
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ( ISRO) मार्च के मध्य में स्पैडेक्स (Spadex) मिशन पर नए प्रयोग शुरू करेगा। इसका उद्देश्य दो सैटेलाइट (Two satellites) चेजर और टार्गेट (chaser and target) को अलग करना और फिर दोबारा जोड़ना है। यह तकनीक भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए अहम साबित होगी। यह बात राष्ट्रीय विज्ञान दिवस समारोह के दौरान इसरो के अध्यक्ष ( Chairman) वी नारायणन ने कही।
नारायणन ने कहा, स्पैडेक्स मिशन को 30 दिसंबर 2023 को लॉन्च किया गया था। इसने दो सैटेलाइट्स को आपस में जोड़ने के परीक्षण (डॉकिंग) के लिए सैटेलाइट्स एसडीएक्स01 व एसडीएक्स 02 को अंतरिक्ष में भेजा। इसरो ने 16 जनवरी को इन्हें जोड़ने में कामयाबी पाई। इसके साथ ही भारत यह तकनीकी उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया। इससे पहले 12 जनवरी को इसरो ने उपग्रहों को ‘डॉक’ करने के परीक्षण के तहत दो अंतरिक्ष यान को तीन मीटर की दूरी पर लाकर और फिर सुरक्षित दूरी पर वापस भेजा था। इसरो ने 30 दिसंबर 2024 को ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट’ (स्पेडेक्स) मिशन को सफलतापूर्वक शुरू किया था।
इसरो ने रात 10 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र यानी शार से स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पैडेक्स) लॉन्च किया था। मिशन की कामयाबी भारतीय अंतरिक्ष केंद्र की स्थापना और चंद्रयान-4 जैसे मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए अहम साबित होगी। मिशन निदेशक एम जयकुमार ने बताया था कि 44.5 मीटर लंबा पीएसएलवी-सी60 रॉकेट दो अंतरिक्ष यान चेजर (एसडीएक्स01) और टारगेट (एसडीएक्स02) लेकर गया है।
इसरो के अनुसार, जब अंतरिक्ष में कई ऑब्जेक्ट होते हैं और जिन्हें किसी खास उद्देश्य के लिए एक साथ लाने की जरूरत होती है तो डॉकिंग की आवश्यकता होती है। डॉकिंग वह प्रक्रिया है जिसके मदद से दो अंतरिक्ष ऑब्जेक्ट एक साथ आते हैं और जुड़ते हैं। यह विभिन्न तरीकों का उपयोग करके किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष अंतरिक्ष स्टेशन पर चालक दल के मॉड्यूल स्टेशन पर डॉक करते हैं, दबाव को बराबर करते हैं और लोगों को स्थानांतरित करते हैं।
जब दोनों यान तेज रफ्तार से पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे होंगे तो चेजर टारगेट का पीछा करेगा और दोनों तेजी से एक दूसरे के साथ डॉक करेंगे। अंतरिक्ष में ‘डॉकिंग’ प्रौद्योगिकी की तब जरूरत होती है जब साझा मिशन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए कई रॉकेट प्रक्षेपित करने की जरूरत होती है। वांछित कक्षा में प्रक्षेपित होने के बाद दोनों अंतरिक्ष यान 24 घंटे में करीब 20 किलोमीटर दूर हो जाएंगे। इसके बाद वैज्ञानिक डॉकिंग प्रक्रिया शुरू करेंगे। ऑनबोर्ड प्रोपल्शन का उपयोग करते हुए टारगेट धीरे-धीरे 10-20 किमी का इंटर सैटेलाइट सेपरेशन बनाएगा। इसे सुदूर मिलन चरण के रूप में जाना जाता है। चेजर फिर चरणों में टारगेट के पास पहुंचेगा। इससे दूरी धीरे-धीरे 5 किमी, 1.5 किमी, 500 मीटर, 225 मीटर, 15 मीटर और अंत में 3 मीटर तक कम हो जाएगी, जहां डॉकिंग होगी। डॉक हो जाने के बाद मिशन पेलोड संचालन के लिए उन्हें अनडॉक करने से पहले अंतरिक्ष यान के बीच पावर ट्रांसफर का प्रदर्शन करेगा।
भारत की योजना 2035 में अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की है। मिशन की सफलता इसके लिए अहम है। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन में पांच मॉड्यूल होंगे जिन्हें अंतरिक्ष में एक साथ लाया जाएगा। इनमें पहला मॉड्यूल 2028 में लॉन्च किया जाना है। यह मिशन चंद्रयान-4 जैसे मानव अंतरिक्ष उड़ानों के लिए भी अहम है…यह प्रयोग उपग्रह की मरम्मत, ईंधन भरने, मलबे को हटाने और अन्य के लिए आधार तैयार करेगा।
यह तकनीक उन मिशनों के लिए अहम है, जिनमें भारी अंतरिक्ष यान और उपकरण की जरूरत होती है, जिन्हें एक बार में लॉन्च नहीं किया जा सकता। समारोह में इससे पहले केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने ई-ट्रैक्टर और ई-टिलर (इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर और मिट्टी जोतने की मशीन) को लॉन्च किया। इसे सीएसआईआर-सेंट्रल मैकेनिकल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, दुर्गापुर ने विकसित किया है।