शिरोधारा- शिरो का अर्थ है, सिर औत धारा का अर्थ है, प्रवाह। शिरोधरा को आयुर्वेद की सभी चिकित्साओं में सबसे उपयोगी माना गया है। यह एक प्राचीन आरोग्य विधि है जिसे भारत में लगभग 5,000 वर्षों से प्रयोग किया जा रहा है। विश्रांति की अदभुत प्रक्रिया में व्यक्ति के सिर की त्वचा तथा मस्तक पर गुनगुने औषधीय तेल की एक पतली सी धार प्रवाहित की जाती है। शिरोधारा से अत्यंत शांति मिलती है, साथ ही यह आपको यौवन प्रदान करती है और आपके केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम) की कार्यप्रणाली को सुधारती है। इसका प्रयोग बहुत सी परिस्थितियों में किया जा सकता है- जैसे कि आँखों के रोग, सायनासाइटिस और स्मृति लोप। यह एक अत्यंत दैवीय चिकित्सा विधि है, जो कि आपके शरीर के अंर्तज्ञान जागृत करने में मदद करती है।
आयुर्वेद के अनुसार, वात एवं पित्त के असंतुलन से पीड़ित व्यक्तियों के लिए शिरोधारा अत्यधिक लाभदायक है। जब वात असंतुलित होता है तो व्यक्ति में भय, असुरक्षा की भावना, चिंता या पलायनवादी विचार जैसे लक्षण दिखाई देते हैं और जब पित्त असंतुलित होता है तो व्यक्ति में क्रोध, चिड़चिड़ाहट, कुण्ठा और गलत निर्णय लेना आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं। शिरोधारा में प्रयोग किए जाने वाले तरल पदार्थ की विधि तथा गुण मनुष्य के शरीर के दोषों को संतुलित करते हैं। शिरोधारा का द्रव व्यक्ति के मस्तिष्क, सिर की त्वचा तथा तंत्रिका तंत्र को आराम तथा पोषण प्रदान करता है तथा दोषों को संतुलित करता है।
आयुर्वेद संस्थान के जर्नल “आयुर्वेद टुडे” के 1995 के बसंत ऋतु अंक में आयुर्वेदिक प्रेक्टिशनर श्री एड दनहर बताते हैं कि तनाव को कम करने में शिरोधारा किस प्रकार से प्रभावशाली (कारगर) रहती है। शिरोधारा के दौरान, मस्तक पर गिरने वाले तेल की धार से एक निश्चित मात्रा में दवाब एवं कंपन पैदा होता है। अग्र अस्थि में उपस्थित खोखले सायनस से यह कंपन और अधिक तीव्र हो जाता है। इसके पश्चात प्रमस्तिष्क मेरु द्रव के तरल माध्यम से यह कंपन भीतर की ओर संचारित हो जाते हैं।
यह कंपन थोड़े से तापमान के साथ थेलेमस तथा प्रमस्तिष्क के अग्रभाग को सक्रिय करता है जिससे सेरोटोनिन तथा केथेकोलामाइन की मात्रा सामान्य स्तर पर आ जाती है और आपको गहन निद्रा आने लगती है। लंबे समय तक सतत रूप से औषधीय द्रव डालने से पड़ने वाला दवाब मन को शांति प्रदान करता है तथा आपको कुदरती निद्रा का आनंद देता है। इसके लिए एक ऐसा बर्तन लिया जाता है जिसके तल में छेद हो तथा इस छेद को एक बाती से बंद किया जाता है, इस बर्तन को उस व्यक्ति के मस्तक के ऊपर लटकाया जाता है जो उपचार शैया पर लेटा हुआ हो।
औषधीय तेल या औषधीय दूध के रूप में औषधीय द्रव को बर्तन में भरा जाता है, तथा इसके पश्चात इस द्रव को व्यक्ति के मस्तिष्क पर धार के साथ डाला जाता है। रोगी की आँखों में तेल न जाए इसके लिए उसके सिर पर एक बैण्ड या तौलिया बाँध दिया जाता है। यह उपचार एक दिन में लगभग 45 मिनट तक दिया जाता है। इस चिकित्सा से व्यक्ति की तंत्रिकाओं को आराम मिलता है, व्यक्ति की कुण्ठित भावनाएँ बाहर आती हैं, मस्तिष्क शुद्ध होता है, थकान मिटती है, चिंता, अनिद्रा, पुराने सिरदर्द, घबराहट आदि से मुक्ति मिलती है।
उपचार हेतु लक्षण:
- किसी दुर्घटना के पश्चात होने वाले तनाव से उत्पन्न गड़बड़ियाँ
- अनिद्रा
- सिरोयसिस
- उच्च रक्तचाप
- पुराना सिरदर्द तथा माइग्रेन
- स्मृति लोप
- टिनिटस तथा श्रवण क्षमता की समाप्ति
शिरोधारा के लाभ
तंत्रिका तंत्र को स्थायित्व देता है।
- अनिद्रा दूर करता है।
- माइग्रेन के कारण होने वाले सिरदर्द में आराम पहुँचाता है।
- मानसिक एकाग्रचित्तता बढ़ाता है।
- उच्च रक्त चाप कम करता है।
- बालों का झड़ना तथा थकान कम करता है।
- तनाव कम करता है।