सुसाइड नोट से आत्महत्या का मामला नहीं होता साबित : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली।  सुप्रीम कोर्ट ने उस शख्स को बरी कर दिया जिसे आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध में दोषी ठहराया गया था। अभियुक्त पर आरोप था कि उसने मृतक को आपत्तिजनक तस्वीरों और विडियो के माध्यम से ब्लैकमेल किया, जिससे उसे आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा। अदालत ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को साबित करने के लिए सिर्फ सुसाइड नोट अपने आप में काफी नहीं है, बल्कि उसके साथ ठोस सबूत जरूरी हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि धारा 306 आईपीसी के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध साबित करने के लिए, अभियोजन पक्ष को साबित करना होगा कि आत्महत्या के लिए उकसाने की साफ मंशा थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में केस साबित करने के लिए यह जरूरी है कि स्पष्ट उकसावा, साजिश या जानबूझकर सहायता दी गई हो। आरोपी के पास आत्महत्या के लिए उकसाने की स्पष्ट मानसिक मंशा हो। सिर्फ उत्पीड़न या मतभेद पर्याप्त नहीं हैं, जब तक कि कोई प्रत्यक्ष एक्शन न हो जो आत्महत्या के लिए किसी को मजबूर होना पड़े।

कोर्ट ने यह भी कहा कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति यदि एक सुसाइड नोट छोड़ता है, तो वह दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकता जब तक कि इसे अन्य ठोस सबूतों का समर्थन न मिले। अदालत ने कहा कि सुसाइड नोट की प्रामाणिकता साबित होनी चाहिए। इसके लिए हैंडराइटिंग एक्सपर्ट की गवाही भी जरूरी है। अभियुक्त ने तर्क दिया कि आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं था, न ही कोई स्पष्ट उकसावा या उकसाने वाला काम था। अभियुक्त ने दावा किया कि ब्लैकमेलिंग के आरोपों का समर्थन करने के लिए अभियोजन पक्ष के पास कोई ठोस सबूत नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाना तभी साबित होता है जब कोई व्यक्ति गंभीर रूप से उत्तेजित करे, उकसाए या मजबूर करे। सुप्रीम कोर्ट ने पटेल बाबूभाई मनोहर दास समेत अन्य को आत्महत्या के लिए उकसाने के केस से बरी कर दिया। यह मामला गुजरात का है। 14 मई 2009 को गुजरात के मेहसाना में एक शख्स ने जहर खा लिया था। इसके बाद उनकी मौत हो गई थी। मृतक के परिजन ने आरोप लगाया था कि मृतक की एक महिला के साथ आपत्तिजनक तस्वीरें ली गई थीं और इस आधार पर उन्हें कुछ लोग ब्लैकमेल कर रहे थे। इस बात का जिक्र मृतक ने मरने से पहले लिखे लेटर में किया था। पुलिस इस बयान के आधार पर कुल 4 लोगों को आरोपी बनाया। निचली अदालत ने आरोपियों को दोषी करार दिया। गुजरात हाई कोर्ट ने 17 दिसंबर 2013 को आरोपियों को आत्महत्या के लिए दोषी करार दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मामले में इन्हें बरी कर दिया।

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