भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को अपने कंठ में धारण किया था, जिससे उनका कंठ नीला हो गया। इस घटना का उल्लेख पुराणों में मिलता है और यह दर्शाता है कि भगवान शिव ने संसार की भलाई के लिए विष को अपने अंदर धारण किया।
जहां तक उस स्थान की बात है, जहां भगवान शिव ने विष पिया था, वह स्थान आमतौर पर कैलाश पर्वत के आस-पास माना जाता है। कैलाश पर्वत, जिसे भगवान शिव का निवास स्थल माना जाता है, हिमालय के एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह स्थान आज भी तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण है और यहां शिव की पूजा अर्चना की जाती है।
भगवान शिव का वर्ण गोरा बताया जाता है, लेकिन विष के कारण उनका कंठ नीला हो गया। इसीलिए उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा जाता है, जो उनकी करुणा और बलिदान का प्रतीक है।भगवान शिव ने विष पिया था, जिसे आज नीलकंठ मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह स्थान समुद्र मंथन के बाद उत्पन्न हलाहल विष के पान से संबंधित है। जब यह विष निकला, तब भगवान शिव ने इसे अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया।
नीलकंठ मंदिर का महत्व
नीलकंठ मंदिर उस जगह पर स्थित है, जहां भगवान शिव ने 60 हजार साल तक समाधि में रहकर विष की उष्णता को शांत किया। यहां भगवान शिव का स्वयंभू लिंग विराजमान है, और शिवलिंग पर आज भी नीला निशान देखा जा सकता है।
मंदिर की नक्काशी बेहद खूबसूरत है, जिसमें समुद्र मंथन के दृश्य प्रदर्शित किए गए हैं। गर्भगृह में एक बड़ी पेंटिंग भी है, जिसमें भगवान शिव को विषपान करते हुए दर्शाया गया है।
पार्वती जी का मंदिर
नीलकंठ मंदिर के पास पहाड़ी पर मां पार्वती का भी मंदिर है। इसके आस-पास मधुमति और पंकजा नदियां बहती हैं, जहां भक्त स्नान कर भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं।
कैसे पहुंचें
आप ट्रेन या बस से ऋषिकेश पहुंच सकते हैं, जो कि नीलकंठ मंदिर के करीब है। हवाई यात्रा के लिए देहरादून एयरपोर्ट सबसे नजदीक है, जो ऋषिकेश से केवल 18 किमी दूर है।ऋषिकेश से 4 किमी दूर रामझूला तक ऑटो से पहुंच सकते हैं, और फिर रामझूला पुल पार कर स्वार्गश्रम से होते हुए 12 किमी दूर नीलकंठ मंदिर तक जा सकते हैं।यह स्थान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसकी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत भी इसे विशेष बनाती है।