बिखरते केजरीवाल

दृष्टांत न्यूज

यह पहला मौका नहीं है, जब वीज विशेष ने किसी की राजनीति की भ‌ट्ठी के ताप को शून्य कर दिया हो। इससे पहले भी कई दृष्टांत से राजनीतिक इतिहास भरा पड़ा है। कालांतर में देखा जा चुका है कि कभी प्याज, लहसुन और आलू भी दिखाता रहा है सत्ता से बाहर जाने का रास्ता। दिल्ली में ही प्याज के कारण भाजपा की सरकार चली गई थी तो 27 साल बाद लौट पाई। इसी तरह 2012 के बाद से उत्तर प्रदेश से मायावती की सरकार ऐसे गायब हुई जैसे गधे के सिर से सींग। विद्वान उसके पीछे भी शराब, पत्थर घोटाला व कौड़ियों के दाम में चीनी मिल बेचने की नीति को ही कारण मानते हैं, नहीं तो उस दौर के प्रशासन को लोग आज भी याद करते हैं और सभी जिलों में बनाई गई चार मंजिल आवासीय योजना को भी।

अधिकारी कांपते-कांपते पैरों में गिर पड़ते थे, जबकि उन्हीं नौकरशाहों की आज प्रदेश में तूती बोल रही है और विधायकों तक की सुनवाई नहीं हो रही है। पत्थरों ने सिद्ध किया कि जब अक्ल पर पत्थर पड़ जाते हैं तो हश्र क्या होता है? 2012 के बाद लोग पत्थरों की कमाई और उनकी स्कूटर से दुलाई से करोड़पति बने लोगों पर तुषारापात देखना चाहते थे, नहीं दिखाने के जुर्म में सपा सरकार की भी 2017 में रवानगी हो गई, जबकि प्रदेश में मेट्रो और एक्सप्रेस-वे की नींव उन्होंने ही डाली थी। इससे आज के दौर की राजनीति में एक बात साफ हो गई कि जनता जो देखना चाहे, वही दिखाओ। ज्यादा इधर-उधर के चक्कर में मत पड़ो, वरना रवानगी का रवन्ना कटने में देर नहीं लगेगी।

विधायक, मंत्री और नौकरशाही के स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार के जो भी कारण रहते हों, पर इससे भी बड़े स्तर के भ्रष्टाचार के पीछे कारण दबी जबान से ही सही, प्रायः महंगे चुनाव को बताया जाने लगा है। अब यह किसी से नहीं छिपा नहीं है कि जो स्थान चंद दशक पहले तक राजनीति व चुनाव में बाहुबल का था, वह अब सिर्फ और सिर्फ धनबल ने ले लिया है। दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद नई मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सीएजी रिपोर्ट सदन में पेश की। आप सरकार की शराब नीति से जुड़ी कैग रिपोर्ट दिल्ली की उसी शराब नीति से जुड़ी हुई है, जिसमें हुए घोटाले के आरोप में तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जेल जाना पड़ा था।

रिपोर्ट पेश होने के बाद आप जहां पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की शराब नीति को राजस्व में नुकसान के लिए दोषी ठहरा रही है तो बीजेपी आप सरकार को। सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली को आबकारी विभाग से राजस्व का बड़ा हिस्सा हासिल होता है, जो कुल टैक्स रेवेन्यू का 14 प्रतिशत है। ज्ञात हो कि दिल्ली में शराब की सप्लाई और बिक्री में कई स्तर पर लोग शामिल होते हैं। इसकी शुरुआत शराब बनाने वालों से होती है, जो दिल्ली के बाहर होते हैं। शराब वहां से दिल्ली के थोक विक्रेताओं के पास आती है। इसके बाद अलग-अलग कॉरपोरेशन व निजी  वेंडर्स, होटल, क्लब और रेस्तरां के जरिए उपभोक्ताओं तक पहुंचती है। दिल्ली को शराब से

एक्साइज ड्यूटी, लाइसेंस फी, परमिट फी, आयात-निर्यात शुल्क वगैरह के तौर पर राजस्व मिलता है। सीएजी की जिस रिपोर्ट को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच हंगामा मचा हुआ है, वह साल 2017-18 से 2020-21 के बीच का लेखा-जोखा है। इसी दौरान नवंबर 2021 के बाद दिल्ली में शराब नीति में बदलाव किए गए थे, जिसे एक सितंबर 2022 को वापस ले लिया गया था। सीएजी ने ऑडिट में एक्साइज विभाग के अधीन शराब की सप्लाई में कई अनियमितताओं के बारे बताया है तो एक्साइज विभाग के कामकाज पर भी सवाल खड़े करते हुए करीब 2002 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया है। दिल्ली में शराब नीति लंबे समय से एक राजनीतिक मुद्दा रहा है और बीजेपी ने उस वक्त की आम आदमी पार्टी की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। हालांकि आप लगातार भ्रष्टाचार से इंकार करती रही है। मामले की प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी और सीबीआई ने भी जांच की है और आप के कई नेताओं को गिरफ्तार भी किया था।

रिपोर्ट में लाइसेंस देने में नियमों के उल्लंघन के बारे में बताया गया है। आबकारी विभाग शराब के थोक विक्रेताओं से लेकर खुदरा विक्रेता, होटल, क्लब और रेस्तरां इत्यादि को उस साल के लिए लाइसेंस देता है, पर प्रक्रिया में दिल्ली एक्साइज रूल-35 का पालन नहीं किया गया, जो कई तरह के लाइसेंस जारी करने पर पाबंदी लगाता है। सीएजी ने रिपोर्ट में कहा है कि एक्साइज डिपार्टमेंट जरूरी नियम और शर्तों की जांच के बिना ही लाइसेंस जारी कर रहा था। सीएजी ने शराब की कीमतों को तय करने में पारदर्शिता की कमी, शराब की क्वॉलिटी कंट्रोल में कमी की तरफ भी रिपोर्ट में इशारा किया है। रिपोर्ट में कमजोर रेग्युलेटरी फंक्शनिंग, एनफोर्समेंट एजेंसी के काम में खामियां भी गिनाई हैं। सीएजी के मुताबिक, 2021-22 की नई नीति को शराब के कारोबार में मनमानी रोकने, दिल्ली के सभी इलाकों में शराब की सप्लाई को पुख्ता करने, कारोबार में पारदर्शिता लाने जैसे मकसद से तैयार किया गया था।

सीएजी ने कहा है कि दिल्ली की नई शराब नीति बनाने में एक्सपर्ट कमेटी के सुझावों को अनदेखा कर दिया गया। नीति में दिल्ली में शराब के थोक व्यापार का लाइसेंस सरकारी थोक विक्रेताओं की जगह निजी विक्रेताओं को दे किया गया, जिससे शराब बेचने वालों को दो की जगह शराब बिक्री केंद्र के अधिकतम 54 लाइसेंस दिए गए। सीएजी का कहना है कि दिल्ली में नई शराब नीति बनाने के पीछे एक मकसद मनमानी या कार्टेल पर रोक लगाना था, लेकिन हुआ उलट और दिल्ली में लाइसेंसधारियों की संख्या सीमित हो गई। सीएजी ने बताया है कि नई नीति के कारण कई लाइसेंसधारियों ने समय से पहले लाइसेंस सरेंडर कर दिए। इन खामियों की वजह से सरकार को 890 करोड़ का नुकसान हुआ। नई नीति के तहत जोनल लाइसेंसधारियों को जो छूट दी गई, उससे करीब 941 करोड़ का नुकसान हुआ।

नई नीति के टेंडर के दस्तावेजों में व्यावसायिक जोखिम से जुड़ी जो शर्त रखी गई थी, उस पर ध्यान नहीं दिया गया और कोविड-19 की पाबंदियों के आधार पर जोनल लाइसेंसधारकों की 144 करोड़ रुपये लाइसेंस  फी माफ कर दी गई। सिक्योरिटी डिपॉजिट को जमा कराने में गलतियों की वजह से 27 करोड़ का नुकसान हुआ। इस तरह से सीएजी ने नई शराब नीति की वजह से राज्य सरकार को कुल 2002 करोड़ रुपये के नुकसान का आंकलन किया है। विधानसभा के अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि जानकर हैरानी होगी कि 2017-18 के बाद से सदन में सीएजी रिपोर्ट रखी ही नहीं गई। रिपोर्ट पेश होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि जो सीएजी रिपोर्ट पेश की गई है, उसमें कुछ आठ अध्याय हैं। पहले के सात दिल्ली की पुरानी शराब नीति पर हैं। आप सरकार ने पुरानी शराब नीति में भ्रष्टाचार की बात लगातार की थी, जिस पर सीएजी ने मोहर लगा दी।

उन्होंने ऑडिट में पाए गए करीब 2000 करोड़ का नुकसान कराने का आरोप दिल्ली के एलजी, सीबीआई और ईडी पर लगाया और मांग की कि इन तीनों की जांच हो कि क्यों नई नीति को रोककर सरकार को 2000 करोड़ का नुकसान करवाया गया। दिल्ली के मंत्री प्रवेश वर्मा ने कहा कि पूरे घोटाले पर चर्चा होगी। इनके जितने भी भ्रष्टाचार हैं, चाहे शीश महल हो, जल बोर्ड हो, क्लासरूम हो, स्कूल हो या फिर कुछ और, सभी की जांच होगी। मंत्री कपिल मिश्रा ने कहा कि रिपोर्ट में एक-एक सच लिखा हुआ है कि कैसे अपनों को शराब के ठेके दिए, उनका कमीशन बढ़ाया। यह रिपोर्ट तो पहले ही सदन में रखनी चाहिए थी, पर अरबों के घोटालेबाजों ने नहीं रखी। अभी तो जनता की अदालत में न्याय हुआ है, कानून की अदालत में बाकी है। इस पर शिवसेना (उद्धव) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा है कि अगर सीएजी की ऐसी रिपोर्ट है तो जांच होनी चाहिए, लेकिन इस पर जिस तरह की राजनीति हो रही है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है।

राजनीति का विपश्यना अध्याय

केजरीवाल फिलवक्त पंजाब में हैं। पार्टी कह रही है कि विपश्यना करने गए हैं। केजरीवाल के पंजाब में होने के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। दिल्ली चुनाव हारने के बाद अरविंद केजरीवाल अब तक सिर्फ तीन मौकों पर ही सार्वजनिक रूप से दिखाई पड़े हैं। पहला, नतीजे वाले दिन एक वीडियो जारी कर हार स्वीकार करते हुए बीजेपी को बधाई दी। दूसरा, पंजाब के मुख्यमंत्री, मंत्री और आप विधायकों को दिल्ली बुलाकर बैठक की। तीसरा मौका तब आया, जब आतिशी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। उसके बाद से ही परिदृश्य से नदारद हैं। अभी एक वीडियो सामने आया, जिसमें वह पंजाब में विपश्यना करते दिख रहे हैं।

इससे पहले भी कबी पंजाब, कभी जयपुर, कभी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में तो कभी बेंगलुरु में विपश्यना करते रहे हैं पर कभी कोई सवाल नहीं उठा। अभी जिस सेंटर में अरविंद विपश्यना कर रहे थे, वहां 2023 में भी विपश्यना कर चुके हैं। अब जब पंजाब में राजनीति करवट ले रही है तो ऐसे वक्त में अरविंद का होशियारपुर से करीब 11 किमी दूर आनंदगढ़ के धम्म धजा विपश्यना केंद्र में साधना करना सवालों के घेरे में है। इसकी वजह सिर्फ इतनी सी है कि विपश्यना एक आध्यात्मिक साधना है, जिसमें देश-दुनिया की तमाम बातों से दूर एक साधक के तौर पर 10 दिन गुजारने पड़ते हैं। बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं रखना होता है। न कोई मोबाइल, न इंटरनेट और न ही सोशल मीडिया। सिर्फ साधक और साधना।

ज्ञात हो कि पंजाब में किसान आंदोलन चरम पर है और मुख्यमंत्री भगवंत मान को रोज सियासी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के अनशन के 100 दिन पूरे हो चुके हैं और किसान आंदोलन को और धार देने का लक्ष्य दे रखा है तो इस मुश्किल वक्त में अरविंद कैसे पंजाब में रहते हुए भी खुद को इससे दूर रख पाएंगे। दूसरे, लुधियाना पश्चिम सीट पर उपचुनाव भी होना है, जिसमें कांग्रेस और अकाली दल ही नहीं, बल्कि बीजेपी का भी उम्मीदवार मैदान में है। आप के राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा तो हैं हीं मैदान में।

यह चुनाव भी केजरीवाल के लिए जरूरी है और फिर राज्यसभा की जो सीट संजीव अरोड़ा खाली करेंगे, उसके लिए भी उम्मीदवार की तलाश करनी पड़ सकती है। जानकार कहते हैं कि संजीव को जिताने के लिए ही वह विपश्यना करने पंजाब गए हैं। दूसरे, खाली सीट पर खुद को, मनीष सिसोदिया को या फिर किसी व अन्य को राज्यसभा भेजने का भी फैसला उन्हें ही करन है इसीलिए विपश्यना और उसकी टाइमिंग सवालों के घेरे में है। इतने सवाल जब दिल से लेकर दिमाग तक सुबह से शाम तक कौंध रहे हों तो विपश्यना कैसी? ऐसे में क्या सच में उन्हें साधक माना जा सकता है।

तीसरे, इस विपश्यना के लिए अरविंद लाव-लश्कर के साथ पहुंचे हैं, जिससे बीजेपी को और बोलने का मौका मिल गया। बीजेपी ने इसे लपका और दिल्ली के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि पंजाब के खजाने से लाखों रुपये उनकी सेवा में खर्च किए जा रहे हैं। बाकी तो भगवंत मान कोशिश कर ही रहे हैं पंजाब की राजनीति को संभालने की। अब वो अकेले इसे कितना और कहां तक संभाल पाएंगे या फिर उन्हें अरविंद की मदद लेनी ही होगी, ये तो वक्त बताएगा।

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