नई दिल्ली। भारत के विदेश मंत्री और वरिष्ठ राजनयिक डॉ. एस जयशंकर आज यानी की 09 जनवरी को अपना 70वां जन्मदिन मना रहे हैं। एस जयशंकर पीएम मोदी के पसंदीदा डिप्लोमेट्स रहे हैं। विदेश मंत्री बनने से पहले वह भारत के विदेश सचिव भी रह चुके हैं। उन्होंने अपने करियर में भारत की विदेश नीति को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने का काम किया है। यह एस जयशंकर के अनुभव और समझदारी का कमाल है कि उन्होंने भारत को एक मजबूत शक्ति के रूप में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई।
देश की राजधानी दिल्ली में 09 जनवरी 1955 को एस जयशंकर का जन्म हुआ था। इन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा सेंट स्टीफेंस कॉलेज दिल्ली से पूरी की। फिर आगे की पढ़ाई के लिए जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया। यहां पर इन्होंने एमफिल और पीएचडी की पढ़ाई की।
एस जयशंकर ने साल 1977 में भारतीय विदेश सेवा के रूप में अपने करियर की शुरूआत की थी। अपने चार दशकों के राजनयिक जीवन में एस जयशंकर ने 2007-2009 तक सिंगापुर में उच्चायुक्त, साल 2009 से 2013 तक चीन में राजदूत और फिर 2013 से 2015 तक अमेरिका के राजदूत के रूप में अहम भूमिकाएं निभाईं।
इसके बाद साल 2015 में उनको भारत का विदेश सचिव नियुक्त किया गया। एस जयशंकर को यह पद सुजाता सिंह की जगह मिला था। हालांकि सुजाता सिंह को उनके पद से हटाए जाने के कारण मोदी सरकार की कुछ लोगों ने आलोचना भी की थी। बताया जाता है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एस जयशंकर से पहली मुलाकात अमेरिका यात्रा के दौरान हुई थी। इस दौरान उन्होंने न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित किया था।
जिसकी वजह से उनको एक वैश्विक पहचान मिली थी। साल 2018 तक एस जयशंकर इस पद पर बने रहे। फिर जुलाई 2019 में वह गुजरात से राज्यसभा के लिए भाजपा के सांसद चुने गए। पीएम मोदी के नेतृत्व में एस जयशंकर ने विदेश मंत्री के रूप में शपथ ली। इस दौरान उन्होंने सुषमा स्वराज का जगह ली, जोकि पीएम मोदी की पहली सरकार में विदेश मंत्री थीं। फिर एस जयशंकर इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले पूर्व विदेश सचिव बनें।
एस जयशंकर ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत की विदेश नीति में महत्वपूर्ण बदलाव किए। उन्होंने विशेषकर चीन, अमेरिका, रूस और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में। डॉ जयशंकर की कूटनीतिक कुशलता और रणनीतिक दृष्टिकोण ने ही भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत किया।
अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने भारत की विदेश नीति में महत्वपूर्ण बदलाव किए, विशेषकर अमेरिका, चीन, रूस, और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में। उनकी कूटनीतिक कुशलता और रणनीतिक दृष्टिकोण ने भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत किया।