रमण महर्षि ने बाल्यकाल में ही प्राप्त कर लिया था शाश्वत सत्य

30 दिसंबर को श्री रमण महर्षि का जन्म हुआ था। वह 20वीं सदी के एक महान संत थे, जिनकी जीवन यात्रा आज भी लोगों को प्रेरित करती है। रमण महर्षि का जन्म 1879 में तमिलनाडु के तिरुचिली गांव में हुआ था। इनका असली नाम वेंकटरमण अय्यर रखा था। बाद में वह ‘रमण महर्षि’ के नाम से फेमस हुए। उनकी शुरूआती शिक्षा तिरुचुली के एक प्राइमरी स्कूल से पूरी हुई और बाद में उन्होंने दिण्डुक्कल के एक स्कूल से शिक्षा प्राप्त की।

रमण महर्षि की आत्म-प्राप्ति की कथा बहुत रोचक है। एक दिन, जब वह 16 वर्ष के थे, तो एक दिन अचानक उनके मन में मृत्यु का विचार आया और उन्होंने अपने शरीर के बारे में गहराई से विचार करना शुरू किया। उन्होंने शरीर के भीतर की गहरी स्थिति को महसूस किया और ध्यान की अवस्था में रहते हुए अपने आत्मा को पहचान लिया। इसके बाद से उन्होंने आत्म-चिंतन और साधना पर बल दिया।

श्री रमण महर्षि ने अपनी पूरी ज़िंदगी आत्म-ज्ञान की साधना में समर्पित कर दी। उन्होंने सिद्धांतों और उपदेशों से ज्यादा अपने आंतरिक अनुभव और ध्यान के माध्यम से सत्य को समझाया। उनका प्रसिद्ध वाक्य “आत्मा का अनुभव करना ही वास्तविक गुरु की दीक्षा है” है। उनके प्रवचन, जो सरल और गहरे थे, न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में लोगों को जागरूक करने में सफल रहे।

रमण महर्षि का प्रमुख स्थल उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण स्थल आरण्यक में स्थित श्री रमण आश्रम है, जहाँ लाखों लोग उनकी शिक्षाओं और ध्यान के लाभ के लिए आते हैं। उनका जीवन एक अनोखी कहानी है, क्योंकि उन्होंने बाल्यकाल में ही शाश्वत सत्य और आत्म-परमात्मा को अनुभव किया, और यह सब उन्होंने बिना किसी बाहरी गुरु के, बिना किसी दीक्षा के प्राप्त किया।

अंत समय में रमण महर्षि की तबियत खराब रहने लगी थी। वह जानते थे कि उनका आखिरी समय अब निकट था। उनकी आंखों में एक चमक रहती थी और वह अपने दर्द के प्रति काफी उदासीन थे। लेकिन इसके बाद भी रमण महर्षि ने अपने भक्तों से मिलना जारी रखा। वहीं 14 अप्रैल 1950 को शाम से समय उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए और उन्होंने थोड़े समय के लिए अपनी आंखें खोली और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे, लेकिन उनके चेहरे पर मुस्कान थीं। एक गहरी श्वांस लेते हुए रमण महर्षि ने अपना शरीर छोड़ दिया।

रमण महर्षि का जीवन उदाहरण प्रस्तुत करता है कि सत्य को अनुभव करने के लिए किसी बाहरी साधना या गुरु की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि आत्म-चिंतन और साधना से हम अपने भीतर के सत्य को पहचान सकते हैं। उनके जीवन का यह अद्वितीय पहलू आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है।

Related Articles

Back to top button