रिटायरमेंट पर भावुक हुए न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़

न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ का कार्यकाल भारतीय न्यायपालिका के लिए महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक था। वे भारतीय सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख न्यायधीश के रूप में 2022 से 2024 तक कार्यरत रहे और इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसले सुनाए। उनके कार्यकाल में कुछ ऐसे निर्णय हुए, जिन्होंने भारतीय संविधान, नागरिक अधिकारों, और समाज के विभिन्न पहलुओं को नए दृष्टिकोण से देखा। 8 नवंबर भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में डीवाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल का अंतिम दिन था। अपने अंतिम कार्य दिवस पर डीवाई चंद्रचूड़ ने कृतज्ञता और विनम्रता के साथ अपनी न्यायिक यात्रा पर विचार साझा किया। इस दौरान वो भावुक भी नजर आए। उन्होंने कहा कि अगर मैंने कभी अदालत में किसी को ठेस पहुंचाई है, तो कृपया मुझे उसके लिए माफ कर दें। पूर्व सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ के बेटे के रूप में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद तक पहुंचने वाले पिता-पुत्र की एकमात्र जोड़ी रही थी।  न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचूड़ को 1978 में सीजेआई के पद पर नियुक्त किया गया था और वह 1985 में सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होंने इस पद पर सात साल के सबसे लंबे कार्यकाल तक सेवा की हैं। उनके बेटे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो साल से थोड़ा अधिक का रहा। अपने कार्यकाल के दौरान, वाईवी चंद्रचूड़ ने संजय गांधी को फिल्म “किस्सा कुर्सी का” के एक मामले में जेल की सजा सुनाई थी। ऐसे में आपको जस्टिस चंद्रचूड़ के कुछ ऐतिहासिक फैसलों के बारे में बताते हैं। 

यहां कुछ प्रमुख फैसले दिए गए हैं जो उनके कार्यकाल में चर्चित रहे:

1. स्वतंत्रता और निजता का अधिकार (Privacy as a Fundamental Right)

न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ का निजता अधिकार (Right to Privacy) पर महत्वपूर्ण निर्णय था। 2017 में, उन्होंने पुट्टसवामी केस में निजता को भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में घोषित किया था। उन्होंने यह माना कि निजता केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा नहीं, बल्कि स्वतंत्रता का एक अभिन्न अंग है, जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए। उनके द्वारा दिए गए फैसले ने डिजिटल डेटा सुरक्षा और निजी जीवन की सुरक्षा को लेकर गंभीर चर्चाएँ उत्पन्न की थीं, और कई सरकारी नीतियों और प्रौद्योगिकी कंपनियों के कार्यों को प्रभावित किया।

2. एलजीबीटीक्यूIA+ अधिकार (LGBTQIA+ Rights)

नैतिकता और स्वतंत्रता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, उन्होंने धारा 377 (Sodomy Law) को संविधान के खिलाफ घोषित किया। उन्होंने निर्णय लिया कि समलैंगिकता का अपराधीकरण संवैधानिक रूप से गलत है और यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। 2018 में, उनके द्वारा दिए गए इस फैसले ने भारतीय समाज में समलैंगिकता को लेकर सकारात्मक बदलाव की दिशा दिखाई। यह निर्णय मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से ऐतिहासिक था।

3. धार्मिक स्वतंत्रता और महिलाओं के अधिकार

चंद्रचूड़ जस्टिस ने वोमेन एंट्री केस (केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने निर्णय दिया कि महिलाओं को किसी भी धर्मिक स्थल में प्रवेश से वंचित करना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। इस फैसले ने भारतीय समाज में लैंगिक समानता को लेकर जागरूकता बढ़ाई।

4. न्यायिक सक्रियता और संविधानिक मूल्यों का संरक्षण

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की न्यायिक सक्रियता की मिसाल भी उनके फैसलों में देखी जा सकती है, जैसे कि उन्होंने संविधानिक मूल्यों और नागरिक अधिकारों को बनाए रखने के लिए कई मामलों में सख्त निर्णय दिए।उदाहरण के लिए, उन्होंने यादव सिंह केस में तत्कालीन सरकार के भ्रष्टाचार और सरकारी कर्मचारियों के कार्यों में पारदर्शिता की कमी को लेकर सख्त कदम उठाए थे। इसके अलावा, उनके द्वारा दिए गए कई फैसलों ने भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था और न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया।

5. अग्निपथ योजना और युवा अधिकार

2022 में जब अग्निपथ योजना को लेकर विवाद हुआ, तो न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इसके कुछ पहलुओं की न्यायिक समीक्षा की और युवाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की बात की।

उन्होंने इस मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए यह सुनिश्चित किया कि संविदा आधार पर भर्ती किए जाने वाले सैनिकों को उचित और पारदर्शी प्रक्रिया के तहत भर्ती किया जाए और उनके अधिकारों की रक्षा की जाए।

6. मुक्त अभिव्यक्ति और मीडिया की स्वतंत्रता

उन्होंने मीडिया की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करते हुए कई मामलों में फैसला सुनाया। उनके द्वारा दिए गए फैसलों में यह रेखांकित किया गया कि मीडिया और पत्रकारों को अपनी जिम्मेदारियों के तहत कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, बशर्ते कि वे किसी के अधिकारों का उल्लंघन न करें।

7. संविधान के मूल ढांचे का संरक्षण

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का मानना था कि भारतीय संविधान का “मूल ढांचा” (Basic Structure) अमूल्य है और इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता। उन्होंने कई मामलों में संविधानिक प्रावधानों और लोकतांत्रिक मूल्यों को महत्व दिया, ताकि भारतीय लोकतंत्र और समाज की नींव मजबूत बनी रहे।

8. जनहित याचिकाओं के महत्व को बढ़ाना

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने जनहित याचिकाओं के माध्यम से भी कई महत्वपूर्ण फैसले दिए, जो आम नागरिकों के अधिकारों और भलाई से जुड़े थे। उनके फैसलों ने यह स्पष्ट किया कि न्यायपालिका का कर्तव्य केवल कानूनों को लागू करना नहीं, बल्कि समाज में उत्पन्न हो रही समस्याओं का समाधान भी करना है।

9. विरासत के रूप में शांति और सुधार की दिशा

8 नवंबर 2024 को, जब उन्होंने अपने कार्यकाल का समापन किया, तो उन्होंने अपने अनुभवों और फैसलों से भारतीय न्यायपालिका की न केवल न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता को मजबूत किया, बल्कि समाज में न्याय और समानता की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

जस्टिस चंद्रचूड़ का कार्यकाल केवल उनके द्वारा दिए गए फैसलों के लिए ही याद नहीं किया जाएगा, बल्कि उनके द्वारा न्याय के सिद्धांतों, स्वतंत्रता और समानता की रक्षा के लिए उठाए गए कदमों के लिए भी उनकी प्रशंसा की जाएगी।

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