कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी उपचुनाव में

करहल विधानसभा सीट पर उपचुनाव की खबरें काफी दिलचस्प हैं, खासकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद। उनकी संसद में वापसी के चलते यह सीट रिक्त हुई है, और अब इस पर सपा, भाजपा और अन्य पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी।चुनाव आयोग ने हाल ही में महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों की तारीखों के साथ यूपी में भी 9 सीटों के लिए उपचुनाव की घोषणा की है। कटेहरी, सीसामऊ, कुंदरकी, करहल, गाजियाबाद, मीरापुर, फूलपुर, मझवां और खैर ये वो सीटें हैं, जहां चुनाव होंगे। दिलचस्प है कि मिल्कीपुर की सीट पर अभी चुनाव नहीं कराए जाएंगे।

अखिलेश यादव ने 6 सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों के नाम पहले ही घोषित कर दिए हैं, जबकि भाजपा ने सभी 9 सीटों पर अपने प्रत्याशी तय कर लिए हैं, हालांकि उनकी आधिकारिक घोषणा बाकी है। वहीं, मायावती भी बसपा की ओर से उपचुनाव में उतरने का इरादा जता चुकी हैं, लेकिन अभी कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं आया है। ये उपचुनाव केवल सीटों के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक समीकरणों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। सभी पार्टियों की नजरें इस चुनाव पर हैं, और देखना होगा कि किस पार्टी की रणनीति सफल होती है। राजनीतिक गतिविधियों के इस माहौल में मतदाताओं की प्रतिक्रिया भी अहम रहेगी।

करहल विधानसभा सीट पर उपचुनाव की स्थिति काफी दिलचस्प है, खासकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद। उनके भतीजे तेज प्रताप सिंह यादव को एसपी का उम्मीदवार बनाया गया है, जो कि एक महत्वपूर्ण कदम है। बीजेपी ने अभी तक अपने उम्मीदवार का नाम नहीं घोषित किया है, जिससे राजनीतिक माहौल में सस्पेंस बना हुआ है। फूलपुर विधानसभा सीट की बात करें, तो यहां सपा के मुस्तफा सिद्दीकी मैदान में हैं, जबकि बीजेपी ने अभी प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। यह सीट कुर्मी और मुस्लिम मतदाताओं के लिए महत्वपूर्ण रही है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार चुनावी समीकरण कैसे बनते हैं।

मझवा विधानसभा सीट पर निषाद पार्टी के विनोद बिंद के इस्तीफे के चलते उपचुनाव हो रहा है। सपा ने यहां पूर्व सांसद रमेश बिंद की बेटी ज्योति बिंद को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन बीजेपी ने अभी अपना पत्ता नहीं खोला है।अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट पर भी सपा ने शोभावती वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। यह सीट लालजी वर्मा के सांसद बनने के बाद रिक्त हुई है। यहां भी बीजेपी की स्थिति स्पष्ट नहीं है। इन सभी सीटों पर राजनीतिक हलचल बढ़ी हुई है, और विभिन्न पार्टियों के उम्मीदवारों के चुनावी प्रदर्शन पर सभी की नजरें होंगी। उपचुनाव केवल सीटों के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीतियों के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होंगे।

अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सबसे चर्चित सीटों में से एक है जहां से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने 47.99 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की थी। अवधेश प्रसाद अब सांसद हो गए हैं। लोकसभा चुनाव के बाद मिल्कीपुर सीट काफी चर्चा में है। सपा ने मिल्कीपुर से अजीत प्रसाद को प्रत्याशी बनाया है। मिल्कीपुर सीट पर समाजवादी पार्टी चार बार तो बीजेपी दो बार चुनाव जीती है। वहीं कांग्रेस ने तीन बार जीत दर्ज की है। यहां पासी यादव ब्राह्मण तीन जातियां चुनाव में अहम भूमिका निभाती हैं। दिल्ली से सटी गाजियाबाद विधानसभा सीट पर भाजपा के अतुल गर्ग विधायक थे। वह अब सांसद हो गए हैं। इसके बाद यह सीट खाली हो गई। 2012 में यहां बसपा जीती थी और 2017 में भाजपा ने जीत दर्ज की थी। पश्चिमी यूपी की मुरादाबाद की मीरापुर विधानसभा सीट पर रालोद तो कब्जा था। यहां चंदन चौहान विधायक थे। उनके सांसद चुने जाने के बाद यह सीट खाली हुई है। 2012 में बसपा तो 2017 में बीजेपी ने यहां जीत दर्ज की थी। यहां जाट और मुसलमानों का प्रभाव ज्यादा है। चुनाव आयोग ने मिल्की पुर सीट के लिए चुनाव की घोषणा नहीं की है। यहां के चुनाव बाद में कराये जायेंगे।

कानपुर नगर की सीसामऊ विधानसभा सीट पर 2022 में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हाजी इरफान सोलंकी ने जीत हासिल की थी। यहां से सपा ने इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को उम्मीदवार बनाया है। सीसामऊ सीट पर सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी है। अलीगढ़ की खैर विधानसभा सीट भाजपा के विधायक अनूप प्रधान विधायक थे। अनूप सिंह लोकसभा चुनाव जीतकर संसद बन गए हैं। 2012 में या सेट रालोद ने और 2017 ने बीजेपी में जीती थी। इस सीट पर जातीय समीकरण की बात करें तो जाट, ब्राह्मण, दलित और मुसलमान का अच्छा प्रभाव दिखता है। संभल की कुंदरकी विधानसभा सीट पर जियाउल रहमान बर्क विधायक थे। वह संभल लोकसभा सीट से सांसद हो गए हैं। इसके बाद यह सीट खाली हो गई है। सपा इस सीट पर 2012-17 और 2022 में चुनाव में जीत दर्ज कर चुकी है। यह सीट बीजेपी के लिए चुनौती बनी हुई है।

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