
कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के कुछ नेताओं ने यह प्रस्ताव रखा है कि अगर वे महाराष्ट्र में सत्ता में आते हैं, तो राज्य में इमामों और मुफ़्तियों को 15,000 रुपये मासिक वेतन दिया जाएगा। भाजपा का कहना है कि इस प्रस्ताव ने एक नई राजनीतिक बहस को जन्म दिया है, जिसमें आरोप लगाया जा रहा है कि कांग्रेस9 तुष्टिकरण की राजनीति में संलिप्त है।
कांग्रेस पार्टी का यह कदम उन आलोचकों द्वारा तुष्टिकरण की राजनीति के रूप में देखा जा रहा है, जो मानते हैं कि यह नीतियां केवल अल्पसंख्यक समुदायों को खुश करने के उद्देश्य से लागू की जाती हैं, जबकि इससे अन्य समुदायों के बीच असंतोष बढ़ सकता है। इस तरह की आलोचना विशेष रूप से भाजपा द्वारा की जाती है, जो कांग्रेस पर यह आरोप लगाती है कि वह अपने राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक आधार पर समुदायों को लुभाने की कोशिश करती है, जिसके परिणामस्वरूप वह हिंदू समुदाय सहित अन्य धर्मों को उपेक्षित कर रही है।
कांग्रेस का ऐतिहासिक दृष्टिकोण यह रहा है कि वह अल्पसंख्यक समुदायों को प्राथमिकता देने के लिए नीतियां अपनाती रही है, हालांकि इसकी कीमत पर अन्य समुदायों का समर्थन कम हो सकता है। कर्नाटका में ओबीसी कोटे से अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने जैसे उदाहरण इस धारणा को और मजबूत करते हैं, जिससे भाजपा और अन्य विपक्षी दल इसे तुष्टिकरण की रणनीति के रूप में देखते हैं।
इस परिप्रेक्ष्य में, कांग्रेस की यह नयी पहल, जिसे वे “सामाजिक न्याय” का हिस्सा बता रही हैं, भाजपा के आलोचकों के लिए एक राजनीतिक मुद्दा बन सकती है, जो इसे हिंदू वोटों को खोने की संभावना से जोड़ते हैं। यह पूरी बहस महाराष्ट्र में आगामी चुनावों के संदर्भ में भी अहम हो सकती है, जहां वोट बैंक की राजनीति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।