भारत ने 27 फरवरी 2002 को गोधरा ट्रेन जलने की घटना के रूप में एक और बहुत ही भयंकर त्रासदी का सामना किया। यह घटना गोधरा, गुजरात में हुई थी, जब साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के साबरमती स्टेशन पर कुछ लोगों ने ट्रेन के एक डिब्बे में आग लगा दी, जिससे उसमें सवार 59 लोगों की जलकर मौत हो गई। यह घटना न केवल देश के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक शॉकिंग घटना बन गई थी। हमें गुजरात में मुसलमानों की हत्या याद है और हाँ, हमें लगातार एक मुस्लिम ‘नरसंहार’ की याद दिलाई जाती है जो गुजरात में तब हुआ जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के बावजूद जहां मोदी आरोपी हैं। 27 फरवरी की उस मनहूस सुबह को हुआ क्या था? कौन कौन लोग उस साजिश में शामिल थे। किन किन सरकारों ने बाद में गोधरा के गुनहगारों को बचाने की साजिश की थी। इस घटना के 8297 दिन बाद यानी 22 वर्षों के बाद साबरमती रिपोर्ट के रूप में सामने आई है।
इस घटना के बाद जो हुआ, वह और भी भयावह था। गोधरा कांड को लेकर गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घरों को नुकसान हुआ। यह त्रासदी 9/11 के आतंकवादी हमलों से कहीं अधिक बड़े पैमाने पर फैली और इसका असर अब तक महसूस किया जाता है गोधरा की घटना के बाद का घटनाक्रम बहुत ही गहरा और जटिल था। इस घटना में आतंकी साजिश या साम्प्रदायिक दंगे के आरोपों ने पूरे समाज को दो हिस्सों में बांट दिया था। कई रिपोर्टों और जांचों के मुताबिक, गोधरा के उस हादसे में कई राजनीतिक और साम्प्रदायिक ताकतें शामिल थीं। घटना के बाद राज्य सरकार और केंद्रीय सरकार के बीच में भी कई आरोप-प्रत्यारोप हुए। आरोप यह भी था कि घटना के बाद गोधरा के गुनहगारों को बचाने की साजिश रची गई, और कई ऐसे लोग थे जिन्होंने हिंसा और दंगों के दौरान अत्याचारों को बढ़ावा दिया। इस मामले में साबरमती रिपोर्ट (22 वर्षों के बाद प्रकाशित) ने इस साजिश को उजागर करने का प्रयास किया है, जिसमें एक सख्त राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषण किया गया है।
22 साल बाद, यानी 8297 दिन बाद, साबरमती रिपोर्ट सामने आई है, जो इस त्रासदी के बाद की घटनाओं पर आधारित है। यह रिपोर्ट गोधरा की घटना और उसके बाद गुजरात में हुई सांप्रदायिक हिंसा को लेकर सच्चाई उजागर करती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे राजनीतिक हस्तक्षेप और साम्प्रदायिक विभाजन ने पूरे समाज को प्रभावित किया और इसके बाद न्यायिक प्रणाली पर भी सवाल उठाए गए। साल 2011 की बात है। अहमदाबाद की साबरमती सेंट्रल जेल जहां 94 आरोपियों पर मुकदमा चल रहा था। किसी को भी अदालत ले जाना सुरक्षित नहीं था इसलिए जेल को ही अदालत में तब्दील कर दिया गया था। फरवरी के महीने में कोर्ट ने जब फैसला सुनाया तो इस मामले को 9 साल हो चुके थे। इस दौरान दर्जनों चार्जशीट, कॉन्प्रिरेसी थ्योरी के दौर चले। मीडिया रिपोर्ट और डॉक्यूमेंट्री भी बनी, जांच कमेटी की रिपोर्ट भी आई। लेकिन असलियत सामने नहीं आई। साबरमती एक्सप्रेस कांड की असलियत। गुजरात दंगों को 22 साल हो गए हैं। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने भी 10 साल से ज्यादा हो गए हैं। लेकिन
इस देश में एक सेक्शन है जो आज भी गुजरात दंगों पर राजनीति करने से बाज नहीं आता है। ये वो धड़ा है जो दंगों के लिए गुजरात के हिंदुओं को जिम्मेदार बताता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कसूरवार मानता है। इतने सालों बाद आज भी इन दंगों के नाम पर देश के मुसलमानों को भड़काता है। मगर हैरानी ये है कि ये लोग गुजरात दंगों की बात तो करते हैं लेकिन इनमें से कोई भी भूल कर गोधरा कांड का जिक्र नहीं करता। वो गोधरा कांड जिसमें ट्रेन की बोगी में 59 कारसेवकों को जिंदा जला दिया गया था। वो गोधरा कांड जिसके बाद पूरे गुजरात में दंगे शुरू हुए। वो गोधरा कांड जिसके बाद 31 लोगों को उमक्रैद की सजा सुनाई गई। 27 फरवरी, 2002 भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है, जिसने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की भावना को आग लगा दी थी। इस घटना के बाद पूरा गुजरात सुलग उठा औऱ सांप्रदायिक दंगे फैल गए। जिसमें 1200 से भी ज्यादा लोगों ने जान गंवाई। इस साल इस त्रासदी के 22 बरस हो रहे हैं। जब गुजरात के गोधरा में एक ट्रेन को आग लगा दी गई थी। जिसमें 59 लोगों की जलकर मौत हो गई थी। लेकिन अक्सर गुजरात दंगों की बात गोधरा कांड पर आकर रुक जाती है यह दलील दी जाती है कि गुजरात दंगे, गोधरा कांड में किए क्रिया की प्रतिक्रिया थी। क्या हम नरसंहार को याद करते हैं? हाँ, हमें गुजरात में मुसलमानों की हत्या याद है और हाँ, हमें लगातार एक मुस्लिम ‘नरसंहार’ की याद दिलाई जाती है जो गुजरात में तब हुआ जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के बावजूद जहां मोदी आरोपी हैं।
इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि किस तरह से कुछ शक्तियों ने गोधरा के गुनहगारों को बचाने की कोशिश की और कुछ कथित रूप से अपराधियों को राजनीतिक कारणों से सहारा दिया। यह रिपोर्ट सच्चाई की तलाश और गोधरा कांड के आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की दिशा में एक कदम हो सकती है।
क्या हुआ था 27 फरवरी को
27 फरवरी 2002 को आधुनिक भारत के इतिहास का काला अध्याय लिखा गया था। इस दिन हमारे स्वतंत्र धर्मनिरपेक्ष देश में सुबह 7:43 पर गुजरात के गोधरा स्टेशन पर 23 पुरुष और 15 महिलाओं और 20 बच्चों सहित 58 लोग साबरमती एक्सप्रेस के कोच नंबर S6 में जिंदा जला दिए गए थे। उन लोगों को बचाने की कोशिश करने वाला एक व्यक्ति भी 2 दिनों के बाद मौत की नींद सो गया था। गुजरात पुलिस के सहायक महानिदेशक जे महापात्रा ने कहा था कि दंगाइयों ने ट्रेन के गोधरा पहुंचने से बहुत पहले से इस्तेमाल के लिए पेट्रोल से लैस तैयार कर ली थी। इसके बाद, राज्य ने पूरे राज्य में हिंसा देखी। लेकिन जब भी इस घटना की कोई मीडिया रिपोर्टिंग होती है तो ऐसा लगता है कि पहले, राज्यव्यापी हिंसा सिर्फ एक ही समुदाय विशेष की तरफ से हुई थी और इसमें केवल मुसलमान ही पीड़ित थे। लेकिन ये पूरी तरह से असत्य है। क्योंकि 2002 में गोधरा की आग के कारण गुजरात जल गया थाऔर तथाकथित नरसंहार के शिकार लोगों में से एक चौथाई हिंदू थे। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि ट्रेन आपदा के पीड़ितों की पहचान मीडिया द्वारा कभी सार्वजनिक क्यों नहीं की गई। क्या ऐसा इसलिए था क्योंकि इसके बाद के परिणाम को मुस्लिम ‘नरसंहार’ के रूप में चित्रित करने का एक ठोस प्रयास किया गया था!
गोधरा कांड: जांच में क्या सामने आया?
नरेंद्र मोदी को गुजरात का सीएम बने अभी साल भर भी नहीं हुआ था। तत्कालीन मोदी सरकार ने एक जांच आयोग का गठन किया। उस आयोग में जस्टिस जी टी नानावटी और जस्टिस के जी शाह शामिल थे। शुरू में आयोग को साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी से जुड़े तथ्य और घटनाओं की जांच का काम सौंपा गया। लेकिन जून 2002 में आयोग को गोधरा कांड के बाद भड़की हिंसा की भी जांच करने के लिए कहा गया। आयोग ने दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी, उनके कैबिनेट सहयोगियों व वरिष्ठ अफसरों की भूमिका की भी जांच की। गुजरात में गोधरा कांड के बाद 2002 में हुई हिंसा पर नानावटी रिपोर्ट में गुजरात के तत्तकालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई। साल 2019 में गुजरात विधानसभा में हिंसा की जांच करने वाली नानावटी आयोग की रिपोर्ट रखी गई।
आंतरिक रिपोर्ट में नानावटी आयोग ने पीएम नरेंद्र मोदी पर लगे आरोपों को खारिज कर दिया। नानावटी कमीशन ने उन्हें क्लीन चिट दी और तमाम तरह के प्रोपोगैंडा जो न सिर्फ देश बल्कि पूरी दुनिया में फैलाए गए उसे सिरे से खारिज किया गया। इस रिपोर्ट में ये बताया गया कि वहां पर कोई भी ऐसा काम नहीं किया गया जो राज्य सरकार को नहीं करना चाहिए थे। न राज्य सरकार ने किसी तरह की कोई देरी की है, न राज्य सरकार ने किसी तरह का कोई गलत मौखिक गैरकानूनी आदेश दिया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मारे गए 59 लोगों में से अधिकतर कारसेवक थे। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने जस्टिस यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में एक अलग जांच आयोग का गठन किया. इस आयोग ने मार्च 2006 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में इस घटना को एक दुर्घटना बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट को असंवैधानिक और अमान्य करार देते हुए खारिज कर दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष जांच दल का गठन किया था।
गोधरा कांड और सांप्रदायिक हिंसा ने भारत को एक गंभीर राजनीतिक और सामाजिक चुनौती दी। जहां 9/11 की त्रासदी ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया, वहीं गोधरा की घटना ने भारत में सांप्रदायिक तंगी और आतंकवाद की जड़ें और भी गहरी कर दीं। साबरमती रिपोर्ट के माध्यम से यह उम्मीद जताई जा रही है कि जिन लोगों ने इस खौ़फनाक घटना को अंजाम दिया था, उनके खिलाफ कार्रवाई होगी और सच्चाई को सामने लाया जाएगा।