आज ही के दिन यानी की 20 जनवरी को भारतीय उद्योगपति और परोपकारी व्यक्ति रतनजी टाटा का जन्म हुआ था। वह प्रसिद्ध पारसी व्यापारी जमशेदजी टाटा के बेटे थे। रतनजी टाटा ने परिवार की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह साल 1928 से 1932 तक टाटा समूह के अध्यक्ष रहे।
रतनजी टाटा का जन्म ब्रिटिश भारत के बॉम्बे में फेमस पारसी व्यापारी जमशेदजी टाटा के बेटे के रूप में हुआ था। रतन टाटा ने बॉम्बे के सेंट जेवियर्स कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की। फिर उसके बाद वह अपने पिता की फर्म में शामिल हो गए। वहीं पिता की मृत्यु के बाद वह अपने भाई के साथ मिलकर कंपनी को संभालने लगे।
रअसल, देश के प्रति सेवाभाव को देखते हुए अंग्रेजों ने रतनजी टाटा को ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया था। जिसके बाद लोग उनको सर रतनजी टाटा के नाम से पुकारने लगे थे। हालांकि सर रतनजी टाटा ने अल्पायु में ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया था, लेकिन उन्होंने अपनी छोटी सी जिंदगी में बड़ परोपकार के काम किए थे और टाटा समूह में इसकी विरासत को छोड़कर गए थे।
सर रतनजी टाटा ने साल 1896 में ‘टाटा एंड सन्स’ को एक पार्टनर के तौर पर ज्वॉइन किया था। वहीं साल 1904 में पिता के निधन के बाद रतनजी टाटा ने फ्रांस की कंपनी ‘ली यूनियन फायर इंश्योरेंस कंपनी’ का कारोबार देखना शुरू किया। इसकी भारत में ‘टाटा एंड सन्स’ एजेंट थी। उनको ‘ट्रेडिंग फर्म टाटा एंड कंपनी’ का प्रभार मिला। यह कंपनी सूत, कपास, मोती, रेशम और चावल आदि का कारोबार करती थी।
साल 1912 में सर रतनजी टाटा के कार्यकाल में उन्होंने ‘टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी’ का कार्य शुरू हुआ। फिर साल 1915 में उनके कार्यकाल में ही मुंबई के पास पनबिजली का एक विशाल प्रोजेक्ट शुरू किया गया। इसके कारण मुंबई के उद्योगों को आगे चलकर बिजली मिलने में बहुत सहूलियत हुई। अपने परोपकारी कार्यों के लिए रतनजी टाटा ने ट्रस्ट फंड की स्थापना की। जो वर्तमान समय में ‘टाटा ट्रस्ट’ का दूसरा सबसे बड़ा फंड है।
वहीं 05 सितंबर 1918 को महज 45 साल की उम्र में इंग्लैंड के सेंट आइव्स में सर रतनजी टाटा का निधन हो गया था।