संजय दत्त की फिल्म द भूतनी हुई रिलीज

शांतनु (सनी सिंह) और उसके रूममेट्स, साहिल (बेयूनिक) और नासिर (आसिफ खान) दिल्ली के सेंट विंसेंट कॉलेज में पढ़ते हैं। वहां एक वर्जिन ट्री है, जिस पर मोहब्बत (मौनी रॉय) का साया है। यह एक ऐसी आत्मा है, जो हर वैलेंटाइन डे पर सच्चे प्यार की तलाश में जागती है। होलिका दहन पर यह अपने साथ आत्माओं को ले जाती है। कोई भी इस आत्‍मा की पहचान या इस भयानक घटना के पीछे का कारण नहीं जानता। कहानी में सस्पेंस तब बढ़ता है, जब कॉलेज के छात्रों को मतिभ्रम होता है, मिर्गी के दौरे पड़ते हैं, यहां तक कि आत्महत्या की चाह का अनुभव होने लगता है।

कॉलेज मैनेजमेंट स्‍टूडेंट्स के साथ हो रही इस अजीब स्‍थ‍िति से परेशान है। फैसला लिया जाता है कि बाबा (संजय दत्त) को बुलाया जाएगा। बाबा एक एक पैरा-फिजिसिस्ट हैं, जो भूतों को भगाने में माहिर हैं। बाबा कॉलेज कैंपस आते हैं। सच का पर्दाफाश करने और आत्मा को भगाने के लिए अपने साथ विचित्र उपकरण लेकर आते हैं। इस कहानी में एक ठुकराया हुआ प्रेमी है। भूतनी मोहब्‍बत उसके पीछे पड़ी है। पैरा-फिजिसिस्ट बाबा को एहसास होता है कि यह कोई आम भूतनी नहीं है। इस आत्मा की ताकत ऐसी है, जो इससे पहले कभी नहीं देखी गई।

हॉरर-कॉमेडी जितना मजेदार जॉनर है, उतना ही मुश्किल भी। बीते कुछ साल में ‘स्त्री फ्रेंचाइज’ जैसी फिल्मों ने इसकी क्षमता साबित की है। राइटर-डायरेक्‍टर सिद्धांत सचदेव भी कुछ इसी तरह की कोशिश करते हैं। सिद्धांत और वंकुश अरोड़ा की कहानी नई राह पर नहीं चलती। संतोष थुंडियिल की सिनेमैटोग्राफी कभी-कभी इसे एक माहौल देती है। लेकिन प्‍लॉट और स्‍क्रीनप्‍ले में कमियां भरी हुई हैं। लिहाजा, फिल्‍म कमजोर पड़ जाती है।

फिल्‍म में एक जगह मोहब्बत, शांतनु को लुभाने के लिए इंसान का रूप लेती है। वह लगातार उसके साथ होती है। लेकिन एक बार जब यह भेद खुल जाता है कि वो भूत है, तो वह बेवजह घंटों के लिए गायब हो जाती है। यह बात इस भूतनी की ताकत और क्षमताओं को देखते हुए समझ से परे है। हालांकि, कुछ सीन्‍स बड़े दिलचस्प हैं, पर बनावटी VFX और मोहब्बत के घटिया मेकअप के कारण इसका असर नहीं पड़ता।

फिल्म ‘द भूतनी’ हॉरर के मोर्चे पर भी कमजोर है। हालांकि, इसमें कॉमेडी के ढेर सारे तत्व हैं, ल‍िहाजा इन कमियों की कुछ हद तक भरपाई हो जाती है। सनी सिंह, निकुंज लोटिया और आसिफ खान ने मजेदार वन-लाइनर दिए हैं और उनकी दोस्ती कभी-कभी हंसा भी देती है। लेकिन उनके किरदार बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए गए और पुराने लगते हैं।

साहिल को एक गर्लफ्रेंड की तलाश है। वह इस पर बेवजह अड़ा हुआ है। इसी तरह नासिर एक शायर बनने की चाहत रखता है, जो लगातार उर्दू में बात करता है। फिल्म में आपको नॉस्‍टैल्‍ज‍िया भी देने की कोश‍िश की गई है- मौनी रॉय के पॉपुलर शो ‘नागिन’ और संजय दत्त की ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ के साथ ही ‘स्त्री’ की झलक दिखाई देती है।

फिल्‍म में संजय दत्त को सेंट विंसेंट कॉलेज का पूर्व छात्र दिखाया गया है। उन्‍हें बाबा के नाम से जाना जाता है, क्‍योंकि उन्‍होंने डबल ग्रेजुएशन (बीए+बीए, समझे?) किया। वह इस रोल में अच्छी तरह से फिट बैठते हैं और उनके पास कुछ कॉमेडी सीन्‍स और मजेदार डायलॉग्‍स हैं। नवनीत मलिक ने इस किरदार की बैकस्‍टोरी में बाबा का किरदार निभाया है, जो भूतनी मोहब्बत से जुड़ती है। लेकिन यह बनावटी ही लगता है, जिस कारण क्लाइमेक्स घिसा-पिटा बन जाता है।

मौनी रॉय और पलक तिवारी ने अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। हालांकि, पलक के किरदार को और बेहतर तरीके से लिखा जा सकता था।

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