
नई दिल्ली। ईरान-इस्राइल युद्ध ने वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं को और बढ़ा दिया है। इससे न सिर्फ भारत के निर्यात समेत वैश्विक व्यापार पर असर पड़ रहा है, बल्कि हवाई और समुद्री माल ढुलाई दरों के साथ बीमा शुल्क में भी बढ़ोतरी का भी जोखिम है। निर्यातकों का कहना है कि इस युद्ध के कारण यूरोप और रूस जैसे देशों को भारत का निर्यात प्रभावित हो सकता है। अगर युद्ध लंबे समय तक चलता रहा, तो ईरान और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच होर्मुज जलडमरूमध्य एवं लाल सागर जैसे मार्गों के जरिये व्यापारिक जहाजों की आवाजाही प्रभावित होगी।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के अध्यक्ष एससी रल्हन ने कहा, वैश्विक व्यापार की स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही थी, जो ईरान-इस्राइल तनाव बढ़ने से फिर से प्रभावित होगी। वहीं, मुंबई स्थित निर्यातक एवं टेक्नोक्राफ्ट इंडस्ट्रीज के संस्थापक अध्यक्ष एसके सराफ ने कहा, मालवाहक जहाज धीरे-धीरे लाल सागर के मार्गों पर लौट आए हैं। इससे भारत और एशिया के अन्य हिस्सों से अमेरिका एवं यूरोप जाने में 15-20 दिन की बचत हो रही है। इस युद्ध के कारण मालवाहन जहाज अब फिर से लाल सागर मार्ग का इस्तेमाल करने से बचेंगे।
सराफ ने आगे कहा, ईरान और इस्राइल के बीच युद्ध अगर एक सप्ताह से अधिक समय तक चलत रहा, तो माल ढुलाई की लागत करीब 50 फीसदी तक बढ़ जाएगी, जिसका बोझ व्यापारियों को उठाना पड़ेगा। भारत के व्यापार पर असर पड़ेगा, क्योंकि दोनों देश हमारे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं। इसके अलावा, वैश्विक व्यापार के लिए भी स्थिति काफी कठिन हो जाएगी।
फियो के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा, सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि संघर्ष स्थानीय स्तर तक ही सीमित रहेगा या अन्य देश भी इसमें शामिल होंगे। इसका असर सबसे पहले कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा। वहीं, विश्लेषकों का कहना है कि अगर ईरान-इस्राइल तनाव बढ़ता है, तो सबसे खराब स्थिति में कच्चे तेल (ब्रेंट क्रूड) की कीमतें 150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं, जो वर्तमान स्तर से 103 फीसदी अधिक है।
सहाय ने कहा, लाल सागर के अलावा इस बार होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर गुजरने वाला मार्ग भी एक ऐसा कारक है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। वैश्विक पेट्रोलियम पदार्थों की खपत का 21 प्रतिशत इसी मार्ग से गुजरता है। भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया इस मार्ग से कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए शीर्ष गंतव्य थे। ओमान भी भारत को तरलीकृत प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के लिए इसी मार्ग का इस्तेमाल करता है।
यूरोप के साथ भारत का करीब 80 फीसदी वस्तु व्यापार लाल सागर के जरिये होता है। अमेरिका के साथ भी काफी व्यापार इसी मार्ग से होता है। लाल सागर और होर्मुज जलडमरूमध्य इन दोनों भौगोलिक क्षेत्रों के जरिये भारत कुल 34 फीसदी निर्यात करता है। लाल सागर मार्ग से दुनिया के 30 फीसदी कंटेनर गुजरते हैं, जबकि 12 फीसदी वैश्विक व्यापार इसी रास्ते हो होता है।
भारत ने इस्राइल को 2024-25 में कुल 2.1 अरब डॉलर का निर्यात किया था, जो 2023-24 के 4.5 अरब डॉलर से आधा है। ईरान को होने वाला निर्यात 2024-25 में 1.4 अरब डॉलर रहा। अगर युद्ध लंबे समय तक जारी रहता है, तो भारत से दोनों देशों को होने वाला निर्यात प्रभावित होगा। इसका असर कुल व्यापार पर पड़ेगा। हाल के घटनाक्रमों पर चर्चा करने के लिए सरकार की ओर से आने वाले दिनों में निर्यातकों के साथ बैठक करने की उम्मीद है।
विश्लेषकों का कहना है कि यह युद्ध अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उच्च टैरिफ की घोषणा के बाद वैशि्वक व्यापार पर पड़ने वाले दबाव को और बढ़ा देता है। टैरिफ के असर को देखते हुए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) पहले ही आशंका जता चुका है कि 2025 में वैश्विक व्यापार में 0.2 फीसदी की गिरावट आएगी। इससे पहले 2.7 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया था।