दक्षिणी राज्यों ने परिसीमन पर उठाए सवाल

नई दिल्ली।   परिसीमन को लेकर राजनीतिक दलों में एक राय नहीं बन पा रही है। दक्षिण के राज्यों ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। डीएमके सांसद डीएम कथिर आनंद ने बुधवार को परिसीमन के लिए नए मानदंड की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने पार्टी का रुख दोहराया कि लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के प्रस्तावित जनसंख्या-आधारित परिसीमन के परिणामस्वरूप तमिलनाडु और अन्य दक्षिणी राज्यों को जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमों के सफल कार्यान्वयन के कारण सीटों का नुकसान होगा।डीएमके सांसद ने नए मानदंड की मांग करते हुए तमिलनाडु में जनसंख्या नियंत्रण के सफल कार्यक्रमों के चलते सीटों के नुकसान की आशंका जताई है। बीजपी ने भी 1973 के परिसीमन का तर्क दिया।

दूसरी तरफ उनका कहा था कि उत्तरी राज्यों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार को केवल इसलिए सीटें मिलेंगी क्योंकि वे अपनी जनसंख्या को नियंत्रित करने में विफल रहे। सत्तारूढ़ पक्ष से, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने मांग की कि परिसीमन का उपयोग राज्यों, विशेष रूप से झारखंड से बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए भी किया जाना चाहिए।

डीएमके सदस्य आनंद ने जनसंख्या नियंत्रण वाले राज्यों में लोकसभा सीटों की संभावित कटौती के औचित्य पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु ने दो बच्चों की नीति से सिंगल चाइल्ड की नीति की ओर कदम बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि सरकार को परिसीमन करते समय केवल जनसंख्या ही नहीं, बल्कि आर्थिक प्रदर्शन और जीएसडीपी, प्रति व्यक्ति आय, बुनियादी ढांचे में सुधार जैसे महत्वपूर्ण सूचकांकों पर भी विचार करना चाहिए।

दुबे ने तर्क दिया कि 1973 के परिसीमन के दौरान तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस ने इसे जनसंख्या के आधार पर आयोजित करने पर जोर दिया। इससे यूपी और तमिलनाडु में लोकसभा सीटों की संख्या नहीं बढ़ी, लेकिन तत्कालीन ‘कांग्रेस शासित’ मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में यह बढ़ गई।

दुबे ने कहा कि झारखंड के कई इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठियों के बसने और उनमें से कई के आदिवासी लड़कियों से शादी करने और उनका धर्म परिवर्तन करने के कारण राज्य में आदिवासी आबादी कम हो गई है, जबकि मुस्लिम आबादी बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि यह इतना ज़्यादा है कि जब 2008 में देश के बाकी हिस्सों में परिसीमन किया गया, तो झारखंड में ऐसा नहीं किया गया, ताकि आदिवासी आबादी में कमी के कारण आदिवासियों को एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटें खोने से बचाया जा सके।

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