प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की NDA सरकार जिसमें पहली बार बिना बहुमत वाली बीजेपी है, के लिए अब सरकार चलाना पहले की तरह सामान्य तो नहीं लग रहा है। जिस तरह स्पीकर पद पर तैनाती को लेकर सरकार की पहली परीक्षा थोड़ी टफ होती दिख रही है, उससे तो यही लग रहा है। स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के पद पर जिस तरह से सहयोगी और विपक्षी सरकार को मुश्किल में डाल रहे हैं, उससे ये सवाल तो खड़ा हो ही रहा है कि अभी जब शुरुआत में ही इस तरह सरकार के घटक दलों के जरिए अंदरूनी बातें मीडिया के जरिए बाहर आने लगी है, तो अपनी सीक्रेसी के लिए विख्यात मोदी सरकार क्या इन सबसे सहज रह पाएंगी?
सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक तेलगुदेशम लगातार स्पीकर पद पर अपने नेता के पदासीन होने के लिए मुखर है तो दूसरी ओर विपक्ष भी स्पीकर के चुनाव में सर्वसम्मति की हरी झंडी तभी देगा जब डिप्टी स्पीकर का पद उसकी झोली में जाए। पिछली बार की अपेक्षा चूंकि इस बार विपक्ष भी मजबूत है तो वो भी सरकार का मुकाबला डटकर करने को खड़ा है। 16 सीटों वाली टीडीपी और 234 सीटों वाला इंडिया सरकार के संचालन में सहजता तो नहीं रहने देगा।
राजनाथ सिंह सभी घटक दलों के बीच सामंजस्य बैठाने की भूमिका निभाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं, पर विपक्षी इंडिया वाले भी अब टीडीपी के सुर में सुर मिलाते हुए उनकी मांग को जायज बता रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, बीजेपी स्पीकर की शक्तियों से भलीभांति परिचित है तो ऐसे में वो इस पर कोई रिस्क लेना नहीं चाह रही है। पर बड़ा सवाल ये ही कि क्या बीजेपी चंद्रबाबू को नाराज करने का रिस्क अभी लेगी? माना जा रहा है कि पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह कोई बीच का रास्ता निकालने की जुगत में हैं पर डिप्टी स्पीकर पद को लेकर जिस तरह विपक्ष अड़ा हुआ है वो गुत्थी भी आसानी से हल होने वाली नहीं है।
सरकार के लिए राहत की बात ये है कि अभी तक सबसे ज्यादा अनप्रेडिक्टेबल माने जाने वाले नीतीश कुमार बहुत ही सहज दिख रहे हैं, उनकी पूरी पार्टी पीएम मोदी का साथ हर मौके पर दे रही है। माना जा रहा है कि उनके जरिए शायद टीडीपी चीफ चंद्रबाबू नायडू को भी मनाया जा सकता है। सरकार स्पीकर के पद पर कोई समझौता न करके ये संदेश देना चाहती है कि मोदी सरकार हमेशा की ही तरह दृढ़ है और अपने पांच साल उसी दृढ़ता से पूरी करेगी जिसके लिए पीएम मोदी मशहूर है। स्पीकर पद पर फैसला होने के बाद ये तो तय हो ही जाएगा कि मोदी 3 में क्या पहले की ही दमखम है या सामंजस्य की मजबूरी हावी हो रही है।