सेफ जोन में पहुंच गये ‘बाबा’


गोरखनाथ मठ के इर्द-गिर्द घूमती रही गोरखपुर की राजनीति


अब गोरखपुर से चलेगा बीजेपी का हिंदुत्व का कार्ड


सपा, कांग्रेस और जनता दल के भी कब्जे में रही अयोध्या सीट


मथुरा सीट पर नौ बार रहा कांग्रेस का दबदबा


वाराणसी कैंट सीट पर श्रीवास्तव परिवार की बनी हुई है पकड़

अनुपम सिंह, वरिष्ठ पत्रकार

दोस्तों, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 बहुत दिलचस्प हो रखा है। राजनैतिक गलियारे में पिछले लंबे अर्से से ‘बाबा’ (मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ) के अयोध्या, काशी और मथुरा से चुनाव लड़ने को लेकर चल रही चर्चा पर बीजेपी केंद्रीय चुनाव समिति के निर्णय के बाद विराम लग गया है। अब पार्टी ने उन्हें गोरखपुर शहर से अधिकृत प्रत्याशी के तौर पर उतारा है। इस तरह से बाबा अब सेफ जोन में पहुंच गये हैं, क्योंकि अयोध्या, काशी और मथुरा से जरूरी नहीं ‘बाबा’ चुनाव जीत जायें। मगर गोरखपुर से बाबा की जीत सुनिश्चित है, क्योंकि इतिहास के पन्नों को अगर हम पलटें तो गोरखपुर की राजनीति गोरखनाथ मठ के इर्द-गिर्द घूमती रही है। वर्ष 1967 में हिंदू महासभा के टिकट पर इस पीठ के तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ लोकसभा पहुंचे। बाद में उनके उत्तराधिकारी और रामजन्मभूमि आंदोलन के नेतृत्व कर्ता महंत अवैद्यनाथ 1962, 1967, 1974 और 1977 में मनीराम विधानसभा सीट से विधायक चुने गये। इसके अलावा उन्होंने 1970, 1989, 1991 और 1966 लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने सफलता पाई। इसी तरह उनके उत्तराधिकारी योगी आदित्यानाथ भी 26 वर्ष की उम्र में लोकसभा का चुनाव जीत कर 1998 में सांसद बने और 2017 में मुख्यमंत्री बनने तक इस क्षेत्र का बतौर सांसद प्रतिनिधित्व किया। इस लिहाज से गोरखपुर से बाबा की जीत तय है और बीजेपी भी पूर्वांचल की 156 सीटों के मतदाताओं को बाबा के माध्यम से साधना चाहती हैं, क्योंकि पूर्वांचल में बाबा और मठ दोनों का अच्छा-खासा प्रभाव है। वहीं दूसरी ओर राम मंदिर आंदोलन से देश-विदेश में अपनी पहचान बना चुकी अयोध्या विधानसभा सीट के राजनीतिक इतिहास पर अगर चर्चा करें तो यह सीट कभी भी बीजेपी की गढ़ नहीं रही है।

सांधु संतो और ब्राहम्मण बाहुल्य मतदाताओं वाली इस सीट पर कभी बीजेपी, सपा, कांग्रेस और जनता दल कब्जा रहा है। यह सीट वर्ष 1964 में अपने अस्तित्व में आई। इससे पहले फैजाबाद जिले की सदर विधानसभा सीट हुआ करती थी। 1967 में इस सीट से जनसंघ पार्टी के बृज किशोर अग्रवाल चुनाव जीते थे और 1969 में कांग्रेस के विश्वनाथ कपूर ने अपना परचम लहराया था। इसके बाद वर्ष 1974 में जनसंघ के वेद प्रकाश अग्रवाल विधायक बने। वहीं वर्ष 1977 में जब जनता दल की लहर चली तो जयशंकर पांडेय चुनाव जीते गये और विधायक बने। 1980 में कांग्रेस ने निर्मल खत्री को टिकट दिया तो वह चुनाव जीत गये। 1989 आते-आते राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ने लगा। इस चुनाव में जयशंकर पांडेय विधायक चुन लिये गये। मगर कारसेवकों की कारसेवा से अपने चरम पर पहुंच चुके राम मंदिर आंदोलन के परिणामस्वरूप अयोध्या विधानसभा सीट पर भगवा रंग पूरी तरह से चढ़ गया और 1991 में लल्लू सिंह विधायक बने, जो पांच बार वर्ष 2007 तक विधायक रहे। मगर ब्राहम्मण बाहुल्य इस सीट पर वर्ष 2012 में समाजवादी पार्टी ने अपना परचम लहराया और तेजनारायण पांडेय विधायक चुने गये। मगर 2017 में बीजेपी की लहर में इस सीट से वेद प्रकाश गुप्ता चुने गये। जिन्होंने बाबा के अयोध्या से चुनाव लड़ने की चर्चा के बीच सीट छोड़ने का एलान कर दिया। इसलिए जरूरी नहीं है, राम मंदिर निर्माण के बीच अयोध्या से हिंदुत्व कार्ड चल जाये। वहीं दूसरी ओर जब एक पत्रकार ने गोरखपुर सदर विधानसभा सीट से विधायक राधा मोहनदास अग्रवाल से बाबा के चुनाव लड़ने के बारे में चर्चा की तो वह चर्चाओं के इस सवाल पर ही तमतमा उठे। जबकि यह जगजाहिर है कि बाबा की अनुकंपा से वह सदर से विधायक बनते आ रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण की नगरी होने के बावजूद मथुरा विधानसभा सीट ज्यादातर कांग्रेस के कब्जे में रही है। यहां से नौ बार कांग्रेस और पांच बार बीजेपी व एक बार जनता पार्टी व निर्दलीय का कब्जा रहा है। वहीं वाराणसी कैंट सीट पर श्रीवास्तव परिवार का कब्जा बरकरार है, जो सात बार से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। इसलिए बाबा अब गोरखपुर से ही भगवा का परचम प्रदेश में फहरायेंगे।

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