जलवायु परिवर्तन से गर्मी के बढ़ने की आशंका 30 गुना बढ़ी

नई दिल्ली। वैज्ञानिक शायराना अंदाज में कहते हैं कि धरती को बुखार हो गया है। इसका मतलब यह है कि तापमान 1850-1900 की औद्योगिक क्रांति से पहले के औसत की तुलना में 1.5 और 2 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करने के करीब है। यह लोगों को गर्मी से होने वाली मुश्किलें जैसे जलवायु परिवर्तन के खतरों की तरफ धकेल रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ते तापमान के लिए इंसानी गतिविधियों से मौसम में हो रहा बदलाव जिम्मेदार है जिसे अस्थायी तौर पर अल नीनो को हवा दे रहा है। लेकिन क्या आपको पता है कि धरती के इस बुखार के पीछे कौन है? समंदरों में ऐसा क्या हो रहा है, जिससे दुनिया गर्म हो रही है। 

The Conversation के एक अध्ययन के अनुसार, अंटार्कटिका के चारों ओर पृथ्वी की सबसे शक्तिशाली समुद्री धारा बहती है। इसे अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट (ACC) कहते हैं। यह अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागरों के बीच पानी को ले जाने का मुख्य रास्ता है। यह दुनिया के मौसम को ठीक रखने में मदद करती है। इसे वेस्ट विंड ड्रिफ्ट भी कहा जाता है।

एक नई रिसर्च में पता चला है कि ACC जो अब तक बहुत स्थिर थी, अगले 25 सालों में धीमी हो सकती है। इससे समुद्री जीवन, समुद्र के बढ़ते स्तर और वातावरण से गर्मी सोखने की धरती की क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है। रिसर्चरों के अनुसार, दक्षिणी महासागर तेजी से बदल रहा है। इस गिरावट के कारण को समझना, जलवायु और समुद्र में होने वाले बड़े बदलावों की भविष्यवाणी करने के लिए जरूरी है। ACC अमेजन नदी से 100 गुना ज्यादा शक्तिशाली है। यह दुनिया के महासागरों में गर्मी और पोषक तत्वों को फैलाती है। अगर इसमें कोई रुकावट आती है, तो महासागरों की गर्मी और कार्बन सोखने की क्षमता कम हो सकती है। इससे जलवायु परिवर्तन को कम करने की उनकी क्षमता कमजोर हो जाएगी।

ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के एक समुद्र विज्ञानी माइकल मेरेडिथ ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग से होने वाली 90% से ज्यादा गर्मी समुद्र में चली गई है। उन्होंने कहा कि अगर यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है, तो ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए हमारे पास जो सबसे बड़ा सहारा है, वह खत्म हो जाएगा। वैज्ञानिक कई दशकों से ड्रेक पैसेज में ACC को माप रहे हैं। यह दक्षिण अमेरिका और अंटार्कटिक प्रायद्वीप के बीच एक संकीर्ण जगह है, जहां इसके प्रवाह को ट्रैक करना आसान है। इसके नतीजे हमेशा एक जैसे रहे हैं।

अगर यह धारा कमजोर होने लगती है, तो गर्म पानी बर्फ की चादरों के करीब आ जाएगा। इससे अंटार्कटिक की बर्फ तेजी से पिघलने लगेगी। रिसर्चरों के अनुसार, बर्फ तेजी से पिघलने से धारा और कमजोर हो सकती है, जिससे धारा के धीमे होने का एक बुरा चक्र शुरू हो जाएगा। अंटार्कटिक की बर्फ तेजी से पिघलने से समुद्र का स्तर भी बढ़ जाएगा। मेरेडिथ ने कहा कि जरूरी नहीं है कि अतीत भविष्य का मार्गदर्शन करे। उन्होंने आगे कहा कि पहले हमने इस धारा में स्थिरता देखी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आगे भी ऐसा ही होगा।

अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट (ACC) एक बहुत ही महत्वपूर्ण समुद्री धारा है जो अंटार्कटिका के चारों ओर घूमती है। यह धारा दुनिया के मौसम को नियंत्रित करने में मदद करती है। लेकिन, नई रिसर्च से पता चला है कि यह धारा धीमी हो सकती है, जिससे कई परेशानियां हो सकती हैं। अगर ऐसा होता है, तो समुद्र का स्तर बढ़ सकता है, समुद्री जीवन खतरे में पड़ सकता है, और धरती की गर्मीसोखने की क्षमता कम हो सकती है। वैज्ञानिकों को इस पर नजर रखनी होगी और यह पता लगाना होगा कि इसे कैसे रोका जा सकता है।

दुनिया भर में पड़ रही भीषण गर्मी को वैज्ञानिक विनाश का संकेत मान रहे हैं। मौसम एक्सपर्ट के अनुसार, भौगोलिक तौर पर भारत के बहुत बड़े हिस्से को प्रभावित करने वाली हीट वेव (Heat Wava) यानी लू 100 साल में कभी एक बार चलती है। हालांकि, ये लू भारत के अलावा अब ये दुनिया के कई देशों को प्रभावित कर रही है यहां तक कि ठंडे देशों में भी भीषण गर्मी का अनुभव हो रहा है। जलवायु परिवर्तन से इस गर्मी के बढ़ने की आशंका 30 गुना तक बढ़ी है। यही वजह है कि अप्रैल की शुरुआत में ही ज्यादा गर्मी शुरू हो गई है।

जब पेट्रोल-डीजल या कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन जलाते हैं, तो कार्बन प्रदूषण वातावरण में फैलता है, जो एक कंबल की तरह काम करता है। यह धरती के माहौल को गर्म कर देता है। वायुमंडल में इतना ज्यादा कार्बन प्रदूषण है कि इसकी वजह से मौसम में बदलाव आ रहा है और गर्मी बढ़ रही है। 99% से ज्यादा वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन का सबसे प्रमुख कारण इंसानों की वजह से हो रहा प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन हैं। जब तक हम प्रदूषण को खत्म नहीं कर देते, तब तक गर्मी और ज्यादा बढ़ती जाएगी।

वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसानी गतिविधियों से दुनिया भर में गर्मी बढ़ रही है। हालांकि अल नीनो ने इसमें आग में घी डालने जैसा काम किया है जिसे इस रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की बड़ी वजह माना जा रहा है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा बढ़ोतरी होती है, तो तेज और ज्यादा बारिश, सूखा और लू जैसे गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं।

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