शास्त्रों में बताई गई बातों का जो कोई पालन करता है, उसे जीवन में पछतावा नहीं होता। वैसे तो छात्रों के लिए शास्त्रों में कई प्रेरणा दायक श्लोक का जिक्र किया गया है, लेकिन एक श्लोक विद्यार्थी के लिए संजीवनी का काम कर सकता है। इसके अलावा गीता के तीसरे अध्याय का एक श्लोक हर इंसान के लिए प्रेरणादायी है। आइए जानते हैं।
प्रथमेनार्जिता विद्या, द्वितीयेन अर्जितंधनं
तृतीयेनार्जितः कीर्ति, चतुर्थे किम् करिष्यति
यानी- जिसने ब्रह्मचर्य आश्रम में विद्या ना अर्जित की, गृहस्थ आश्रम में धन अर्जित न किया, वानप्रस्थ आश्रम में यश ना अर्जित किया, उसका संन्यास आश्रम में क्या होगा? गीता का कथन है कि मानव जीवन के लिए जो आश्रम की व्यवस्था की गई है, व्यक्ति को उसके अनुसार चलना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को कभी पछतावा नहीं होता है।
आलस्यस्य कुतः विद्या, अविद्यस्य कुतः धनम्
अधनस्य कुतः मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम्
जो आलसी है वह विद्या कैसे प्राप्त कर सकता। अनपढ़ यानी मूर्ख को धन की प्राप्ति कैसे हो सकती है। जिसके पास धन नहीं है उसे मित्रों का साथ कैसे मिल सकता। वहीं जिसके पास अच्छे मित्र नहीं हैं, उसे सुख कैसे मिल सकता है।
ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्
सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः
गीता के मुताबिक जो कोई भगवान श्रीकृष्ण के दिए उपदेश में गलतियां या दोष ढूंढ़ता है, उसे कभी भी नॉलेज हासिल नहीं होता। गीता का यह कथन संदेश देता है कि व्यक्ति को कभी भी बड़ों की बातों का निरादर नहीं करना चाहिए।