दीवार बना बंद की सड़क

संजय राजन

गांव-घर के पास श्रमिक की नौकरी भी मिल जाती है तो हुनरमंद लोग भी मत्थे इसलिए लगा लेते हैं कि कंपनी या फैक्ट्री की सेवा के साथ खेतों व परिवार की भी सेवा करते रहेंगे यानी कि कम मेवा से काम चलाते रहेंगे, जो कि दिल्ली व मुंबई के 20-30000 से बेहतर होगा। हालांकि कालांतर में इसके एवज में अदा करनी पड़ती है भारी कीमत। गिरवी रखने पड़ते हैं हाथ-पैर, दिमाग, जमीर और जुबान। कुछ ऐसा ही हाल हो गया है मैजापुर चीनी मिल के स्थानीय कर्मचारियों का। सरकारी धन से पीडब्ल्यूडी द्वारा बनवाई गई सड़क को बंद करने से चार किलोमीटर का चक्कर मारकर नजदीकी कस्बे, नौकरी और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बीसियों हजार की आबादी को रोजाना जाना पड़ता है, पर मिल से मिल रहे वेतन ने मुंह पर ताला लगा रखा है। उल्टे मुखर शिकायत करने वालों को ही कठघरे में खड़ा करने का काम कर रहे हैं कुछ स्थानीय कर्मी।

उक्त सड़क विधायक निधि से बनवाई गई दो सड़कों को मिल ने कब्जे में लेकर अंदर कर लिया है। दीवार उठा दी गई है। हद और हैरत की बात यह है कि राजस्व अभिलेखों में आज भी उक्त जमीन गाटा संख्या 667 रास्ते के रूप में दर्ज है। सवाल है कि क्या सिस्टम किसी को आशीर्वाद देकर इतना सक्षम बना देगा कि वह सड़क पर कब्जा कर हजारों लोगों का रास्ता बंद कर दे? इससे साफ है कि जिले में प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं रह गई है, जिसकी लाठी में पैसे के तेल रूपी गर्मी भरी हो, वह कहीं भी कुछ भी कर सकता है। उप जिलाधिकारी, करनैलगंज, गोण्डा और लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता को नवंबर 2024 में लिखे गए पत्र में पूर्व विधायक कटरा बाजार वैजनाथ दुबे ने कहा था कि मैजापुर चीनी मिल प्रबंधन ने लोक निर्माण विभाग द्वारा निर्मित पड़ोस की दो सड़कों को अतिक्रमण कर चीनी मिल परिसर में मिला लिया है।

इतना ही नहीं गेट भी बनवा लिया है, जिससे कई गांवों की हजारों की आबादी को आवागमन में असुविधा हो रही है। यह मानवाधिकार का भी हनन है। सड़कों की पैमाइश कर शिकायतों को हल कर राहत देने की मांग की थी, पर हो कुछ नहीं सका है। एक आरटीआई के जवाब में लोक निर्माण विभाग कहता है कि उक्त दोनों सड़कों का निर्माण व मरम्मत विभाग ने कराई थी। दूसरी ओर, मंडल आयुक्त देवीपाटन शशिभूषण लाल सुशील कहते हैं कि रवींद्र नाथ मिश्र ने जनता दर्शन में अवगत कराया है कि उप जिलाधिकारी करनैलगंज के पत्र पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है। अतएव कृत कार्यवाही से सात दिवस में अवगत कराएं, पर यह कैसा प्रशासन कि सात माह बीतने को हैं और नतीजे के नाम पर ढाक के तीन पात ही हैं? पीड़ित कहते हैं कि क्या पूरे सिस्टम को खरीद लिया गया है? साहस जुटाकर कुछ लोग स्थानीय निवासी मौके पर जाते हैं और दीवार उठाकर सार्वजनिक सड़क को बंद करने से मना करते हैं।

पुलिस प्रशासन मौके पर आता है। बात नहीं बनने पर गोंडा की सच्चाई अखबार की संपादक पुनीता मिश्रा के पास जाकर निवेदन करते हैं, फिर कहीं काफी कवायद के बाद दीवार गिराई जाती है, लेकिन बाद में फिर बनवाकर रास्ता बंद कर दिया जाता है। विभिन्न स्तरों पर बहुत लिखा-पढ़ी होती है, पर कहीं वात नहीं बनती है। उल्टे पत्रकार को निशाने पर लेते हुए शतरंज की बिसात की तरह राजा-रानी और वजीर  खुद पीछे रहकर प्यादों व पैदल सेना के जरिए चारों तरफ से पत्रकार की घेरेबंदी शुरू करते हैं। उत्पीड़न का आलम यह हो जाता है कि कई मुकदमे लाद देते हैं और न्याय का नाम लेने के बावजूद जिला प्रशासन मौन रहता है। पिता की पेंशन पर सवाल उठाते हैं तो ईंटों की चोरी का आरोप लगाते हैं तो कहीं बेवकूफों की तरह केंद्र सरकार के सूचना विभाग से हासिल आरएनआई रजिस्ट्रेशन के बारे में दावा करते हैं कि गंभीर प्रकृति के आपराधिक मामलों को छिपाकर हासिल किया गया है, लिहाजा कैंसिल किया जाए।

चारागाह की 40  बीघा जमीन पर कब्जे का आरोप लगाकर दबंग और हिस्ट्रीशीटर साबित करने की कोशिश करते हैं। उक्त आरोपों के बारे में पत्रकार का कहना है कि अरसा बीतने के बाद भी न कोई जांच और न कार्रवाई। यदि ईंट चोरी हुई है और जमीन कब्जा हो गई है तो जांच रिपोर्ट कहां है? उल्टे इस जमीन पर मिल ने कब्जा करके दो दर्जन से अधिक कॉलोनी बना रखी है। कुल मिलाकर इलाके में मिल द्वारा जमीनों पर कब्जा करने की चर्चा भरपूर है। किसान की जब जमीन जाती तो फिर आदमी के अंदर से डर खुद-ब-खुद काफूर हो जाता है। दो दर्जन लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, जिसमें अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व विभाग को पार्टी बनाया गया है। याची के वकील अंकित पांडे और वीरेंद्र भट्ट ने जस्टिस बृजराज सिंह की कोर्ट में अपने तर्क रखे। अवलोकन में पाया गया कि याचिकाकर्ताओं की अधिग्रहीत भूमि पर कब्जा लेने की बात नहीं की गई है। इसमें पुरस्कार देने की बात कही गई है।

प्रथम दृष्टया, विवादित आदेश में धारा 48 में उल्लिखित मापदंडों का उल्लेख नहीं किया गया है। विचारणीय बिंदु यह है कि क्या याचिकाकर्ता की 1995 में अधिग्रहीत भूमि पर कब्जा लिया गया था या नहीं। यदि नहीं तो आवेदन पर भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 48 के अनुसार विचार किया जाना चाहिए था तथा आवेदन स्वीकार न करने के कारण बताए जाने चाहिए, जब तक कि कोई ऐसा कानून न हो, जो यह कहे कि आवेदन स्वयं पोषणीय नहीं था, जिसका उल्लेख आक्षेपित आदेश में नहीं किया गया है। स्थिति के मद्देनजर कुछ लोगों का सड़क को लेकर भी उत्साह बढ़ा है और अंदर खाते चर्चा है कि यह मैटर भी अब हाईकोर्ट से ही हल हो सकेगा।

दृष्टांत न्यूज से बातचीत में पीड़ितों ने बताया कि स्वतंत्र भारत में इस तरह सड़क बंद करने या दबंगई के कम ही दृष्टांत मिलेंगे। तहसील से लेकर सीएम पोर्टल व पीएम ऑफिस तक शिकायत हो चुकी है, फिर भी प्रशासनिक हीलाहवाली आम आदमी की समझ से परे है। विवाद के बाद से मुद्दे पर बात न करके पीड़ितों के खिलाफ एक केस और लगवा देते हैं या फिर एक एप्लीकेशन पुलिस से लेकर केंद्र सरकार तक भेज देते हैं। शुरू-शुरू में डीएम नेहा शर्मा ने जनता की मदद करने की कोशिश की, फिर बात आई-गई हो गई और कई साल बीतने के बाद भी मामला आज भी ज्यों का त्यों है। अब तो एक और सड़क पर कब्जा करके मिल परिसर के अंदर कर ली गई है। लोगों ने बताया कि मिल का मैनेजर स्थानीय मिल कर्मियों के दम पर विभिन्न प्रकार के भय व दबाव बनाकर ग्रामीणों का मुंह बंद करवाने में लगा रहता है। जिला प्रशासन के किसी भी ऑफिस में जाओ या अस्पताल में। हर जगह मिल के फैन, एसी, वाटर कूलर और कमरे बलरामपुर फाउंडेशन द्वारा दान किए हुए मिल जाएंगे, जिससे कि पूरा प्रशासन मिल की ही पैरोकारी में लगा रहता है और कई अधिकारी को दबी जुबान यह भी कहते हैं कि सड़क की समस्या का हल स्थानीय स्तर से हो नहीं पाएगा।

मिल प्रबंधन से टकरा कर कुछ हासिल नहीं होगा, उल्टे परेशानी बढ़ जाएगी। मुख्य मुद्दा मिल द्वारा अधिग्रहण से अधिक जमीन पर कब्जे को लेकर है। किसानों ने बताया कि 1995-96 में अधिग्रहण की बात कही गई थी। किस्सा भी बड़ा अजीब है। न नोटिस, न हस्ताक्षर, न अंगूठा और न ही मुआवजा। गुमनाम लोकल अखबार में गजट करवाया और हो गई जमीन चीनी मिल की। हालांकि कुछ किसानों ने माना कि 2000 रुपए प्रति बीघा की दर से मुआवजा मिला था और बैनामा 6000 रुपए प्रति बीघा की दर से। बुजुर्ग किसानों ने बताया कि हरियाली बढ़ाने के नाम पर गांव सिंहपुर की 40 बीघा चारागाह की जमीन मिल ने पट्टे पर ली थी, पौधे भी लगाए थे, पर मिल का इरादा पहले ही दिन से ठीक नहीं था, लिहाजा बहुतायत में पक्का निर्माण कर लिया गया। बड़ी संख्या में कॉलोनी बनाई गई हैं।

इतना ही नहीं चहारदीवारी उठाकर कब्जा कर लिया गया है। पीड़ित सवाल करते हैं कि चरागाह की जमीन लीज पर कैसे दी जा सकती है, जबकि अदालत का रुख चारागाहों को लेकर पहले से ही साफ रहा है। कानून कहता है कि नवैय्यत (भूमि की प्रकृति) नहीं बदली जा सकती है, फिर भी बदली गई है। 2027 में लीज पूरी हो रही है। देखने वाली बात होगी कि तब प्रशासन चीनी मिल के कब्जे से चारागाह मुक्त करा पाएगा या याराना निभाएगा। पीड़ित ने बताया कि जो भी किसान अधिग्रहण के नाम पर शोषण के खिलाफ आवाज उठाता है, उसे विभिन्न तरीके से परेशान किया जाता है और दबाव बनाया जाता है। प्रबंधन कभी बाप से मिल कर्मी बेटे को भिड़ाता है तो कभी मिलकर्मी पिता को बेटे से भिड़ाकर कई से हस्ताक्षर कराने में सफल भी हुआ है। इसके विपरीत कई किसानों ने मुआवजे के नाम पर आज तक एक रुपया नहीं लिया है, जिसका केस चल रहा है। चिढ़ा-चिढ़ी का मुख्य कारण यही है।

इसी वजह से शायद वरिष्ठ पत्रकार के खिलाफ आधा दर्जन पत्रों के जरिए इतने ही आरोप लगाए गए हैं। जैसे तथाकथित पत्रकार कहा गया, जबकि वह केंद्र के स्वीकृति पत्र के आधार पर अखबार की मालिक व संपादक हैं। दो, अखबार के पंजीकरण (आरएनआई) को फर्जी बताकर लाइसेंस रद्द करने की मांग की गई, जो कि केंद्र सरकार के सूचना विभाग द्वारा प्रदान किया गया है। तीसरे, 2000 ईंट की चोरी, जिसका मिल प्रबंधन के पास साक्ष्य के रूप में फोटो या सीसीटीवी फुटेज नहीं है। सवाल किया कि उनके बीसियों सुरक्षा गार्ड व कैमरे सोते रहे और एक महिला ईंटें चुरा लाई। चौथे, सिंहपुर की 40 बीघा चारागाह की भूमि पर कब्जे के आरोप पर पूछने पर कहा कि जांच अधिकारी को मौके पर जाकर वीडियोग्राफी करवा कर जमाने को बताना चाहिए कि कब्जा किसका है?

मिश्रा परिवार का कब्जा हो तो फांसी पर लटका दिया जाए। दूसरे केस के बारे में पूछने पर बताया कि केस फर्जी न होता तो मुख्यमंत्री के स्तर से 2022 में वापस ही क्यों होता? क्रिमिनल के तौर पर प्रचारित व कर्मियों द्वारा दीवार गिराते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित करने के बारे में कहा कि किसी भी चीज का प्रूफ न होने के बाद भी प्रबंधन मानहानि कर रहा है। दरअसल प्रबंधन ने फंसाने के लिए ही अपने ही कर्मियों से दीवार गिरवाई थी। समाजवादी पार्टी का वरिष्ठ नेता बताने पर कहा कि पूरे जिले में कोई नहीं कह सकता कि कभी सपा का कोई मंच साक्षा किया या कोई पद स्वीकार किया है या सदस्य हूं। अलबत्ता भाजपा की जिला मीडिया प्रभारी जरूर रही और बाद में निर्गुट व स्वच्छ पत्रकारिता के लिए इस्तीफा दे दिया था। मिश्रा ने बताया कि हमने अधिग्रहण के नाम पर कुछ जमीन का बैनामा इंडो-गल्फ को 6000 रुपए प्रति बीघा में किया था। कुछ जमीन बढ़िया थी, जिसे नहीं दिया था, न बैनामा किया था,  उसी का मुकदमा चल रहा है।

विवाद के बारे में उन्होंने बताया कि इंडो-गल्फ ने अपने कब्जे वाली जमीन चीनी मिल को बेच दी तो फिर मिल उस जमीन पर दावा कैसे कर सकती है, जिस पर कभी इंडो-गल्फ काबिज ही नहीं थी और न कोई मुआवजे का लेन-देन हुआ था। दूसरे, उसका केस भी चल रहा है। इंडो-गल्फ की जो भी संपत्ति थी, वह अब बलरामपुर चीनी मिल ने ले ली है। षड्यंत्र रक्त कर पेंशन पाने के आरोप पर 2017 में रिटायर रवींद्र नाथ मिश्रा ने कहा कि हम खैरात नहीं, बल्कि हाईकोर्ट के आदेश पर पा रहे हैं। 2024 में आरटीआई डालकर सरकारी विभागों का गलत तरीके से समय जाया किया जा रहा है और सवाल किया कि सस्पेंड आदमी दूसरी जगह काम नहीं कर सकता है क्या? बर्खाश्त शिक्षक हो या आम जनता, सभी को बच्चे पालने व किसी तरह से खुद को व परिवार को जिंदा रखने का हक संविधान प्रदत्त है। सिर्फ हमें मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के लिए थोड़े-थोड़े अंतराल पर इस तरह की बिना सिर-पैर की बातें लंबे अर्से से उठाई जाती रही हैं क्योंकि अधिग्रहीत जमीन कौड़ियों के भाव में न देकर केस जो कर रखा है।

इसी कारण शुभचिंतक अधिकारी भी कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं और सलाह देते हैं कि मिल के बीच में मत आओ, प्रकरण से खुद को दूर रखो। किसानों ने बताया कि बेची गई भूमि को लेकर कोई विवाद नहीं है, पूरा विवाद तो दो सड़कों पर रातों-रात कब्जा कर आधा दर्जन गांवों का रास्ता बंद करने व जबरन अधिग्रहण के नाम पर हमारी जमीन पर मिल के कब्जे का है। अहम है कि इंतखाब में रास्ता (गाटा सं 667) दर्ज है, विधायक की पैरवी पर 84 लाख रुपए की लागत से पीडब्ल्यूडी ने पक्का करवाया था और दूसरी पर इससे कुछ कम लागत आई थी। आईजीआरएस जांच के क्रम में दी गई रिपोर्ट में सक्षम अधिकारी ने कहा है कि ग्राम संगुरही थाना कटरा बाजार स्थित चीनी मिल के सामने से पक्की टूटी हुई रोड है, जिससे दुर्गा मूर्ति विसर्जन व रोजी-रोटी व जरूरतों के अन्य प्रयोजनों से हजारों लोगों का आना-जाना होता है। चीनी मिल द्वारा उक्त रोड पर दीवार खड़ी करने की शिकायत पर मुख्य राजस्व अधिकारी ने एसडीएम करनैलगंज भारत भार्गव को जांच का आदेश दिया था। जांच कर उन्होंने अतिक्रमण हटाने को कहा था। काफी कवायद के बाद राजस्व विभाग की टीम ने जांच के उपरांत छह अक्टूबर 2024 को हटवा दिया है।

दबंगई से महिला पत्रकार समेत हजारों परेशान

मैजापुर चीनी मिल की दबंगई से क्षेत्र में दहशत का माहौल हो गया है। आपको बता दें कि 1985 में कटरा चौरी मार्ग से तिलका तक काली रोड बनाई गई थी। 1991 मैजापुर चीनी मिल आई, जो कि 1993 में चालू हुई। कुछ दिन बाद मिल बंद हो गई, जिसे बलरामपुर चीनी मिल ने खरीद लिया। उसके बाद से शुरू हो गए ये क्षेत्रवासियों के बुरे दिन। बताया जाता है कि मिल ने जब प्लांट लगाया था तो 2000 रुपया बीघा में 100 वीघा जमीन बैनामा कराया था। साथ ही एक घर पीछे एक परिवार को योग्यता अनुसार नौकरी देने की बात कही थी। नौकरी नहीं लेने वालों की जमीन 10000 रुपया बीघा में गई थी। अनुबंध पत्र बना था। मिल के बंद हो जाने के बाद बलरामपुर ग्रुप ने क्षेत्र के दलालों से मिलकर जनता का शोषण और किसानों की जमीन उकारना शुरू किया था। आवाज उठाने वाले पर फर्जी मुकदमे लिखवाकर दबा दिया जाता है।

चीनी मिल के प्रशासनिक अधिकारी सौरभ गुप्ता द्वारा बढ़ईपुरवा के किसानों की खड़ी फसल को ट्रैक्टर से जोतवा दिया गया था, लेकिन ग्रामीणों के आक्रोश को देखते हुए तत्कालीन एसडीएम रहे विशाल कुमार ने जुर्माना लगाया था, जिसे मिल प्रबंधन को देना पड़ा था। रोमिल मिश्रा के खेत में अवैध खनन कराया था, जिससे रोकने पर रोमिल पर फर्जी मुकदमा लिखा दिया था। उल्टे अवैध खनन के आरोप में लाखों रुपए जुर्माना जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने लगाया था, जिसके बाद अब चीनी मिल सीधे सड़कों को भी हथियाने में जुट गई, लेकिन जिला प्रशासन की चैतन्यता के कारण एक बार फिर मिल प्रशासन को बैकफुट पर आना पड़ा, जिससे छुब्ध होकर मिल प्रशासन आवाज उठाने वाले ग्रामीणों पर तथ्यहीन उलूल-जलूल आरोप लगाता ही रहता है।

सीबीआई जांच का बिंदु है कि बैनामा कितने बीघे का है, पट्टा कितने का, अधिग्रहण कितने बीघे का और लीज पर कितनी जमीन है क्योंकि नेक इरादे न होने के कारण मिल का विस्तार अभियान जारी रहता है। मिल के बगल सड़क पर अवैध बाउंड्रीवाल का निर्माण कराने से ग्रामीणों में बहुत नाराजगी है। ग्रामीणों ने प्रशासन से अतिशीघ्र दीवार हटवाकर रास्ते को खुलवाने की मांग की है। ग्रामीण रामप्रकाश मिश्र, लवकुश शर्मा सहित कई लोगों ने आईजीआरएस के माध्यम से व लिखित प्रार्थना पत्र देकर अधिकारियों से शिकायत की थी।

वर्ष 1985 में विधायक निधि से काम चलाऊ सड़क बनवाई गई थी। इससे समदरियापुर, अवदानपुरवा, सुक्खापुरवा, त्रिभुवनपुरवा, बढ़ईपुरवा, मंगुरही, अहिरनपुरवा, सिंहपुर, बिकरवा, नकहा सहित कई गांव के लोग चार किमी का चक्कर लगाने पर मजबूर हो रहे हैं। पूर्व प्रधान हनुमंत लाल मिश्र का कहना है कि रास्ता बंद होने से ग्रामीणों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। समस्या का समाधान जितनी जल्दी हो जाए, ठीक रहेगा। ट्विटर के जरिए सीएमओ और पीएमओ तक बात पहुंच चुकी है। नाराज किसान उसकी तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से कर रहे हैं। मिल प्रबंधन जनमानस पर रुपए मांगने और ब्लैकमेल करने की बात कहता रहा है। मिल के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी सौरभ कुमार गुप्ता ने उस समय बताया था कि सड़क नवीनीकरण हो रहा है इसलिए दीवार बनाई गई है। बाद में हटा दी जाएगी।

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