यौन उत्पीड़न पर मौन

टी. धर्मेंद्र प्रताप सिंह

कानूनों के बोझा के नीचे देश दबा जा रहा है, यह बात मुद्दत से महसूस की जा रही थी। इनमें से अधिकांश तो सौ साल से भी ज्यादा पुराने हैं। इस बात को प्रधानमंत्री ने शिद्दत से समझा और उनके एकीकरण व खात्मे पर जोर दिया, फिर भी कई कानून आज भी नाम के हैं। इनमें से एक है कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण) अधिनियम 2013। यह सफेद हाथी की तरह है क्योंकि इसका कोई खौफ नहीं है। वैसे भी कोई कानून तभी अपना काम दिखाता है, जब कोई उसकी चौखट तक जाए, कानून मदद करने खुद नहीं जाता है। औरतों का सबसे बड़ा दुश्मन इस मामले में मौन है।

दुर्भाग्य यह है कि उन्हें जहां मौन होना चाहिए, वहां तो वे मुखर होती हैं और जहां मुखर होना चाहिए, वहां मौन हो जाती हैं। यह मौन ही उनका शत्रु है। नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों की मानें तो प्रदेश में कार्यस्थल पर किसी न किसी प्रकार का यौन उत्पीड़न आम बात दिखाई पड़ती है। चूंकि आबादी के मामले में प्रदेश नंबर एक पर ही तो इस तरह के अपराध की आजादी के मामले में भी पहले पर है। इस बात की पुष्टि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भी करता है।

यह हाल तब है, जब कमोबेश आधे मामलों में मौन उत्पीड़न हो जाता है। उनकी शिकायत ही नहीं उचित प्लेटफार्म पर की जाती है और लोग समय से हाथ मिला लेते हैं या ऑफिस-फैक्ट्री ही छोड़ देते हैं। होना यह चाहिए कि जेल जाने एवं अदालत के चक्कर लगाने से लोग डरें और अपराध से दूर रहें। इसके विपरीत इतनी चर्बी चढ़ गई है शरीर से लेकर आंखों पर तक कि लोग अपराध करने में तनिक भी देर नहीं लगा रहे हैं। भले ही बाद में कितना ही पछताना पड़े।

यह तो सभी को पता है कि अपराध कभी भी पूरी तरह से रुक नहीं सकते पर पुलिस, कानून व सरकार का इकबाल सदैव बुलंद ही रहना चाहिए, जिससे आपराधिक कृत्य करने वाले अपराधियों के मन में डर का माहौल बना रहेगा। कानून तो यह भी कहता है कि कार्यस्थल पर आंतरिक शिकायत समिति जरूर हो, जहां पर महिलाएं अपनी बात रख सकें, पर शर्म और हया के पर्दे के कारण आमतौर पर ही अधिकांश चुप ही रहती हैं। फिर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा सकती हैं। महिला होने के नाते पीड़िता की पहचान व पते को गुप्त रखने का भी प्रावधान है। सुनवाई न होने पर आगे फिर सोशल मीडिया व मीडिया का भी रास्ता खुला है, पर सबसे बड़ी चीज है साहस।

इस बारे में एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनीशिएटिव संस्था की संयोजक शुभांगी और एक्शन एंड संस्था की मनीषा भाटिया कहती हैं कि यौन उत्पीड़न, सेक्सुअल फेवर मांगने, बैड टच, जोर जबरदस्ती, धमकी देकर दबाव बनाने, आपत्तिजनक बातें करने, निजी जीवन के बारे में अफवाह फैलाने या अश्लील वीडियो देखने के लिए बाध्य करने आदि की शिकायत महिलाओं को तुरंत करनी चाहिए।

एक ओर कहा जाता है कि योगी 2.0 सरकार ने इस मुद्दे पर बीते सात साल में बहुत काम किया है। सचिवालय में गठित शिकायत (विशाखा) समिति को आंतरिक परिवाद समिति के रूप में नई संरचना के साथ पुनर्गठित किया गया है और अब कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न नहीं होगा। दूसरी ओर, कुशीनगर के डीपीओ जैसे घटिया अधिकारी न केवल महिलाओं का यौन शोषण कर रहे हैं, बल्कि शासन की मंशा पर भी तुषारापात कर रहे हैं। प्रशंसा करनी होगी वहां के डीएम की, जिन्होंने सच का साथ दिया और टुच्चे आदमी को बचाने की कोई कोशिश नहीं की। उसे निलंबित किया गया है। कायदे से तो आरोप सिद्ध होने के बाद सेवा से बर्खास्त किया जाए।

नारी को तो भगवान ने सिक्स्थ सेंस दिया है। वह बुरी नजर वाले हर व्यभिचारी पर भारी है। खेतों में घास काटने जो महिला जाती है, उससे आदमी जैसा कुत्ता क्या, शेर तक घबराता है, क्योंकि उसके हाथ में हसिया होता है, जिससे किसी भी व्यभिचारी का सिर तन से जुदा करने में उसे एक भी मिनट न लगे। घर में बच्चों के सामने शक्ल न दिखा सकने वाले ऐसे ही अधिकारियों के कारण दफ्तर में इस तरह के अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक निजी सेक्टर का हाल तो सरकारी से भी बुरा है। निफ्टी में सूचीबद्ध आईटी कंपनी शीर्ष पर नाम रोशन कर रही हैं। आईसीआईसीआई बैंक, विप्रो, इंफोसिस व टीसीएस के नाम खबरों में दौड़ते रहे हैं। अधिकांश मामलों में सहकर्मी कम और कथित बॉस यह काम करते ज्यादा पाए गए, जिनके कमजोर कंधों पर अनुशासन का भारी बोझ था। इस मामलों में कारखानों की स्थिति ज्यादा दयनीय है। यह बात बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सर्वे में कही गई है। आमतौर पर देखा गया है कि नौकरी जाने के डर, प्रतिष्ठा और कम ताकतवर होने के कारण महिलाएं सब बर्दाश्त करते हुए प्रबंधन के आगे मुंह नहीं खोलती हैं।

हाथरस के पीसी बाग लॉ कॉलेज के यौन शोषण का मामला ठंडा नहीं पड़ता है तो दूसरे जिले का कांड उछल जाता है। वह ठंडा नहीं पड़ता है और शिकोहाबाद के नारायण डिग्री कॉलेज की छात्राओं का मामला उठता है। हालांकि इस मामले ने एक नजीर जरूर पेश की है देशभर की छात्राओं व कामकाजी महिलाओं के सामने कि यदि उन्हें खुलकर अपनी बात कहने में शर्म महसूस हो रही है या समाज में इज्जत जाने का डर सता रहा है तो यहां की लड़कियों की तरह गुमनाम चिट्ठी जिला प्रशासन को लिखें। लखनऊ का एक ताजा मामला इन दिनों सुर्खियों में हैं, जो मानसिकता का केस ज्यादा लगता है।

मानसिक सिक की बात इसलिए कही जा रही है, क्योंकि संविदा पर भर्ती और आउटसोर्सिंग की कलाबत्तू ने हो सकता है कि सरकारी खजाने का बहुत पैसा बचा दिया हो, पर इन कर्मियों को जंतु बना दिया है। दो कौड़ी का पद पा जाने के बाद इनके प्रति लोगों का व्यवहार जंतु वाला है। इन्हें बंधुआ मजदूर समझा जाता है और अगर महिला हुई तो फिर क्या कहने? हर पल नौकरी की तलवार लटकी रहने के कारण सब कुछ झेलने के बाद भी प्रायः मुंह बंद ही रहता है ताकि महंगाई के इस दौर में घर चलाने के लिए किसी तरह दो टके की नौकरी बची रहे।

पानी सिर के ऊपर जाने के बाद आवास विकास परिषद की कंप्यूटर ऑपरेटर ने आखिर मुंह खोला तो विभाग में भूचाल आ गया। इसके कारण अब उल्टा तलवार खुद को रावण समझने वाले अधिशासी अभियंता विद्युत खंड- तीन कानपुर के आवेश मौर्य के ऊपर लटकने लगी है। मुख्यमंत्री को संबोधित पत्र के आधार पर विभागीय स्तर पर गठित समिति की जांच में आवेश को लखनऊ में तैनाती के दौरान यौन उत्पीड़न का दोषी पाया गया है। पत्र और समिति के सामने भी महिला ने कहा कि शिकायत के बाद आवेश द्वारा परिवार पर शिकायत वापस लेने के लिए जायज और नाजायज दबाव बनाया गया।

25 लाख रुपए तथा कोई बड़ा गिफ्ट देने की पेशकश की गई। अन्याय एवं अपमान के लिए सिर्फ न्याय चाहिए और कुछ नहीं। उसके बाद से धमकाना शुरू किया कि समझौता न करने पर अंजाम बुरा होगा आदि। चौंकाने वाली बात यह है कि शिकायत किए हुए एवं न्याय की आशा में लगभग तीन वर्ष बीत चुके हैं, तब सीएम से शिकायत की गई है, नहीं तो विभाग वाले तो आवेश के पद और पैसे के चक्कर में टट्टी पर मिट्टी डाल ही रहे थे इतने साल से। जांच की आंच मौर्य तक पहुंच ही नहीं रही थी। यहां भी जांच अधिकारी हटाने लगाने का खेल चल रहा था। तत्कालीन उप आवास आयुक्त अजय नारायण सिंह को जांच अधिकारी नामित किया गया था।

पहला फैसला यह था कि जांच प्रभावित न की जा सके इसलिए उसे तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का। निलंबन अवधि में आवेश को नियम 53 के प्रावधानों के अनुसार आधे वेतन पर जीवन निर्वाह करना होगा। साथ ही कोई भत्ता देय नहीं होगा। उसे अधीक्षण अभियंता झांसी वृत्त से संबद्ध कर दिया गया है। इतना ही नहीं, आदेश की प्रति संबंधित चरित्र पंजिका में रखने की बात आवास आयुक्त डॉ. बलकार सिंह ने कही है। उनके स्थानांतरण के बाद आवास एवं विकास परिषद के मुख्य अभियंता (मुख्यालय) को जिम्मा सौंपा गया है। इसके लिए उन्हें एक माह का समय दिया गया था।

कहने का आशय यह है कि जब कहीं बहुत दिनों तक सुनवाई नहीं होती है तो आदमी सीधे मुख्यमंत्री का रुख करता है, इस बात पर कई बार सीएम भी आपत्ति जता चुके हैं। इससे पहले 30 अगस्त को 2023 को आंतरिक शिकायत समिति की बैठक बहुत हीलाहवाली के बाद हुई थी। सचिवालय कॉलोनी इंदिरा नगर निवासी इस महिला के केस में यह बैठक आवास आयुक्त की अध्यक्षता में हुई थी।

एक-एक करके दोनों ही पक्षों को अपनी बात रखने का मौका दिया गया। पीड़ित महिला ने साक्ष्यों के साथ अपनी बात रखी और बताया कि लखनऊ कार्यालय में तैनाती के दौरान अधिशासी अभियंता ज्यादातर समय किसी न किसी बहाने कमरे में ही बैठाए रखते थे और निजी बातें करने की कोशिश करते थे। अभियंता कविता पांडेय (बदला हुआ नाम) को प्रायः व्हाट्सएप मैसेज भेजते रहते थे। उसकी भी छायाप्रतियां समिति के समक्ष कविता ने पेश की। उन्होंने कहा कि आरोपी ने काफी आपत्तिजनक मैसेज डिलीट कर दिए थे, जिनका कोई प्रमाण अब नहीं है।

इसके विपरीत आवेश ने अपने पक्ष में समिति के समक्ष सिर्फ इतना कहा कि कविता यह सब एक ठेकेदार के प्रभाव में आकर कह रही है और उसी के कहने पर सब कर रही है। हालांकि इन बातों का वह कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं करा पाए। इसके बाद समिति ने कविता द्वारा उपलब्ध कराए गए साक्ष्यों का परीक्षण किया और पाया कि वे मैसेज आवेश के ही थे। पानी सिर के ऊपर जाता देख कविता ने अधिशासी अभियंता को ब्लॉक कर दिया था। इस बारे में बताया कि विरोध व माफी पर अनब्लॉक किया था।

संदेशों से स्पष्ट हुआ कि आवेश द्वारा जो मैसेज भेजे जाते थे, वे अधिकारी-कर्मचारी और ऑफिस की औपचारिक सीमा के बाहर के थे। यह भी स्पष्ट हुआ कि अधिशासी अभियंता द्वारा जबरन कार्यालयीय कार्यों संबंधी संदेश व वार्ता के अतिरिक्त भी कविता से अन्य प्रकार की बात करने का प्रयास किया जाता रहा है, जिनका विभागीय कार्यों से कोई लेना-देना नहीं है। समिति की महिला सदस्यों के सामने कविता ने खुलकर अपनी परेशानी रखी। हालांकि इन मौखिक बातों के वह भी कोई साक्ष्य नहीं उपलब्ध करा सकीं और व्हाट्सचैट के जो साक्ष्य दिए, वह भी अधिनियम की धारा 2 (द) के बिंदु (अ) के अंतर्गत ग्राह्य नहीं हैं, किंतु इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि किसी महिला से व्यक्तिगत तौर पर जुड़ने का निरंतर प्रयास आवेश द्वारा किया गया है, वह भी उसकी इच्छा के विपरीत।

ऐसा करना महिला की गरिमा के विपरीत है, जो कि आरोपी के एक प्रभावशाली पद पर होने के कारण शिकायतकर्ता महिला के लिए असुरक्षित बनाता है। समिति ने संस्तुति में कहा कि प्रकरण की सुनवाई के दौरान उपलब्ध कराए गए साक्ष्यों व तथ्यों के आधार पर प्रथमदृष्टया यह पाया गया कि यथित महिला की इच्छा के विपरीत निरंतर उसे व्यक्तिगत संदेश भेजना एवं व्यक्तिगत टिप्पणी करना कार्य स्थल पर कार्य करने के माहौल को महिला के लिए असुरक्षित बनाता है तथा यब सब महिलाओं के कार्य स्थल पर लैंगिक उत्पीड़न की धारा-3 (2) के बिंदु पांच के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आता है।

निरंतर मैसेज करना और व्यक्तिगत टिप्पणी करना, जिनका शासकीय कार्यों से कोई संबंध नहीं है, ऐसा करने से निश्चित रूप से एक महिला कर्मी जो काफी जूनियर तथा संविदा के पद पर कार्यरत है। उससे परोक्ष रूप से सेक्सुअल फेवर की अपेक्षा किए जाने से इंकार नहीं किया जा सकता है, परंतु निश्चित रूप से आरोपी का ऐसी करना महिला में असुरक्षा की भावना पैदा करता है। इस कारण यह कर्मी खुद को आरोपी के समक्ष कार्यस्थल पर असहज और असुरक्षित महसूस कर रही थी। उसको मानसिक उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ा है, जिसके कारण उसके द्वारा शिकायत के लिए कदम उठाना पड़ा। अतः उक्त अधिनियम की धाराओं के तहत आवेश पर आरोप सिद्ध होते हैं।

नारी शोषण के मामलों में न्यायपालिका के नमूने

हाईकोर्ट के एक जाहिल जज के एक फैसले ने हर कानून और अधिनियम की नींव हिलाकर रख दी थी। हैरत की बात है, वह सभ्य समाज में सिर उठाकर चल रहा है और अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। देश की नारी शक्ति को ऐसे जज की नींव हिला देनी चाहिए थी, जिसने यह कहने की जुर्रत की थी कि युवती के प्राइवेट पार्ट्स को छूना रेप की कोशिश नहीं माना जा सकता। भारी रोष देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जज का कर्तव्य साक्ष्य के आधार पर यह पता लगाना था कि क्या पॉक्सो एक्ट की धारा छह और आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध किया गया था।

एक ऐसा कृत्य जो पॉक्सो के तहत दंडनीय अपराध है, उस पर रोमांश का मुलम्मा कैसे चढ़ाया जा सकता है? जज ने कासगंज के एक गांव की 14 साल की बच्ची के मामले में कहा था कि लड़की के प्राइवेट पार्ट्स को छूना, खींचकर पुलिया के नीचे ले जाना व पायजामे के नाड़े को तोड़ना रेप की कोशिश नहीं है। इसके बाद आरोपियों को जमानत दे दी थी। इससे समझा जा सकता है कि सारी कवायद जमानत देने के लिए ही थी इसीलिए सिंगल बेंच से लोगों का धीरे-धीरे विश्वास उठता जा रहा है। पहला प्रश्न तो ऐसे जज के घर से उठना चाहिए था, क्योंकि उसके यहां भी कुछ महिलाएं जरूर होंगी और उसे भी एक महिला ने ही निश्चित रूप से जन्म दिया होगा।

कोर्ट ने अपराध की तैयारी व वास्तविक प्रयास में फर्क किया, जिस पर लाखों लोगों ने थू-थू की थी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट तय कर चुका है कि बच्चों के अंगों को छूना यौन हमला होता है। कोर्ट को इतनी बेहूदी व्याख्या देने की क्या जरूरत थी? सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवेदनशील व अमानवीय कहा था तो केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इसे पूरी तरह गलत बताया था। इसके बाद भी उसे पद पर बनाए रखने की मजबूरी किस कानून के तहत आती है, इस पर कानून भी मौन है और देश के जिम्मेदार लोग भी? इसका ही लाभ उठाते हुए दूसरे महीने में यूपी के ही दूसरे जज ने भी फजीहत की चिंता किए बिना हिमाकत की और दूसरे मामले में कहा कि रेप पीड़िता ने खुद ही मुसीबत मोल ली और इसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार है।

दरअसल उसका शील भंग पाया गया था, पर डॉक्टर ने कोई ओपिनियन नहीं दिया था, कुछ भी हो, पर इस तरह की नीच बात करके जज ने नीचता का प्रमाण प्रस्तुत किया है। उसका भी उद्देश्य सिर्फ आरोपी को जमानत देना ही था। हालांकि कुछ लोग उक्त बात के लिए जज को माफ भी करते रहे हैं क्योंकि पीजी में रहने वाली छात्रा पिता व परिजन को अंधेरे में रखकर बार गई थी और शराब पीने के बाद तीन बजे सुबह तक अपने साथियों के साथ थी।

उस माता-पिता की सुध लेने की जिम्मेदारी लड़कियों ने पड़ोसियों पर छोड़ रखी है, जिन्होंने पेट काटकर व शौक मारकर पढ़ाया और कॅरियर बनाने के लिए पीजी या हॉस्टल में रखकर पढ़ा रहे हैं। जानकार कहते हैं कि लड़‌कियां कथित सिक्स्थ सेंस को गिरवी रख देती हैं, ऐसी एकांत, दो नंबर की व सन्नाटे वाली जगहों पर जाने के मामले में। इसके बावजूद कई सीढ़ियां पार करने के बाद जज बनने का मौका मिलता है, लिहाजा अपनी गरिमा को ध्यान में रखकर ही वक्तव्य जारी करना चाहिए जमानत देने के दौरान।

Related Articles

Back to top button