06 जुलाई को तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा अपना 89वां जन्मदिन मना रहे हैं। वह कहते हैं कि उनका शरीर तिब्बती है, लेकिन वह मन से भारतीय हैं। बता दें कि करीब 64-65 साल पहले 31 मार्च 1959 में दलाई लामा को तिब्बत छोड़ना पड़ा था। तिब्बत छोड़ने के बाद से वह भारत में ही रह रहे हैं। दलाई लामा को भारत में काफी सम्मान मिलता है। वह तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरु हैं। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…
पूर्वोत्तर तिब्बत के तक्तेसेर क्षेत्र में 06 जुलाई 1935 को दलाई लामा का जन्म हुआ था। वह एक साधारण किसान परिवार में जन्मे थे। उन्होंने 6 साल की उम्र से शुरूआती शिक्षा शुरू की थी। बता दें कि उनकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध कुंबुम मठ में किया गया था। वहीं साल 1949 में 23 साल की उम्र में उन्होंने जोखांग मंदिर, ल्हासा में अपनी फाइनल परीक्षा दी। दलाई लामा ने यह परीक्षा ऑनर्स के साथ पास की। फिर उनको बौद्ध दर्शन में पीएचडी प्रदान की गई।
साल 1939 में जब दलाई लामा चार साल के थे, तब उनको राजधानी ल्हासा भेज दिया गया था। जहां पर उनकी कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की। इस दौरान एक विशेष सहारोह में दलाई लामा को तिब्बत का आध्यात्मिक नेता घोषित कर दिया गया। फिर उनको नोरबूलिंगा महल ले जाया गया। महज 15 साल की उम्र में दलाईलामा को तिब्बत का राष्ट्राध्यत्र बनाकर उनको सारे अधिकार दे दिए गए। 17 नवम्बर 1950 को 15 साल की उम्र में वह साठ लाख जनता के राष्ट्राध्यक्ष बन गए। राष्ट्राध्यक्ष बनने के बाद उनके जीवन में समस्याएं आनी शुरू हो गई।
तिब्बत में चीन का बढ़ते हस्तक्षेप के कारण दलाई लामा को छोटी उम्र में ही तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने साल 1950 की शुरुआत में तिब्बत पर आक्रमण करना शुरू किया। फिर साल 1951 में चीन के साथ तिब्बत ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। जिसके बाद तिब्बत पर चीन का कब्जा हो गया। वहीं जब 18 अप्रैल 1959 को तिब्बत के 14वें दलाई लामा बनाए गए। तब चीन के साथ तिब्बत का जबरन समझौता हुए। तिब्बत पर अवैध कब्जे के बाद भी चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया।
साल 1949 में चीन द्वारा तिब्बत के हमले के बाद दलाई लामा से कहा गया कि वह पूरे तरीके से राजनीतिक सत्ता अपने हाथ में ले लें। साल 1954 में तिब्बत से सैनिकों की वापसी और चीन यात्रा पर शांति समझौता की बात को लेकर दलाई लामा माओ जेडांग, डेंग जियोपिंग जैसे कई चीनी नेताओं से बातचीत करने के लिए बीजिंग गए। लेकिन वह सम्मेलन असफल रहा। साल 1959 में चीनी सेनाओं द्वारा ल्हासा में तिब्बती राष्ट्रीय आंदोलन को बेरहमी से कुचले जाने दलाई लामा निर्वासन के लिए मजबूर हो गए। वहीं उनको साल 1959 में दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी और तब से वह भारत में रह रहे हैं। वर्तमान समय में उत्तर भारत के धर्मशाला शहर में दलाई लामा रह रहे हैं। यहीं से वह तिब्बत का कामकाज संभाल रहे हैं।