे उस कालखंड में। न कोई वाटर सप्लाई योजना थी और न ही हैंड पंप, ट्यूबवेल या नहर जैसे अन्य साधन। आज के किसी भी बड़े व पुराने शहर का दृष्टांत ले लीजिए, वह किसी न किसी नदी के किनारे ही स्थित है। फिर भला अपना लखनऊ इस सत्य से कैसे अछूता रह जाता?
ऐसी सरस सलिला व राजधानी निवासियों की हजारों साल से सेवा करने वाली मां गोमती पर भी राजधानी के एक बड़े भू-माफिया ने करीब डेढ़ दशक से न सिर्फ नजरें गड़ा दी हैं, बल्कि गिद्ध दृष्टि के कारण प्रवाह के समानांतर एक किमी लंबी दीवार बनाकर धारा मोड़ दी है, जिससे स्वच्छंद प्रवाह व विस्तार क्षेत्र निश्चित रूप से प्रभावित हुआ है। नदी के थाले में जो सरोवर थे, उन्हें कब्जे में लेकर जलक्रीड़ा करवा रहा है। रोजाना सैकड़ों लोग पैसे देकर अठखेलियां कर रहे हैं। यह बातें हम नहीं कह रहे, बल्कि दर्जनों प्रार्थना पत्रों के जरिए दर्जनों अधिकारियों व नेताओं से लेकर हाई कोर्ट तक कह चुके हैं दर्जनों किसान।
गोमती के थाले में उन्हीं के पानी से उगाया गया अन्न न सिर्फ किसान की थाली से होते हुए उदर में जाकर भूख मिटाता है, बल्कि बच्चों के कॅरिअर के सपने भी पालने की इजाजत देता है। लाखों स्थानीय लोग इसी कारण प्यार से गोमती मैया कहते हैं।किसानों की गंगा के बारे में आरोप है कि भू-माफिया ने जितनी जमीन खरीदी थी, उससे दोगुना पर कब्जा कर रखा है, फिर भी वह चीरहरण पर आमादा है। यह हाल तब है, जब मुख्यमंत्री कब्जों के दुश्मन माने जाते हैं। ऐतिहासिक रूप से हजारों भू-माफिया पर केस हुए हैं। बुलडोजर गरजे हैं व सलाखों के पीछे भी भेजे गए हैं।

इसके बावजूद कुछ लोग हैं, जो कहीं न कहीं से व किसी न किसी तरीके से चार पैसे हाल के दशक में कमाने एवं सत्ता बदलते के बाद पाला बदल सत्ताधारी पार्टी का चोला धारण कर झंडा उठा लिए हैं और दो नंबर के काम में लगे हैं। शहर के बड़े नेता के दरबार में नाक रगड़ते ही सात खून माफ हो गए हैं और सिस्टम का भी रुख उनको लेकर ठंडा पड़ने लगता है। इस प्रकार स्याह को सफेद करने का कार्यक्रम चालू है। यह सब उस दौर में किया जा रहा है, जब उच्चतम न्यायालय ‘जलस्रोतों’ व नदी के थाले में स्थायी निर्माण को लेकर सख्त है व आदेश भी है कि पुराने पाट दिए गए हैं तो कब्जे हटाकर खुदाई कराएं। यदि मकान बन गए हैं तो गिराएं। सैकड़ों करोड़ से गांव-गांव में नए खुदवाने के लिए प्रदेश सरकार योजना चला रही है।
तालाबों में पशु-पक्षियों के लिए गर्मी में पानी भराने के निर्देश ग्राम प्रधानों को दिए जाते हैं। पेट नहीं भरने के कारण भू-माफिया ने प्रदेश के नक्शे से हजारों तालाब गायब कर दिए हैं। उन पर हजारों मकान खड़े हैं। हैरत इस बात पर है कि मूर्ख लोग पसीने की कमाई से तालाबों की जमीन खरीद रहे हैं। गोमती के मामले में भी यही हुआ है। नदियों व भूजल को संरक्षित नहीं किया गया तो निश्चित तौर पर आने वाली पीढ़ी के लिए बड़ा धर्म संकट खड़ा हो जाएगा। राजधानी की 70 लाख आबादी के लिए किसी न किसी प्रकार से सीधे तौर पर गोमती जीवनदायिनी हैं, लेकिन विडंबना देखिए मायावती सरकार (2007-12) में बीकेटी तहसील क्षेत्र में गोमती के किनारे एक वाटर पार्क बनना शुरू होता है और सपा शासन में 2013 में तैयार हो जाता है।
विस्तार पर आमादा होकर किसानों और गोमती नदी की जमीन पर कब्जे शुरू कर देता है, पर दुःखद यह है कि चाल, चरित्र और चेहरा की बात करने वाली पार्टी 2017 में सत्ता में आती है, तब से सैकड़ों लोग बीकेटी से लेकर हाईकोर्ट तक चक्कर लगा रहे हैं, पर कब्जाधारी का बाल बांका नहीं हो पा रहा है। दीगर बात है कि योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते वक्त 24 करोड़ आबादी को भरोसा दिलाते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति लागू होगी। भ्रष्टाचारी को पनपने नहीं देंगे, जो बचना चाहें, वे प्रदेश छोड़ जाएं। बड़े अपराधी सलाखों में जाते हैं या फिर दूसरी दुनिया। प्रदेशवासियों को गुंडाराज से मुक्ति भी मिलती है। बुलडोजर भी न्याय करता है सैकड़ों के साथ और अरबों की सरकारी जमीनें भी खाली कराई जाती हैं, पर आठ साल पूरे होने को हैं, फिर भी बीकेटी के मामले में लापरवाही क्यों हो रही है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है? कहां है एंटी भू-माफिया फोर्स और कानून ?
हैरत है कि अधिकारी पीड़ितों से कहते हैं कि कुछ बिगाड़ नहीं पाओगे भू-माफिया का इसलिए घर बैठो। किसानों, मजदूरों, मजबूरों, मजलूमों व मुफलिसों की राजधानी में आवाज बुलंद करने के कारण पुलिस, प्रशासन, भू-माफिया व अराजकतत्वों की आंख की किरकिरी बन चुके जेल तक जाने वाले दीपक शुक्ला उर्फ तिरंगा महाराज सिस्टम की चौतरफा मार झेल रहे हैं। कई बार हमले और जान से मारने की धमकियां मिलने के बाद अधिकारियों को लिखे पत्र में उन्होंने जान का संकट बताते हुए कई बार जिला प्रशासन से सुरक्षा मांग चुके हैं, पर दी नहीं गई अभी तक। सवाल उठता है कि पुलिस कहीं एक और कमलेश तिवारी की राह तो नहीं देख रही। अपनी बात कहने के लिए आईआईएम के निकट दृष्टांत न्यूज के स्टूडियो आए शुक्ला कहते हैं कि हत्या के बाद कोई भी राजनेता घर न आए सियासी रोटियां सेकने, क्योंकि अभी तक की लड़ाई में किसी भी दल ने साथ नहीं दिया है।
हमने सभी के दरवाजे दर्जनों पीड़ित किसानों को ले जाकर देख लिया है। यह पूछने पर कि किसान मौके पर विरोध करने क्यों नहीं गए कि जमीन उनकी है, के प्रश्न पर कहा कि कई बार गए, धरना लगाया। भू-माफिया के गुर्गे किसानों को मार-पीट कर भगा देते हैं और नहीं मानने पर कहते हैं कि तुम्हारी जमीन नदी में चली गई है। लाख टके का सवाल है कि नीलांश की जमीन नदी में क्यों नहीं चली गई? जिस पर कब्जा कर दिन-रात विस्तार कर रहे हो, वह किसकी है और खरीदी कितनी थी? बक्शी तालाब तहसील के अंतर्गत राजापुर व बहादुरखेड़ा आदि गांवों की पचासों बीघा जमीन कब्जा कर तट पर खड़ा किया गया है नीलांश वाटर पार्क। कैसे पता चला कि समूह ने किसानों की जमीनें कब्जा कर रखी हैं।
संभव है कि उसने खरीदी हों? इस पर उन्होंने कहा कि खरीदी है, पर कब्जा दोगुने से ज्यादा पर कर रखा है। एसडीएम मलिहाबाद की आख्या का भी हवाला दिया कि नीलांश ने सरकारी जमीन कब्जे में कर ली हैं और उस पर विभिन्न गतिविधियां भी संचालित कर रहा है। जिलाधिकारी के जरिए हाईकोर्ट को भेजी रिपोर्ट में कहा था कि दीपक व अन्य निवासी ग्राम बदैया व टिकरीकलां ने आईजीआरएस पोर्टल पर प्रार्थना पत्र 15157220030990 प्रस्तुत किया था। नीलांश वाटर पार्क के मालिक सतीश श्रीवास्तव द्वारा प्रार्थीगणों की पुश्तैनी जमीन तथा गोमती नदी की सरकारी भूमि पर कब्जे के संबंध में है। जांच के बाद तहसीलदार की आख्या में कहा है कि बदैया स्थित गाटा सं. 995/00.582 व 996/0.013 हे. नदी का भाग गाटा संख्या 1041/1.037 हे. तालाब नीलांश प्रापर्टीज की हद में है।
गाटा सं. 1041/11.037 हे. भूमि तालाब के रूप में दर्ज है, जिस पर नीलांश द्वारा सैलानियों को नौका विहार कराया जा रहा है। गाटा संख्या 995/0.5820 996/0.013 भी तालाब के रूप में दर्ज है, किंतु उसे भी प्लाटिंग के अंदर कर लिया गया है। गाटा 1022 नदी खाते में दर्ज है, जिस पर नीलांश ने प्रवेश गेट बना रखा है। वर्तमान में नदी मूल स्थान पर नहीं बह रही है। धारा 67 के तहत न्यायालय तहसीलदार मलिहाबाद में वाद सं. टी202010450100375 व टी202010460100376 विचाराधीन है। दूसरी ओर एसडीएम बीकेटी हैं, जो धरना न लगाने के लिए कहकर मौके पर भेजते हैं, जहां उन्हीं के कारिंदे हमला करते हैं व फोन छीन लेते हैं। पुलिस भी उन्हीं की चाकरी कर रही है।
यह दीगर बात है कि मौके पर पहुंचा पुलिस व राजस्व प्रशासन उनके ज्वलंत सवालों का उत्तर देने के बजाय बगलें झांकता नजर आया। किसी भी स्तर पर सुनवाई नहीं होने के बाद अंतिम उम्मीद के रूप में उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया है ताकि नदी व तालाबों की करीब 50 बीघा जमीन नीलांश वाटर पार्क के कब्जे से मुक्त कराई जा सके। जनहित याचिका संख्या 10/2024 की सुनवाई के तहत दोनों पक्षों के वकीलों को सुनने के बाद जस्टिस एआर मसूदी व न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की पीठ ने कहा था कि सार्वजनिक भूमि अर्थात नदी तल पर विपक्षीगण संख्या 10 से 16 द्वारा कब्जा करने की शिकायत की गई है। वे संपत्ति का व्यावसायिक उपयोग कर रहे हैं, बावजूद इसके कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67 के अंतर्गत गांव सभा द्वारा कार्यवाही प्रारंभ की जा चुकी है।
इसके पश्चात बेदखल करने का निर्णय लिया गया है। साथ ही प्रमुख सचिव राजस्व को आदेश दिया गया कि एक माह में हलफनामा दाखिल करें, जिसमें साल भर से हीलाहवाली की जा रही है। उप मंडल मजिस्ट्रेट, मलिहाबाद द्वारा वाद सं. 03096/2019 में अतिक्रमण हटाने का आदेश 20 जनवरी 2020 को दिया जा चुका है, फिर भी संबंधित प्राधिकारियों द्वारा कुछ नहीं किया गया है। याचिका में दी तस्वीरों से प्रथम दृष्टया लगता है कि विचाराधीन भूमि पर वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए स्थायी निर्माण किया गया है। पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने के लिए नदी-तल पर स्थित भूमि का उपयोग हरियाली या मनोरंजन पार्क विकसित करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन बिना कोई स्थायी संरचना बनाए हुए। वर्तमान मामले में ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि किसी भी प्रकार राज्य व कानून की चीजों को आगे बढ़ा रहा है।

यदि विपक्षी पक्षकारों के पास कोई स्वीकृति हो तो पटल पर रखें। प्राधिकारी की रिपोर्ट एक माह के भीतर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाए। इसके बाद ही डीएम के जरिए रिपोर्ट पेश की गई थी और धारा-67 के अंतर्गत पारित आदेश का क्रियान्वयन खुला छोड़ दिया गया था। मुख्यमंत्री जी यह क्या हो रहा है राजधानी में? आपके नीचे की मशीनरी क्या-क्या गुल खिला रही है प्रतिष्ठा को धूल-धूसरित करने के लिए? पैसे वाले की ही हर जगह सुनवाई होगी तो गरीब किसान व साधारण कार्यकर्ता कहां जाएगा? सीएम पोर्टल को भी दीमक की चाट रहे हैं कुछ लोग। किसानों की भी कहीं कोई सुनवाई होगी या नहीं? उपरोक्त प्रकरण का संज्ञान लेकर उचित कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है? वह कहते हैं कि नीलांश वाटर पार्क के मालिक राजेश श्रीवास्तव कांग्रेस नेता थे। संतोष श्रीवास्तव अब भाजपा नेता हैं। सतीश श्रीवास्तव और मदन लाल भी साझेदार हैं। अगर कायदे से जांच करा ली जाए तो भाजपा के कई बड़े नेता भी बेनकाब हो जाएंगे।
आज कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि किनकी स्वीकृति से बनाया गया था। किसकी जवाबदेही है? ग्रामीणों के साथ आधा शरीर गोमती के जल में डुबोकर रोष प्रकट किया था, पर प्रशासन और शासन के कान में जूं नहीं रेंगा। वाटर पार्क मुंह चिढ़ा रहा है कि हां, भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ा हूं, जो बिगाड़ना हो, बिगाड़ लो। दीपक शुक्ला उर्फ तिरंगा महाराज ने बताया कि 2007 में कुछ जमीन पर छोटी सी कंपनी शुरू की। वेग बढ़ाते हुए 2013 तक नदी व किसानों की पचासों बीघा से अधिक जमीन कब्जा कर ली। पहले ऊसर कब्जाया, फिर बंजर, फिर नदी का बांगर और फिर अगल-बगल के किसानों के नंबर भी अंदर कर लिए। करीब डेढ़ किलोमीटर लंबाई में नदी में मोटी कंक्रीट की दीवार बना ली। पूरे प्रशासन के मुंह पर ताला पड़ा है कि यह दीवार कैसे बनी?
सुप्रीम कोर्ट की रोक है। हाईकोर्ट के संज्ञान में बात है। कार्रवाई हो गई तो दर्जनों लोगों की नौकरी हाईकोर्ट ले लेगा। इन लोगों को कहां से संजीवनी मिल रही है, पर कहा कि संरक्षण तो कहीं से तो मिल ही रहा होगा, पर यह प्रशासनिक घोटाला है क्योंकि उन्हीं की साठ-गांठ से भू-माफिया ने किया है। यह शांत इलाका था व खुशहाली के लिए जाना जाता था। अब पवित्र गोमती की गोद में अय्याशी का अड्डा चल रहा है। अब शबाब, कबाब एवं शराब सब यहां उपलब्ध है। इतना बड़ा आरोप किस आधार पर लगा रहे हैं? के सवाल पर कहा कि 10 बजे के आसपास 10 मिनट सड़क पर खड़े हो जाएं तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। नेकर में लड़कियां जाते दिख जाएंगी तो सिगरेट उड़ाते व शराब के नशे में गाड़ियां लहराते लड़के भी। क्षेत्र का माहौल खराबहो चुका है।
इस कारण अराजक तत्व पनप रहे हैं। गंदे कचड़े व पानी को गोमती में डाल रहे हैं। क्या भाजपा कार्यकर्ता होने के नाते नाम छिपा रहे हैं, पर कहा कि तहसील व थाने के अधिकारी बदलते रहते हैं। एसडीएम सतीश चंद्र ने आश्वासन देकर पैमाइश के लिए नीलांश भेजा तो वहां हम सब कूट दिए गए और वह रिपोर्ट तक नहीं दर्ज करवा सके। किस पर भरोसा करें और किस पर नहीं? मदद के बजाय सरकारी अधिकारी उल्टे धमकी देते हैं कि तुमसे क्या लेना-देना, क्यों नेता बन रहे हो? वे बड़े लोग हैं। तुम चक्कर में न पड़ो। कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे नीलांश का।
संतोष आज भाजपा नेता के रूप में खुद को स्थापित कर चुका है। किस नेता का संरक्षण है? यह बताओ, भाजपा तो समुद्र है, भाजपा कार्यकर्ता हो, कहीं इसलिए नाम नहीं लेना चाहते हो, के सवाल पर कहा कि मेरी हत्या कर दी जाएगी। स्टूडियो से बाहर निकलूंगा कुचल कर मार देगा कोई। शासन, प्रशासन में ऐसा कोई सक्षम अधिकारी नहीं है, जिसको तिरंगा महाराज ने शिकायत ना की हो, परंतु कुछ न होना चौंकाता है। उल्टे जब किसानों को न्याय दिलाने और गोमती के लिए 25 दिसंबर 2024 को धरने पर बैठा तो अधिकारियों नेताओं के आदेश पर पुलिस द्वारा उठवा लिया गया। मेडिकल कराने के बाद रात भर थाने में रखा गया। सुबह लोग जब तक पहुंचे, तब तक जेल भेज दिया गया। पुलिस रिमांड पर मांग रही थी, पर वकील और न्यायालय ने जमानत कराई। 2014 से लगातार लड़ाई लड़ रहे हैं जमीन से लेकर हाईकोर्ट तक।
हताशा-निराशा के बाद भी थका नहीं हूं और अंजाम तक पहुंचा कर रहूंगा। जरूरत पड़ी तो कंटेम्ट ऑफ कोर्ट में भी जाऊंगा। हद कर दी है ढीठ लोगों ने कि लखनऊ का सांसद व रक्षामंत्री और आवासन एवं शहरी कार्य राज्य मंत्री, भारत सरकार पत्र लिखते हैं व बीकेटी एमएलए फोन करते हैं, फिर भी कारवाई नहीं होती। बीकेटी तहसील में 16 अक्टूबर 2024 को धरना दिया तो पत्रकार रेखा मिश्रा की आईडी से फेसबुक पर बदनाम किया जा रहा है। दुःख प्रकट किया कि कुछ बिके हुए लोग दलाल, धरने को कमाई का जरिया, किसी को साइकिल चोर तो किसी की कटूटे के साथ गिरफ्तारी बताते हैं। सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्ट डालने के खिलाफ भी शिकायत की, पर उसमें भी कुछ नहीं किया गया।
डीएम से मांगी जल समाधि की अनुमति
जिलाधिकारी को संबोधित एक पत्र में वह कहते हैं कि 104 किसानों की पत्रावली गायब कर रोजी-रोटी छीनी जा रही है। जानलेवा हमले के आरोप में लेखपाल तुषार को बर्खाश्त कर जेल भेजने, फोन वापस कराने, किसान प्रतिनिधिमंडल को मुख्यमंत्री से मिलाने और गोमती पर कब्जा कर बनाए गए वाटर पार्क की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है। उक्त मांगों को लेकर शांतिपूर्वक धरना देते हुए सरकार का ध्यान आकर्षित कर रहे थे तो न सिर्फ जानलेवा हमला किया गया, बल्कि जेल भी भेजा गया इसलिए पवित्र गोमती नदी में जल समाधि की अनुमति दी जाए। कहीं ऐसा तो नहीं कि टारगेट किया जा रहा हो, पता करने के लिए केस स्टडी की गई तो पता चला कि एक केस और भी है, जिसे किसानों के लिए दीपक तहसील से लेकर हाई कोर्ट तक गए हैं।
ग्राम बहादुरपुर, राजापुर मजरा सुल्तानपुर, परगना महोना, तहसील बीकेटी, लखनऊ के 104 लोगों को 2002 में राजस्व कर्मियों ने ही मायावती सरकार के आदेश पर पट्टा किया था, जिसकी इंतखाब किसानों के नाम है व पीएम किसान सम्मान निधि भी पा रहे हैं। फिर भी एसडीएम के आदेश पर उनके खिलाफ बेदखली की कार्रवाई की गई, जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। अब अधिकारियों का फंसना तय है इसलिए बचने के रास्ते खोजे जा रहे हैं या ट्रांसफर करवा कर भागने के। वह आशंका प्रकट करते हैं कि संभव है कि आगे कभी सुनने में आए कि आग लग गई है और फाइलें जल गईं। भले ही कई किसान दौड़ते-दौड़ते गुजर गए हों, पर उनके बच्चों व अन्य परिजन ने इंसाफ की आस छोड़ी नहीं है। यह तथ्य अज्ञात है कि दो दशक से अधिक समय बीतने के बाद अब वही कर्मी जमीन वापस क्यों लेने पर तुले हुए हैं?
तहसील के फैसले में राजस्व कर्मियों को ही कठघरे में यह कहकर खड़ा किया कि उनसे साठ-गांठ कर फर्जी तरीके से किसानों ने अपने-अपने नाम दर्ज करा लीहै। प्रश्नगत भूमि ग्रामसभा की है, जो किसानों के नाम अभिलेखों में असंक्रमणीय भूमिधर के रूप में गलत तरीके से दर्ज हो गई है। उक्त भूमि रकबा ग्रामसभा के भूमि गाटों से खारिज नहीं की गई है। उक्त भूमि का पट्टा कभी नहीं किया गया है। ऐसी कोई पत्रावली तहसील में उपलब्ध नहीं है। अतः किसानों के नाम निरस्त करना न्याय व ग्रामसभा के हित में आवश्यक है, अन्यथा सरकार को अपूर्णनीय क्षति होगी। दूसरी ओर किसान कहते हैं कि पत्रावली संभाल कर रखना तहसील का काम है। आरोप लगाते हैं कि हमसे रोजी-रोटी छीनकर भू-माफिया को इस पर भी कब्जा करवा सकते हैं ये लोग इसलिए किसान हाईकोर्ट गए थे।
याचिका में पटूटे वालों को बेदखल होने से रोकने की अपील की गई थी। जस्टिस जसप्रीत सिंह ने वकीलों को सुना और कहा कि उत्तर प्रदेश राजस्व अधिनियम की धारा-38 के तहत शुरू की गई कार्यवाही की स्थिरता के बारे में मुद्दा उठाया गया है। गांव सुल्तानपुर, परगना महोना, तहसील बक्शी तालाब, जिला लखनऊ के संबंध में विपक्षी के हवाले से कहा गया है कि उत्तर प्रदेश चकबंदी अधिनियम 1953 की धारा 4 के चकबंदी कार्य प्रगति पर है, लिहाजा संपूर्ण कार्यवाही स्वतः ही क्षेत्राधिकार से बाहर हो जाती है। कहने का आशय यह है कि मिलीभगत से दो-चार को पट्टा किया जा सकता था या 104 भूमिहीनों को। यदि इतने लोगों को तहसील कर्मियों की मिलीभगत से पट्टा किया गया तो फिर यह बहुत बड़ा घोटाला है।
कोर्ट ने राज्य को प्रति शपथ पत्र दाखिल करने का आदेश दिया, जिसके बाद प्रत्युत्तर शपथ पत्र दाखिले के लिए दो सप्ताह का समय याची के वकील का शुरू होगा। 12 सितंबर 2024 को स्टे ऑर्डर देते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि अगले आदेश तक धारा 38 के अंतर्गत कार्यवाही स्थगित रहेगी। इसके बाद निर्भय, कुंदनलाल, रामदुलारे, बुधई, रामबिलास, रज्जन लाल, सुमिरता, लीलावती, राम देवी और विनोद कुमार आदि दर्जनों किसान तहसील के चक्कर काटते हैं कि चकबंदी के नाम पर बर्बाद न किया जाए और 2002 में जो पट्टा शासन ने दिलाया था, उसे बरकरार रखा जाए। चकबंदी कोर्ट में सुनवाई न करने की अपील करते हैं कि कार्यवाही को स्थगित करना न्यायहित में आवश्यक है।
खुद वादी बनी पुलिस, दर्ज कराए छह केस
उन्होंने कहा कि नीलांश-किसान प्रकरण में बड़ी अजीब बात यह है कि हाल के साल में करीब आधा दर्जन मुकदमे हम लोगों पर दर्ज हुए हैं, लेकिन ये सारे के सारे पुलिस ने खुद दर्ज कराए हैं। कोई प्राइवेट पार्टी अभी तक सामने नहीं आई है और न ही आएगी। आने की जरूरत ही क्या है, जब गुर्गे का काम पुलिस ही कर रही है। हर बार सरकार यानी कि पुलिस का वादी बनना चौंकाता है, परेशान करता है, जबकि किसानों के साथ-साथ वह सरकारी जमीन को ही बचाने के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन लगता है कि तहसील प्रशासन ने सरकारी जमीन वाटर पार्क के नाम लिख दी है। इसके विपरीत उनकी कोई भी रिपोर्ट आज तक नहीं लिखी और न ही गठरी भर अधिकारी मिलकर लिखवा सके।
वह कहते हैं कि बात चाहे केन-बेतवा के मिलन कीहो या नमामि गंगे की या फिर गोमती की सफाई की। नदियां तो डबल इंजन की सरकार की प्राथमिकता में शामिल रही हैं, फिर गोमती के हक की आवाज किसी का न सुनना हैरत भरा है। एक ओर सरकारी अमला दूसरे जिलों में सरकारी जमीनों पर रोज ही बुलडोजर चलाकर कब्जे हटा रहा है, पर बीकेटी प्रशासन दो पैसे के लालच में मौज की नींद सोने का ढोंग कर रहा है। पुलिस प्रशासन साफतौर पर कहता है कि नीलांश को भूल जाओ और कोई काम हो तो बताओ। यह हाल है जिला प्रशासन का। उन्होंने कभी कानून को हाथ में नहीं लिया और हमेशा धरना लगाकर शांतिपूर्वक अपनी बात कहते रहे हैं। फिर भी पुलिस नारेबाजी व शांतिभंग में जेल भेजती है। पहले दीपक ने धरनास्थल पर अपने व किसान महिलाओं के संग मारपीट की बात कही थी।
इसकी भी कभी शिकायत नहीं दर्ज की। कप्तान से लेकर आईजी व मुख्यमंत्री के पोर्टल तक दर्जनों शिकायतें कर चुके हैं, पर सुनी नहीं गई। 25 नवंबर 2024 को किसानों की समस्याओं को लेकर धरना लगा था, जहां उपजिलाधिकारी बीकेटी आए और किसानों को न्याय देने बात कर बताया कि वाटर पार्क द्वारा कब्जा की गई सरकारी जमीनें चिन्हित की जाएंगी। वहीं पहुंचो, टीम आ रही है। बीकेटी व मलिहाबाद के तहसीलदार टीम लेकर पहुंचे। दूसरे दूसरे नंबरों की पैमाइश करने लगे, तभी यह कहते ही कि गाटा संख्या-1022 की जांच हो, जिस पर लेखपाल तुषार भड़क गया और जानलेवा हमला कर दिया। सड़क पर गिराकर इतना मारा कि सिर फट गया एवं आंख में भी चोट आई। फोन छीनकर पटक दिया। पुलिस फोन तक नहीं दिला सकी है।
राजस्व टीम ने बाद में किसी तरह जान बचाई। किसी भी प्रकार की कानूनी कार्यवाही की दशा में उसने जान से मरवाने की धमकी भी दी। पुलिस व अन्य अधिकारियों को दिए गए प्रार्थना पत्र में उन्होंने कहा है कि भू-माफियाओं से साठ-गांठ है। भू-माफिया की शह पर ही हमला किया गया है और हत्या भी की जा सकती है। इसके बावजूद पुलिस ने रिपोर्ट नहीं दर्ज की है अब तक, लिहाजा धारा-156 (3) के तहत केस दर्ज कराने की कोशिश में लगे हैं क्योंकि पुलिस व तहसील प्रशासन भू-माफिया के चरणों में लोटता नजर आता है। उल्टे एक माह बाद धरने से उठाकर जेल भेज दिया गया। इन्हीं कारणों से लोग जाते हैं विधानसभा के सामने अपनी बात कहने।