
टी. धर्मेंद्र प्रताप सिंह
एक वाकया याद आता है। बात शायद 1997 की है। दरअसल विश्वविद्यालय के प्रतियोगी जीवन के दौरान बडा क्रेज होता है दूर-दूर के फार्म भरने का ताकि एक अदद नौकरी के नाग पर घर से कुछ पैसों की मंजूरी के साथ परीक्षा भी हो जाए और घूमने को भी मिल जाए, लिहाजा कई दिन के लिए हिमाचल प्रदेश जाना हुआ। एक दिन शिमला रुकने के बाद वहां से करीब 250 किलोमीटर दूर कांगड़ा का सफर बस से करना पड़ा। यह जानकर बड़ी हैरत हुई कि शिमला से कांगड़ा जाने वाली आखिरी बस दोपहर 12 बजे ही चली जाती है, क्योंकि उसे गन्तव्य तक पहुंचने में 10 से 12 घंटे लगते हैं यानी कि रात में सफर कम से कम।
कांगड़ा से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर मीटर गेज की ऊंचे ऊंचे पुल व सुरंगों से सुसज्जित चित्ताकर्षक व मनोहारी लाइन पर पठानकोट जोगिंदर नगर रेलवे और बस रूट पर है पालमपुर, जहां के थल सेना के होल्टा कैंप में सगे संबंधी की पोस्टिंग होने के कारण लाइन (बैरक) में कुछ दिन रुकने का मौका मिला। रोज रात को सोने के पहले नौ बजे खाने की मेज पर ही सभी को आंतरिक कोड दे दिया जाता था। आतंकवाद के नजरिये से यह बहुत डिस्टर्बेस का दौर तो नहीं था, फिर भी सेना सुरक्षा के दृष्टिकोण से रोज ही ऐसा करती थी और शायद देश भर में आज भी किया जाता होगा।
मतलब यह है कि यदि किसी को रात में कैंप की सीमा के अंदर किसी काम से जाना पड़ ही जाए तो संतरी या किसी भी जवान के पूछने पर कोड बता देने पर जान के लाले नहीं पड़ेंगे और जो बाहरी आदमी रात में कैंप में दिखा और वह पूछने पर कोड नहीं बता पाया तो सीधे फायर। कोड वर्ड का इस्तेमाल जहां रोज सैनिक राष्ट्रहित में किसी भी जान माल की क्षति से बचने के लिए करते हैं, वहीं घूसखोर सरकारी कर्मचारी खानदानी पैदाइषी गरीबी दूर करने के लिए स्वहित में करते हैं।
उत्तर प्रदेश के इतिहास में शायद पहली बार जब रिश्वत में आलू मांगने की खबर लोगों ने एक दारोगा के मुंह से सुनी तो हर किसी ने उसे मजाक में लिया और समझा कि चालू सीजन में आश्चर्यजनक रूप से आलू अधिक महंगी होने के कारण ही नागरिक पुलिस दारोगा ने थाने आए किसी पीड़ित / जरूरतमंद से मांग लिए होंगे घर और घरवाली की जरूरत के लिए। हालांकि यहां मामला ही पूरी तरह से जुदा था। यह दीगर बात है कि सस्पेंड होने के बाद दारोगा भी परिजनों, अधिकारियों और मीडिया से उक्त बात ही दोहराते नजर आए, लेकिन जांच के बाद पता चला कि बात इतनी भर नहीं थी। आलू, घी, कूलर आदि विभाग के कोड वर्ड हैं रिश्वत की रकम वसूलने के लिए।
जानकार बताते हैं कि भ्रष्टाचरण को लेकर प्रदेश की योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति के कारण ही बदलते परिवेश में इस तरह के शब्दकोश के विकास की जरूरत महकमे को पड़ी है। अतीत में कई बार देखने में आया है कि परिवहन विभाग में ओवरलोडिंग करने वाले ट्रक ट्रांसपोर्टर औरसंबंधित विभाग ने कोड वर्ड (शब्दकोश) विकसित कर रखे हैं। कई बार उल्लू गैंग के पास से ऐसे रैपर पुलिस और विजिलेंस ने बरामद किए हैं, जिन पर ट्रक, डंपर और हाइवे के नंबर के बजाय वे शब्द लिखे पाए गए हैं, जिनसे रात में ओवरलोडिंग का कारोबार चलता है। ये वे शब्द हैं, जो हर डंपर पर बड़े और मोटे अक्षरों में लिखे रहते हैं। यही शब्द विभाग में नोट रहते हैं और प्रति चक्कर के हिसाब से विभाग को पैसा जाता है, कभी-कभी प्रतिदिन के हिसाब से तो कहीं-कहीं प्रति माह के हिसाब से।
वैसे तो किसी भी सरकारी विभाग में बेईमानी का कद्दू जब भी काटा जाता है तो पूरी ईमानदारी से बांटने की ही पुरातन परंपरा रही है आजादी के बाद से क्योंकि आजादी के पहले अंग्रेजों के घोडे और कोडे के डर से लोग जुर्रत नहीं जुटा पाते होंगे। एक-आध बार हिसाब-किताब में चोरी व बेईमानी पकड़ में आने के कारण दोनों पक्षों को घाटा लगने के प्रत्यक्ष प्रमाण न होने के कारणों का तो पता नहीं, पर अधिकारियों को जरूर लग रहा था उनका घाटा ज्यादा हो रहा है। दरअसल मंथली हिसाब के समय ट्रांसपोर्टर कह देते थे कि इतने ट्रक तो इतने दिन खड़े रहे, काम ही नहीं मिला। एक्सेल टूट गया था, गाड़ी लड गई थी, लिहाजा इस महीने के इतने ही बनते हैं।
इस कारण चक्कर और किस कंपनी के कितने ट्रक रात भर में निकले, यह गिनने के लिए ही उल्लू गैंग को अस्तित्व में लाना विभागीय अधिकारियों की मजबूरी बन गया। स्पष्ट कर दूं कि बेरोजगार व नशेड़ियों की बहुतायत वाला यह वह गैंग है, जो विभागीय अधिकारियों की कृपा से उनके मातहत की तरह किसी मार्ग अवरोधक के वाले स्थान पर सड़क किनारे कुर्सी डालकर अंधेरे में टार्च लेकर रात भर जागकर ट्रक गिनने का काम करता है। कन्नौज में रिश्वत में पांच किलो आलू मांगने का ऑडियो वायरल होने पर निलंबित किए गए दारोगा राम कृपाल की हैरान कर देने वाले करतूत सामने आई है। दारोगा रिश्वत वसूलने के लिए आलू और घी शब्द का प्रयोग कोडवर्ड के रूप में करता था।
फरियादियों से समझौता कराने के नाम पर उसने फोन करके किलो के हिसाब से आलू और घी लेकर आने की बात कही। प्रधानमंत्री जी की दी गई नसीहत कि यह दौर दूसरा है। अब तो हर हाथ में कैमरा है, को धता बताते हुए उसने फोन किया। पूरी बात को किसी ने रिकार्ड कर वायरल कर दिया और दारोगा जी को लेने के देने पड़ गए। जानकारी के मुताबिक सौरिख थाना क्षेत्र के गांव शिवसिंहपुर निवासी राहुल राठौर कबाड़ की दुकान किए है। छोटा भाई विपिन दिल्ली में नौकरी करता है। वह पांच अगस्त को गांव आया था। संपत्ति बंटवारे को लेकर उसका मां मुन्नी देवी और भाई राहुल से विवाद हो गया। विपिन ने चपुन्ना चौकी प्रभारी को बड़े भाई राहुल के खिलाफ मारपीट की तहरीर दी।
इसके बाद वह चौकी से ही दिल्ली चला गया। छह अगस्त को दारोगा ने राहुल को चौकी बुलाया और उसे आलू का हिसाब समझाते हुए कहा कि पांच किलो आलू लेकर आओ तो समझौता करा देगा। बता दें कि एक किलो आलू का मतलब एक हजार रुपये और एक किलो घी का मतलब 10 हजार रुपये रिश्वत से था। इसी प्रकार दोनों पक्षों की सहमति से कूलर का भी अलग अर्थ रख लिया गया है। राहुल घरलौट आया। आठ अगस्त को दारोगा ने राहुल को फोन कर पांच किलो आलू याद दिलाए तो उसने असमर्थता जताते हुए दो किलो आलू में मान जाने की प्रार्थना की और किसी तरह बात बन गई। दारोगा ने उसकी मां मुन्नी देवी से प्रार्थना पत्र में छोटे बेटे द्वारा तहरीर दिए जाने के मामले में समझौता पत्र लिखवा दिया। जैसे ही यह ऑडियो एसपी अमित कुमार आनंद के पास पहुंचा, उन्होंने तत्काल प्रभाव से दारोगा को निलंबित कर पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं।
एक और मामले में भी उक्त दारोगा की करतूत प्रकाश में आ चुकी है। चपुन्ना चौकी के उडैलापुर गांववासी किसान चंद्रभान का कहना है कि एक माह पूर्व उनका सोलर पैनल और नलकूप का सामान चोरी हो गया था। चौकी में तहरीर देने पर इसी दारोगा ने पांच किलो घी की मांग की थी, जिसे वह समझ नहीं पाए और अगले ही दिन गांव में इधर-उधर से व्यवस्था करके पांच किलो घी लेकर चौकी पहुंचे। गांव का असली देशी घी पाकर गदगद दारोगा ने पूरी बाल्टी रख ली और पसीजने के बाद दया दिखाते हुए 50 को घटाकर रकम 20 हजार कर दी और कहा कि रुपये लेकर आओ तो रिपोर्ट लिख दें। रुपये न देकर वह सीधे एसपी के पास पहुंचे और बताया कि 50000 का पूरा सामान नहीं है। 20000 रुपये और पांच किलो देशी घी में ही चोरी गए सामान को दोबारा खरीदा जा सकता है। उन्हीं के आदेश पर रिपोर्ट दर्ज हुई और फिर जल्द ही कार्रवाई भी हो गई क्योंकि धन्ना सेठ बनने के चक्कर में उसकी आलू, टमाटर, मकई और धान मांगने की आदत की मिली खबरों की पुष्टि हो गई थी।
एसपी ने सीओ सिटी कमलेश कुमार को मामले की जांच सौंपी। सीओ सिटी से पूछताछ करने पर निलंबित दारोगा ने बताया कि उसने मजाक में राहुल से पांच किलो आलू मांगे थे। उसका मकसद रिश्वत लेना नहीं था। दूसरी ओर ऑडियो वायरल होने के बाद राहुल इतना डर गया है कि गांव छोड़कर भाग गया है। उसकी मां ने बताया कि पत्नी के साथ औरैया में कहीं रिश्तेदारी में रह रहा है। उसे डर है कि चिढ़ जाने के बाद कहीं पुलिस उसके खिलाफ कोई कार्रवाई न कर दे। मामला षांत होने तक वहीं रहकर कमाएगा और खाएगा।
14 माह की नौकरी में रिश्वत का खेला
मेरठ में यूपी पुलिस के दारोगा को एंटी करप्शन की टीम ने रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा है। दारोगा का नाम आशुतोष है। जिसने महबूब नाम के आदमी से मुकदमे में एफआर लगाने के नाम पर 20 हजार रुपए मांगे थे। दारोगा आशुतोष को एंटी करप्शन टीम ने 20 हजार रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया था। दारोगा सरुरपुर थाने की खिवाई चौकी पर इंचार्ज था। मारपीट के मुकदमे में एफआर लगाने पर रिश्वत मांगी थी। दारोगा पर रोहटा थाने में एंटी करप्शन टीम ने मुकदमा दर्ज कराया है।
शिकायतकर्ता ने बताया कि गांव में कुछ झगड़ा हुआ था। 11 जून को इसमें मुकदमा लिखा गया। दारोगा आशुतोष ने एफआर लगाने के लिए 20 हजार रुपए मांगे थे। पैसे देने से मना किया तो उन्होंने कहा बिना पैसे दिए एफआर नहीं लगेगी। इसके बाद एंटी करप्शन टीम से शिकायत की थी। टीम ने दारोगा को रिश्वत लेते गिरफ्तार किया था। पीडित महबूब ने बताया कि उसका साला किसी लडकी को लेकर कहीं चला गया था। लेकिन इस मामले में पीड़ित पक्ष ने मकबूल पर बेवजह मुकदमा कराया था। बाद में उससे डेढ़ लाख रुपए भी ले लिए थे।
जब महबूब ने पुलिस से शिकायत की तो उन लोगों ने कुछ रुपया वापस कर दिए, लेकिन बाकी पैसे नहीं दिए। इसको लेकर लगातार वह शिकायत कर रहा था। तभी 11 जून के आसपास उन लोगों ने मारपीट कर दी। इसी मामले में एफआर लगाने के लिए दारोगा आशुतोष ने 20 हजार रुपए मांगे थे। दारोगा आशुतोष ने मार्च 2023 में नौकरी ज्वाइन की थी। उसे नौकरी में आए कुल 14 महीने ही हुए थे। इतनी छोटी सी नौकरी में ही उसे भ्रष्टाचार की आदत पड गई और वसूली शुरू कर दी।
दीवार कूदकर भागे दारोगा के गद्दे तकिया से मिले 10 लाख
एक दारोगा को नौकरी काल में दबिश के दौरान कई बार दीवार फांदनी पड़ती है, छत पर किसी मामूली सहारे के चढ़ना पड़ता है और दबाव में आने पर कभी कभी छत से कूदना भी पड़ता है। यह सब नौकरी का हिस्सा होता है, लेकिन यह शायद पुलिस के इतिहास का पहला ही मौका होगा, जब अपने कप्तान को देखकर किसी थाना प्रभारी इंस्पेक्टर को दीवार फांदकर भागना पड़ा होगा। उत्तर प्रदेश के बरेली में फरीदपुर थाने में तैनात पुलिस इंस्पेक्टर राम सेवक पर ड्रग तस्करों को रिश्वत लेकर छोड़ने के गंभीर आरोप लगे तो तेजतर्रार एसएससी अनुराग आर्य ने आनन-फानन एसपी साउथ को इंस्पेक्टर के आवास पर तुरंत छापा मारने का आदेश दिया।
सूचना और निशाना इतना सटीक था कि उसके बेड पर गद्दे के नीचे से नोटों की कई गड्डियां और एक लेयर तकिया में भी मिली। कुल नौ लाख 96 हजार रुपये नकद बरामद हुए। उधर, चोर की दाढ़ी में तिनका के कारण छापे के पहले व अधिकारियों को देखते ही इंस्पेक्टर थाने की दीवार फांदकर फरार हो गया। इस कार्रवाई की गूंज पूरे पुलिस महकमे के अलावा राजधानी तक सुनाई पड़ी और कहना न होगा कि एसएसपी के भी कालर और ऊंचे हो गए, क्योंकि हाल में ही साइको सीरियल किलर को कई साल बाद पकड़ने में सफलता हासिल करने के बाद से पहले से ही उनके नंबर बढ़े हुए थे। उस दिन एसएसपी को सुबह ही गोपनीय सूचना प्राप्त हुई थी कि फरीदपुर इंस्पेक्टर ने रात में सात लाख की मोटी रिश्वत लेकर एनडीपीएस एक्ट के तहत पकड़े गए दो स्मैक तरकरों को छोड़ा है।
इससे पहले कि बैंक या प्रतिष्ठान खुलते और घूस की रकम को ठिकाने लगाया जाता। उसके पहले ही उन्होंने एसपी साउथ मानुष पारीक और सीओ फरीदपुर गौरव सिंह को तत्काल छापा मारने के लिए भेज दिया। वह चाहते तो खुद भी छापा मारने जा सकते थे और सारे नंबर अकेले ही बटोर सकते थे, पर गुखिया जैसी ऊंची सोच होने के कारण सिस्टम को ओवरलुक किए बिना ही सफलता हासिल कर विभाग को एक संदेष भी दिया। वैसे तो वर्दी प्रेम और आपस में मौसेरे भाई होने के कारण छापे की सूचना लीक होने की भी पुरानी परंपरा विभाग में रही है, पर न जाने क्यों इस बार ऐसा हो नहीं सका और इंस्पेक्टर के आवास पर सफल छापा डालने में उच्चाधिकारियों को सफलता मिली। भले ही थाना प्रभारी दीवार कूदकर भागने में सफल रहा हो, पर उसके आवास से कुल नौ लाख 96 हजार रुपये कैश बरामद हुआ।
अधिकारियों का मानना है कि पहले भी किसी मामले में तीन लाख रिश्वत ली गई होगी। इस तरह करीब दस लाख की कुल बरामदगी हुई। जांच में ज्ञात हुआ कि उस रात आलम पुत्र मो. इस्लाम व नियाज अहमद पुत्र शेर मोहम्मद निवासीगण नवदिया अशोक थाना फरीदपुर जिला बरेली से नशीले पदार्थ बरामद हुए थे, लिहाजा उन्हें पकड़कर हवालात में डाला गया था। रात में ही पैरोकार दौडने लगे थे और देर रात सात लाख रुपये लेकर थाना प्रभारी ने दोनों को छोड़ दिया था। सूत्र बताते हैं कि इंस्पेक्टर ने 10 लाख रुपये पैरोकारों से मांगे थे और बाद में डील सात लाख में फाइनल हुई थी।
जानकार अनुमान लगा रहे हैं कि कोतवाल से चिढ़ा होने के कारण थाने में ही एसएसपी का कोई खबरी था, जिसने समय से यह जानकारी कप्तान तक पहुंचाई। इस संबंध में क्षेत्राधिकारी फरीदपुर की तहरीर पर थाना फरीदपुर में ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तरह मामला पंजीकृत कराया गया। आरोपी निरीक्षक को निलंबित किया गया है। उसकी गिरफ्तारी के प्रयास किए जा रहे हैं। अधिकारियों ने बताया कि जल्द ही गिरफ्तारी करते हुए आगे की विवेचनात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी
