
नई दिल्ली। आरबीआई ने साइबर अपराध एवं फाइनेंशियल फ्रॉड को रोकने के लिए बैंकों को फाइनेंशियल फ्रॉड जोखिम संकेतक को अपनाने का निर्देश दिया है। वाणिज्यिक बैंकों, लघु वित्त बैंकों, भुगतान बैंकों और सहकारी बैंकों से कहा गया है कि वह दूरसंचार विभाग द्वारा विकसित प्रणाली को अपने सिस्टम से इंटीग्रेट करें। ऐसा करने पर वास्तविक समय पर धोखाधड़ी के प्रयास का पता लगाने और तत्काल प्रतिक्रिया संभव हो पाएगी। देश में यूपीआई के व्यापक उपयोग को देखते हुए यह प्रणाली लाखों लोगों को साइबर धोखाधड़ी से बचाने में काफी अहम मानी जा रही है। उधर, दूरसंचार विभाग ने आरबीआई के इस कदम का स्वागत किया है।
एफआरआई एक जोखिम-आधारित इंडिकेटर है, जिसे मई में दूरसंचार विभाग की डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट ने लॉन्च किया था। यह संकेतक किसी मोबाइल नंबर के पुराने रिकॉर्ड के आधार पर रिस्क की श्रेणी को निर्धारित करता है। अगर किसी मोबाइल नंबर का फाइनेंशियल फ्रॉड में पहले से उपयोग किया गया है या उसके लिए प्रयास किया गया है तो उस मोबाइल नंबर को मध्यम, उच्च या बहुत उच्च जोखिम की श्रेणी में वर्गीकृत करता है।
वर्गीकरण की जानकारी राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (NCRP), दूरसंचार विभाग के चक्षु प्लेटफॉर्म, बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थानों से मिली खुफिया जानकारियों के आधार पर तैयार की जाती है। अब बैंकों से एफआरआई को जोड़े जाने पर भुगतान को रोका जा सकेगा। किसी भी भुगतान की स्थिति में बैंकों को जानकारी मिल सकेगी कि जिस नंबर पर ग्राहक द्वारा पैसा भेजा जा रहा है, वह नंबर सही है या फिर साइबर फाइनेंशियल फ्रॉड में लिप्त है।
बैंक संदिग्ध लेनदेन को रियल टाइम में रोक सकेंगे। बैंकों को ग्राहकों को सतर्क करने व चेतावनी जारी करने में मदद मिलेगी।उच्च जोखिम वाले मामलों में लेनदेन में विलंब कर सकेंगे। साइबर धोखाधड़ी लेनदेन की जानकारी पुलिस के साथ साझा कर सकेंगे। फोन-पे, पंजाब नेशनल बैंक, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई बैंक, पेटीएम और इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक पहले ही इस प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं।