
नई दिल्ली। चांदी ने पिछले कुछ महीनों में सोने के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है, यानी सोने और चांदी का अनुपात घटा है। आज एक औंस सोना खरीदने के लिए लगभग 86 औंस चांदी चाहिए, जबकि पिछले 10 सालों का औसत 80 औंस था। फिर भी, ऐतिहासिक रूप से देखें तो चांदी सोने के मुकाबले अब भी काफी सस्ती है। राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली (New Delhi) के सर्राफा बाजार में चांदी की कीमतें 5,000 रुपये के जोरदार उछाल के साथ 1,15,000 रुपये प्रति किलोग्राम के नए शिखर पर पहुंच गईं।
सूत्रों के मुताबिक चांदी की कीमतें बढ़कर घरेलू बाजार में नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में चांदी लगभग 14 साल के उच्चतम स्तर पर है। यह तेजी सोने के विकल्पों के प्रति निवेशकों की रुचि में बदलाव के कारण है। बढ़ती शुल्क संबंधी अनिश्चितता, रूस-यूक्रेन युद्ध के बढ़ने की संभावना और ईटीएफ निवेशकों व केंद्रीय बैंकों की विविधीकरण की बढ़ती मांग के कारण सोने में फिर से तेजी आई है।
अमेरिकी बाजार के समय में जैसे ही डॉलर मजबूत हुआ, चांदी की कीमत में 0.8% तक की गिरावट आ गई। दरअसल, चांदी जैसी कीमती धातु की कीमत डॉलर में तय होती है। इसलिए जब डॉलर मजबूत होता है, तो विदेशी निवेशकों के लिए चांदी खरीदना महंगा हो जाता है और उसकी मांग घटती है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने पिछले हफ्ते मेक्सिको और यूरोपीय संघ पर नए आयात शुल्क (टैरिफ) की धमकी दी। उन्होंने कहा कि यदि 1 अगस्त तक बेहतर व्यापार शर्तों पर बात नहीं बनी, तो मेक्सिको और यूरोपीय देशों पर 30% का टैरिफ लगेगा। यह कदम अंतरराष्ट्रीय बाजारों में हलचल पैदा कर गया।
दुनिया भर में चांदी की असली आपूर्ति कम हो रही है और इसकी मांग बढ़ रही है, जिसकी वजह से चांदी की कीमत पहले 39 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गई थी। लंदन जैसे बाजारों में चांदी का भौतिक भंडार तनाव में है, क्योंकि ज्यादातर चांदी ETF (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स) के पास है, जिसे उधार देना या बेचना आसान नहीं है। फरवरी से अब तक, चांदी पर आधारित ETF में 2,570 टन से ज्यादा चांदी जुड़ चुकी है।
अमेरिका की व्यापार नीतियों को लेकर चिंता भी चांदी की कीमत बढ़ाने का एक कारण रही। मेक्सिको दुनिया में चांदी का सबसे बड़ा उत्पादक है और अमेरिका को चांदी का प्रमुख आपूर्तिकर्ता भी। हालांकि, अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा समझौते (USMCA) में चांदी पर नए टैरिफ नहीं लगेंगे, फिर भी कुछ व्यापारी इस बात से डरे हुए हैं कि भविष्य में यह छूट छिन सकती है।