
लखनऊ। केजीएमयू के लिंब सेंटर की ओपीडी में पर्चा बनवाने के बाद लाइन में लगने पर करीब आधे घंटे बाद नंबर आया। अंगुलियों और जोड़ों में दर्द की बात कहने पर डॉक्टर ने सात दवाएं लिखीं। कहां मिलेंगी पूछने पर खुद डॉक्टर ने कहा कि बाहर से खरीद लेना। कर्मचारियों ने परिसर के बाहर स्थित दवा दुकान की तरफ इशारा करते हुए मिलने की जगह बताई।
हालांकि निजी मेडिकल स्टोर जाने के बजाय संस्थान परिसर स्थित एचआरएफ काउंटर पर पहुंचे। करीब 20 मिनट लाइन में लगने के बाद नंबर आया। कर्मचारी ने पर्चा देखने के बाद बताया कि दवाएं करीब 500 रुपये में मिल जाएंगी, लेकिन फिलहाल केवल दो दवाएं हैं, बाकी बाहर से लेनी पड़ेंगी। मजबूरी में लिंब सेंटर के बाहर स्थित निजी स्टोर पर पहुंचे। दुकानदार ने बताया कि सभी दवाएं 2600 रुपये में मिलेंगी।
मरीजों को दवाएं मिलने में होने वाली दिक्कत की यह तस्वीर केजीएमयू के लिंब सेंटर की है। ओपीडी से निकलने वाला हर मरीज दवाओं के लिए परेशान दिखा। ओपीडी में डॉक्टर से लेकर कर्मचारी तक बाहर से दवाएं लेने की सलाह देते हुए लिंब सेंटर के बाहर स्थित दुकान का पता बता दे रहे थे। निजी स्टोर पर दवाएं महंगी होने पर आर्थिक रूप से कमजोर मरीज कम दाम में दवा मिलने की उम्मीद से लिंब सेंटर के पीछे स्थित एचआरएफ काउंटर पर पहुंचते हैं। हालांकि पता चलता है कि लिखी गई दवाओं में ज्यादातर हैं ही नहीं। ऐसे में मजबूर होकर मरीज को निजी मेडिकल स्टोर से दवाएं लेनी पड़ रही हैं।
केजीएमयू के एचआरएफ काउंटर पर मरीजों को जो दवाएं महज 500 रुपये में मिल सकती हैं, वही लिंब सेंटर के बाहर स्थित निजी स्टोर से 2500 रुपये से ज्यादा में खरीदनी पड़ रही हैं। ऐसे में सवाल यह है कि ओपीडी में डॉक्टर द्वारा लिखी जाने वाली दवाएं एचआरएफ काउंटर पर क्यों नहीं हैं? सवाल यह भी है कि जो दवाएं एचआरएफ काउंटर पर उपलब्ध हैं, डॉक्टर भी वही क्यों नहीं लिख रहे।
सबसे बड़ी बात यह है कि एचआरएफ काउंटर तो दूर लिंब सेंटर के बाहर स्थित मेडिकल स्टोर छोड़ बाकी शहर के किसी हिस्से में स्थित दुकानों पर भी आसानी से नहीं मिलतीं। ऐसे में मरीज को मजबूरी में लिंब सेंटर के बाहर स्थित दुकान पर ही आना पड़ता है।