तहसील की अराजकता

टी. धर्मेंद्र प्रताप सिंह

हर तहसील में दर्जनों कर्मचारी हैं व कई अधिकारी हैं, लेकिन लेखपाल सब पर भारी हैं। इसीलिए प्रदेश के सरकारी तंत्र के लिए कहा जाता है कि एक जीव, जो बाबू है, उसके हाथ में जादू है। सारा सिस्टम उस पर आधारित है। इस कारण ही बेकाबू है। वह कलम से दिन को रात साबित कर सकता है और रात को दिन, फिर सरकार कोई भी हो या विभाग कोई भी। वह फाइलों का जादूगर भी है और आंकड़ों का बाजीगर भी। कई कलाओं, आठ प्रहर व 10 दिशाओं का ज्ञाता भी है। भले ही उसके आठ आंखें, 10 सिर और 12 हाथ न हों, पर उसकी कार्यशैली यही साबित करती है।

राजस्व विभाग (तहसील) की बात करें तो सूबे के बड़े से बड़े विभागीय व अन्य अधिकारी भी उसके आगे पानी भरते नजर आते हैं, क्योंकि उसके बिना किसी भी अधिकारी का काम नहीं चल सकता। कोई अंधा जब अपनों को रेवड़ी बांटने चलता है तब उसे भी बाबू की ही जरूरत जरूर पड़ती है। अगर किसी मंत्री संतरी या डीएम सीएम के भी खेत या प्लॉट का मैटर फंस जाए तो काम लेखपाल ही आता है। इस आदमी को कोई जी बोल दे तो दिल से बुरा मान जाता है, नाम के आगे साहब लगाओ, तब खुश तो होता है, फिर भी सुविधा शुल्क कम नहीं करता है। इसके बिना तहसील का पत्ता हिलते नहीं दिखता है।

लंबे समय से जमे होने के कारण वह घाट घाट का पानी पहले ही पी चुका होता है इसलिए वह अपने संपर्क में आए सभी लोगों को पानी पिला-पिलाकर सिद्ध कर देता है कि वह ही श्रेष्ठ है। ले-देकर या किसी तरह से काम हो रहा हो तो थोड़ी देर के लिए उसे श्रेष्ठ मानने में कोई बुराई भी नहीं है। यह दीगर बात है कि इस बारे में समाज में कई कहावतें बहुत मशहूर रही हैं दशकों से। कई तो ऐसी हैं, जिनका जिक्र करने का भी लोग बुरा मान जाते हैं। इस शख्स के बारे में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का एक बयान बहुत चर्चा में रहा था। उन्होंने एक बार कहा था कि यदि लेखपाल ईमानदारी से अपना काम करने लगे तो गांवों के आधे झगड़े खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगे।

इसमें एक बात और भी जोड़ने को दिल कर रहा है कि बंदे की लिखी आख्या को ही अंतिम सत्य मानकर डीएम, कमिश्नर, राजस्व परिषद, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट फैसला करते चले आ रहे हैं आजादी के बाद से। ये सब बातें हैं, बातों का क्या? बातें होती ही हैं, करने के लिए। असलियत कुछ और भी हो सकती है, इस पर कोई दिमाग लगाना भी ठीक नहीं समझता। हाल ही में सुल्तानपुर का एक मामला सुर्खियां हासिल करते दिखा, जब अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व ने समय निकाल कर इसमें दिमाग लगाया तो मामला पकड़ में आया।

उनकी कोर्ट में चल रहे केस में झूठी रिपोर्ट देने के मामले में सख्त हुए एडीएम एस. सुधाकरन ने एसडीएम सदर विपिन द्विवेदी की कार्यशैली पर नाराजगी जताते हुए सही रिपोर्ट भेजने को कहा है। तत्कालीन राजस्व निरीक्षक रमाशंकर मिश्रा व लेखपाल सुशील तिवारी ने एक ही मामले की दो बार में अलग-अलग रिपोर्ट दी थी, जिसे एसडीएम ने अपने हस्ताक्षर से आगे प्रेषित कर दिया था। अपनी ही जांच रिपोर्ट में फंस गए थे तत्कालीन राजस्व निरीक्षक व लेखपाल। खाली जमीन पर दिखा दिया था बना हुआ मकान। शुरू में तो अधिकारी भी सिर्फ हस्ताक्षर कर कागज को आगे बढ़ा दे रहे थे, लेकिन पीड़ित ने प्रपत्र लेकर जब सीधे मुलाका मुलाकात की और दोनों जांच रिपोर्ट दिखाई, तब कहीं जाकर टेढ़ी बात समझ में आई।

एडीएम वित्त एवं राजस्व ने उप जिलाधिकारी को जांच सौंपी थी। वाद में तहसीलदार सदर से आख्या मांगी गई थी। एडीएम इसलिए ज्यादा नाराज हो गए थे, क्योंकि दोषी पाए गए राजस्व निरीक्षक और लेखपाल को उप जिलाधिकारी सदर और तहसीलदार हृदय राम तिवारी कार्यवाही से निरंतर बचाते रहे हैं व अपने वरीय अधिकारी एडीएम को गुमराह करते रहे। विरोधाभासी रिपोर्ट देखकर एडीएम ने नाराजगी जताते हुए एसडीएम को लिखा था कड़ा पत्र। पूरा मामला सदर तहसील के भंडरा परशुरामपुर स्थित गाटा संख्या 1346 से जुड़ा है।

पीड़ित रामानंद मिश्रा ने वाद संख्या डी 20224680000461 के बारे में राजस्व निरीक्षक कुड़वार रमाशंकर मिश्रा व लेखपाल सुशील तिवारी द्वारा झूठा साक्ष्य देने के अपराध में मुकदमा दर्ज कराने के लिए प्रशासन को प्रार्थना पत्र दिया है। हालांकि हीलाहवाली चल रही है। तहसीलदार ने जवाब में कहा कि दोनों लोगों का प्रमोशन हो गया है। एक कानून गो बन गया है तो दूसरा नायब तहसीलदार इसलिए कार्रवाई नहीं की जा सकती है। इस पर पीड़ित द्वारा आपत्ति जताई गई तो बात संभालते हुए कहते हैं कि एक रायबरेली तो दूसरे का बलिया तबादला हो गया है इसलिए कुछ नहीं हो सकता। इसके बाद दो राय बन रही हैं कि आगे काम करने के लिए विभाग और उसके कर्मियों के लिए नजीर बनेगा यह केस, जबकि कुछ का कहना है कि कुछ नहीं होने वाला, जो जैसे चल रहा है, ऐसे ही चलता रहेगा।

प्रार्थी रामानंद निवासी ग्राम पूरे चेरे मिश्र, पोस्ट-भंडरा, जिला सुलतानपुर ने कहा कि कानून के मुताबिक, देखा जाए तो सहायक कोषागार अधिकारी रहते हुए आत्माराम मिश्रा जमीन का पट्टा अपने नाम करवा ही नहीं सकते हैं। यदि करा भी लिया तो हमारे हिस्से सहित आवंटित जमीन पर भी कब्जा किए हुए हैं, जो अनुचित है। तहसील प्रशासन पूरी बात से वाकिफ है, फिर भी सात वर्ष से टहलाया जा रहा है। हर रात की सुबह होती है। हर परेशानी का अंत तो हर बात की हद भी होती है। यह अराजकता की हद है इसीलिए लोग उल्टे-सीधे कदम उठा लेते हैं। थोड़ी निराशा भी है कि प्रशासन अपनी जमीन (ग्रामसभा) की नहीं खाली करवा पा रहा है तो अपनी क्या बात करूं?

उन्होंने बताया कि 20 जून 2022 को लेखपाल सुशील द्वारा व 28 जून 2022 को राजस्व निरीक्षक कुड़वार रमाशंकर मिश्रा द्वारा आख्या प्रस्तुत की गई थी। लेखपाल द्वारा न्यायालय को गुमराह करते हुए दर्शाया गया कि गाटा सं. 1346 में प्रतिवादी संख्या दो आत्माराम मिश्रा को 0.190 हे. आवासीय आवंटन है, जिस पर पक्का मकान बनाकर परिवार सहित रह रहा है और शेष रकबा 0.061 हे. सेहन के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, जबकि इन्हीं लेखपाल सुशील तथा राजस्व निरीक्षक कुड़वार रमाशंकर द्वारा पूर्व में 15 अक्टूबर 2020 को रिपोर्ट में दर्शाया गया था कि गाटा संख्या 1346/0. 08001 आत्माराम मिश्रा द्वारा 0.0334 हे. पर पक्का मकान बनाकर निवास किया जा रहा है। दोनों रिपोर्ट में काफी विरोधाभास है।

गाटा में अतिक्रमण के बावत 22 मई 2022 को लेखपाल सुशील तथा राजस्व निरीक्षक रमाशंकर द्वारा थाना कुड़वार में मुकदमा अपराध संख्या 0171/21 धारा 2/3 दर्ज कराया गया था। राजस्व निरीक्षक व लेखपाल द्वारा इस महत्वपूर्ण बिंदु को जान-बूझकर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया। अतः इसकी जांच करवाकर दोषी राजस्व निरीक्षक व लेखपाल के विरुद्ध लोकसेवक होते हुए न्यायालय में झूठा साक्ष्य देने एवं आरोपी को लाभ पहुंचाने, साक्ष्य गढ़ने, उच्चाधिकारियों को गुमराह करने व धोखा देने के अपराध में उचित धाराओं में केस दर्ज कराया जाए। इस मामले में भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है और साल भर हो गया है।

पौने दो लाख लगाया जुर्माना, अनुपालन बाकी

वाद संख्या 3331/2024 ग्रामसभा बनाम आत्माराम में दोनों पक्षों को सुनने के बाद तहसीलदार न्यायिक बृजेश सिंह ने करीब पौने दो लाख का जुर्माना लगाते हुए 21 जनवरी 2025 को दिए गए अपने फैसले में कहा है कि प्रतिवादी को गाटा सं. 1346 से बेदखल किया जाता है। लेखपाल एवं राजस्व निरीक्षक द्वारा प्रपत्र 19 पर प्रस्तुत रिपोर्ट 16.04.2024 के आधार पर यह पंजीकृत हुआ था। नियमानुसार प्रपत्र 20 जारी किया गया, जो बाद तामीला रक्षित पत्रावली है।

लेखपाल ने रिपोर्ट में कहा है कि गाटा संख्या 1346 क्षेत्रफल 0.080 हे. स्थित ग्राम भंडरा परसरामपुर परगना मीरानपुर तहसील सदर राजस्व अभिलेख में नवीन परती के रूप में दर्ज है, जिसके 0.045 हे. अंश पर आत्माराम मिश्रा पुत्र भवानीफेर मिश्रा द्वारा अनाधिकृत रूप से लगभग 21 वर्षों से पक्का मकान व सेहन आदि बनाकर ग्रामसभा की संपत्ति को क्षति पहुंचाई गई है। प्रतिवादी ने आपत्ति में कहा कि गाटा सं. 1346 आरसी प्रपत्र 19 के द्वारा अवैध अतिक्रमण जानिब पूरब तरफ दिखाया गया है, जबकि प्रार्थी ने पूर्व तरफ कोई अतिक्रमण किसी भी प्रकार का नहीं किया है। विदित रहे कि उक्त गाटा सं. 1346 के पूर्व तरफ 11000 हाईटेंशन लाइन है, जिसके नीचे निर्माण संभव नहीं है।

पूर्व में प्रार्थी के विरुद्ध रामानंद मिश्रा द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र के आधार पर पैमाइश कराई गई थी, जिसमें स्पष्ट रूप से आया था कि गाटा संख्या 1346 रकबा 0.0190 का आवास आवंटन प्रार्थी के पक्ष में किया गया है और उस पर मकान है। इसके अलावा प्रार्थी के पास कोई दूसरा मकान नहीं है। इस प्रकार प्रार्थी ने उक्त आराजी निजाई पर कोई अवैध निर्माण नहीं किया है। प्रार्थी के विरुद्ध प्रस्तुत प्रपत्र 20 अवैध अध्यासन के लिए जारी किया गया है, जो अपने आप में त्रुटिपूर्ण है, क्योंकि उसमें न तो पक्के मकान का रकबा दिखाया गया है और न सेहन के रूप में इस्तेमाल की गई भूमि का रकबा ही।

प्रार्थी के घर के ठीक सामने विवादित आराजी है, जिससे प्रार्थी का कोई सरोकार नहीं है। इसी संबंध में आत्माराम के विरुद्ध अपराध सं. 171/21 धारा 2/3 सार्वजनिक संपत्ति अधिनियम के तहत एसीजेएम न्यायालय में मुकदमा विचाराधीन है। पट्टा निरस्त करने का केस पहले से ही एडीएम कोर्ट में चल रहा है। आत्मा के वकील ने कहा कि परेशान करने के लिए विपक्षी द्वारा प्रार्थना पत्र दिए जाते हैं, जिसके प्रभाव में आकर आत्माराम पर कार्यवाही की जाती है। अतः वर्णित तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में जारी नोटिस वापस लेने योग्य है। इसके बाद पत्रावली साक्ष्य में नियत हुई।

साक्ष्य के रूप में प्रतिवादी द्वारा रसीद बही गांव समाज, दखलनामा बाबत गाटा संख्या 1346 तीन मई 2001 व आकार पत्र 49च बाबत गाटा सं. 1346 दिनांक 12.01.2001, प्रश्नोत्तरी न्यायालय एसीजेएम प्रस्तुत किया गया। साक्ष्य पूर्ण हुआ। ग्राम पंचायत के अधिवक्ता द्वारा वादग्रस्त भूमि के स्थल निरीक्षण किए जाने के लिए निवेदन किया गया है। स्थलीय निरीक्षण के लिए 09.12. 2024 की तिथि नियत की गई थी। निरीक्षण में सीमांकन के पश्चात् पाया गया कि प्रतिवादी आत्माराम द्वारा गाटा संख्या 1346 के 0.03456 हे. हिस्से पर पक्का मकान बनाया है व 0.02665 हे. हिस्सा सेहन के रूप में कब्जा किए हुए हैं। इस प्रकार कुल 0.0612 हे. हिस्से पर कब्जा पाया गया।

पत्रावली बहस में नियत हुई। उभयपक्ष के अधिवक्ता की बहस सुनी गई। ग्राम पंचायत के अधिवक्ता द्वारा बहस में कहा गया कि स्थल निरीक्षण में यह सिद्ध हो चुका है कि प्रतिवादी आत्माराम का कुल 0.0612 हे. नवीन परती भूमि पर अवैध कब्जा है। यदि प्रतिवादी के पक्ष में हुए 0.019 हेक्टेयर के आवास आवंटन को हटा दिया जाए, तब भी उसके बाद प्रतिवादी द्वारा 0.0422 हे. अंश पर अवैध रूप से कब्जा किया गया है। अतः प्रतिवादी पर क्षतिपूर्ति आरोपित करते हुए बेदखल करना उचित है।

प्रतिवादी के अधिवक्ता द्वारा कहा गया कि भूमि प्रबंधन समिति भंडरा परसरामपुर द्वारा 0.019 हे. भूमि का आवास के लिए आवंटन किया गया था। प्रार्थी इस पर मकान निर्माण करके सपरिवार रह रहा है। शेष नवीन परती भूमि से कोई वास्ता नहीं है। चूंकि वह भूमि मकान के सामने है, सो प्रार्थी उससे निकलता रहता है, न कि अवैध कब्जा है इसलिए नोटिस वापस लिए जाने योग्य है। इसके बाद पत्रावली व उपलब्ध अभिलेखों और साक्ष्यों का अवलोकन किया गया।

स्थलीय जांच में इस बात की पुष्टि की गई कि नवीन परती गाटा संख्या 1346 के 0.0612 हे. अंश पर कब्जा आत्माराम द्वारा पक्का मकान बनाकर व सेहन के रूप में लगभग 21 वर्ष से किया गया है। प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि 0.019 हे. अंश पर उसे आवास स्थल का आवंटन किया गया है। शेष 0.422 हे. पर प्रतिवादी का कब्जा अवैध है। चूंकि प्रतिवादी पूर्व में आवंटन प्राप्त कर चुका है। अब धारा 67 क उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 के अंतर्गत कोई लाभपाने का पात्र नहीं रहा है इसलिए अवैध अध्याशी आत्माराम को नवीन परती गाटा संख्या 1346 के 0.0422 हे. से क्षतिपूर्ति आरोपित कर बेदखल किया जाना विधिसम्मत प्रतीत होता है।

उपर्युक्त विवेचना के आधार पर अवैध अध्याशी आत्माराम को बेदखल किया जाता है तथा एक लाख बहत्तर हजार आठ सौ नौ रुपए क्षतिपूर्ति तथा रुपए 1000 निष्पादन व्यय आरोपित किया जाता है। आदेश की एक प्रति राजस्व निरीक्षक व लेखपाल को इस आशय से प्रेषित की जाए कि नियमानुसार बेदखली कार्यवाही करें। आरसी प्रपत्र 67 ख व 67ग जारी हो। बाद में आवश्यक कार्यवाही पत्रावली दाखिल दफ्तर हो। यह मामला भी अभी अग्रिम कार्रवाई के लिए पेंडिंग है और पीड़ित इसे अमल में लाने के लिए प्रशासनिक दफ्तरों की दौड़ लगा रहा है।

कोर्ट के आदेश के उल्लंघन का भी डर तहसील कर्मियों में नहीं देखने को मिल रहा है। इस कारण से पीड़ित को अब भी बराबर टहलाया जा रहा है। वह कहते हैं कि किसी को वहां तक डिफेंड किया जा सकता है, जहां तक आंच खुद पर न आने पाए और जब उंगली न्याय पर उठ जाए तो फिर गलत का साथ छोड़ देने में ही भलाई होती है। यह हम नहीं, बल्कि प्राकृतिक सिद्धांत कहते हैं।

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