
रियाद। पिछले सप्ताह मंगलवार 22 मार्च को पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत को वैश्विक समुदाय से अप्रत्याशित समर्थन मिला था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादमीर पुतिन समेत दुनियाभर के नेताओं ने इस बर्बर हमले की निंदा की। लेकिन इन सबके बीच भारत के लिए हैरान करने वाला समर्थन उन देशों से आया जो ऐतिहासिक रूप से भारत के पक्ष में नहीं खड़े थे। खासतौर पर खाड़ी के मुस्लिम देशों ने खुलकर हमले की आलोचना की, जो नई दिल्ली की कूटनीतिक सफलता को दिखाता है। लेकिन इसका मतलब क्या यह है कि पाकिस्तान मुस्लिम जगत में किनारे होता जा रहा है।
आतंकवादियों ने जब जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में 26 निहत्थे लोगों की जान ली थी, उस समय पीएम मोदी सऊदी अरब की यात्रा पर थे। पीएम मोदी ने दौरा अधूरा छोड़ दिया और बीच में ही वापस लौट आए। लेकिन उसके पहले ही सऊदी अरब ने इस हमले की निंदा कर दी थी। पहले के दशकों में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। 1965 और 1971 के युद्ध को याद कीजिए, जब सऊदी अरब पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा था। इसके साथ ही यूएई, ईरान और कतर ने भी हमले की निंदा की थी।
शीत युद्ध के दौर में पाकिस्तान और सऊदी अरब अमेरिकी खेमे में थे, वहीं भारत गुटनिरपेक्षता की नीति का पालन कर रहा था। इसके साथ ही नई दिल्ली के संबंध मॉस्को से अच्छे थे, जिसने रियाद के साथ मतभेदों को बढ़ावा दिया। उस दौर में भी लाखों भारतीय खाड़ी देशों में रहते और काम करते थे, लेकिन सऊदी अरब समेत क्षेत्र के अन्य देशों के संबंध भारत की तुलना में पाकिस्तान से बेहतर थे।
वैसे तो खाड़ी देशों के साथ भारत के रिश्तों में बदलाव की शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में हुई, लेकिन पीएम मोदी की बार-बार की यात्राओं, ऊर्जा और सुरक्षा सहयोग में नाटकीय वृद्धि ने भारत की खाड़ी में पहुंच को गति दी है। आज खाड़ी देशों भारत में बड़े निवेशक हैं और उन्हें समझ आ गया है कि स्थिर भारत उनके लिए ज्यादा जरूरी है। इस बीच खाड़ी देशों ने खुद इस्लामिक स्टेट के हिंसक खतरे का सामना किया है।
इसका मतलब यह नहीं है कि ये देश पाकिस्तान के खिलाफ हो गए हैं। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात अब भी पाकिस्तान के प्रमुख वित्तीय सहयोगी बने हुए हैं। लेकिन भारत जानता है कि अगर वह पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करता है, तो इससे खाड़ी देशों के साथ उसके संबंधों में कोई नुकसान होने की संभावना नहीं है। हालांकि, भारत को खाड़ी देशों से मिलने वाले समर्थन को हल्के में नहीं लेना चाहिए।