महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन, महा विकास आघाडी (एमवीए) ने आगामी चुनावों के लिए कुछ अहम वादे किए हैं। इनमें से एक प्रमुख वादा जाति आधारित गणना करने का है। गठबंधन ने घोषणा की है कि यदि वह राज्य में सत्ता में आता है, तो जाति आधारित जनगणना कराई जाएगी, ताकि समाज के विभिन्न वर्गों का सही आंकड़ा प्राप्त किया जा सके और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का ठीक से मूल्यांकन किया जा सके। यह कदम आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों और ओबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों) के कल्याण के लिए किया जाएगा।
इसके अलावा, एमवीए ने यह भी वादा किया है कि अगर वे केंद्र में सत्ता में आते हैं, तो आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को समाप्त कर देंगे। वर्तमान में भारत में संविधान के तहत विभिन्न जातियों और वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय की गई है, जिससे कुछ जातियां और वर्ग इससे बाहर रह जाते हैं। एमवीए का दावा है कि यह सीमा हटाने से समाज के अधिक वर्गों को आरक्षण का लाभ मिल सकेगा, जो कि उनके सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए जरूरी है।
इस घोषणा के बाद, यह मुद्दा राज्य की राजनीति में और भी तूल पकड़ सकता है, क्योंकि महाराष्ट्र में ओबीसी समुदाय, पिछड़े वर्गों, और आदिवासी समुदाय के अधिकारों को लेकर लंबे समय से चर्चा होती रही है। एमवीए का यह वादा इन समुदायों के लिए बड़ा समर्थन साबित हो सकता है, वहीं दूसरी ओर, इसे लेकर राजनीतिक विरोध भी हो सकता है, खासकर उन लोगों से जो इसे संविधान के खिलाफ मानते हैं।
जाति आधारित गणना और आरक्षण के मसले पर राज्य में व्यापक बहस और आंदोलन हो सकते हैं, और यह आगामी चुनावों में महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकता है।