गुरु गोविंद सिंह जी सिख धर्म के 10वें और अंतिम गुरु थे। उनका जन्म 22 दिसंबर 1666 को बिहार के पटना साहिब में हुआ था। गुरु गोविंद सिंह जी को उनके साहस, बलिदान, धार्मिक शिक्षाओं और नेतृत्व के लिए याद किया जाता है। गुरु जी ने दसवें गुरु के रूप में 1708 में अपने निधन के समय गुरुशिप को गुरु ग्रंथ साहिब (सिखों की प्रमुख धार्मिक किताब) को सौंप दिया, जो सिखों के लिए अब अंतिम और शाश्वत गुरु है।
गुरु गोविंद सिंह जी ने महज 10 साल की उम्र में गुरु की गद्दी संभाली और सिख धर्म को एक नई दिशा दी। उन्होंने सिख समुदाय को एकजुट किया और खालसा पंथ की स्थापना की, जो धर्म, साहस, न्याय, और समानता का प्रतीक बना। खालसा पंथ की स्थापना के दौरान गुरु जी ने पांच ककार (पाँच बुनियादी धार्मिक प्रतीक) दिए थे, जो आज भी सिख धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
खालसा पंथ सिख धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित पहलुओं में से एक है, जिसे गुरु गोविंद सिंह जी ने 1699 में स्थापित किया। खालसा का अर्थ है “पवित्र” या “ईश्वर का गुणगान करने वाला।” यह पंथ सिख धर्म के अनुयायियों को एकजुट करने, उन्हें साहस और धर्म के प्रति प्रतिबद्धता की भावना देने और समाज में धार्मिक और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।
खालसा पंथ के तहत, गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष करने का आह्वान किया, खासकर जब वे अत्याचारों और अन्याय के खिलाफ खड़े हुए। खालसा पंथ में किसी भी प्रकार के जाति या सामाजिक भेदभाव को नकारते हुए सभी को समान माना गया। खालसा पंथ का उद्देश्य सभी मानवता को एक समान दृष्टि से देखना था, चाहे उनका धर्म, जाति, या समाजिक स्थिति कुछ भी हो।
खालसा पंथ ने अपने अनुयायियों को आत्म-निर्भर, अनुशासित और साहसी बनाकर, उनके जीवन में आत्मविश्वास और स्थिरता को बढ़ावा दिया। खालसा पंथ ने न केवल सिख धर्म में एक नया मोड़ दिया, बल्कि पूरे समाज में समानता और धार्मिक स्वतंत्रता का प्रचार किया। गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ को एक सशक्त, निर्भीक और धर्म के प्रति समर्पित समुदाय के रूप में स्थापित किया। खालसा पंथ का प्रभाव आज भी सिख समुदाय में देखा जाता है, और यह सिखों की पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
उनके जीवन का उद्देश्य था सिखों को धार्मिक स्वतंत्रता, साहस, और संघर्ष के लिए प्रेरित करना। उन्होंने “एक ओंकार” (ईश्वर एक है) का संदेश दिया, जो सिख धर्म का मूल सिद्धांत है। गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन कड़ी साधना, युद्ध, और समाज में धर्म की रक्षा के लिए संघर्षों से भरा था।
गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती, हर साल पौष शुक्ल सप्तमी को मनाई जाती है, और इस दिन उनके साहस, बलिदान और महान कार्यों को श्रद्धा के साथ याद किया जाता है। गुरु गोविंद सिंह जी की इस महान और दूरदर्शी पहल ने सिख धर्म को एक नई दिशा दी और आज भी खालसा पंथ पूरी दुनिया में अपने आदर्शों और शिक्षाओं के साथ जीवित है।