
नई दिल्ली। क्विक कॉमर्स यानी 10 मिनट में घर तक सामान पहुंचाने वाली सुविधा सेवा अब छोटे शहरों (टियर-2) शहरों में अपनी पकड़ मजबूत कर रही है। एक नई रिपोर्ट में बताया गया है कि अब इन शहरों में भी लोग तेजी से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जरूरी सामान मंगवाने लगे हैं। हर चार नए ग्राहकों में से एक इन शहरों से जुड़ा है। अगर ये ट्रेंड मजबूत होता है, तो क्विक कॉमर्स कंपनियों के लिए नए बाजार खोल सकता है। ये कंपनियां अपने विस्तार की रणनीति में बड़ा बदलाव कर सकती हैं।
2025 की पहली तिमाही में हर चार नए उपयोगकर्ताओं में से एक टियर-2 और 3 शहरों से आया है। इन शहरों में अब उपभोक्ताओं का व्यवहार दर्शाता है कि क्विक कॉमर्स अब एक प्रीमियम सेवा नहीं, बल्कि मुख्य आवश्यकता बन रही है। छोटे शहरों में मांग बढ़ना सकारात्मक संकेत हैं। यदि कंपनियां छोटे शहरों के लिए लॉजिस्टिक्स और मूल्य निर्धारण का सही संयोजन खोज लें और सेवा की गुणवत्ता बनाए रखें, तो क्विक कॉमर्स का बाजार कई गुना बढ़ा सकता है।
क्विक कॉमर्स सेवा अब तक केवल महानगरों और बड़े शहरों तक ही सीमित रही है। इसका कारण यह है कि इस मॉडल को सफल बनाने के लिए तेज डिलीवरी नेटवर्क की जरूरत होती है। छोटे गोदामों की भी जरूरत होती है, जिनके जरिए उच्च मांग वाले क्षेत्रों में तेजी से डिलीवरी की जा सके। इसके अलावा मेट्रो शहरों में लोगों की खरीदने की क्षमता ज्यादा होती है और वे सुविधा के लिए अतिरिक्त रकम देने को भी तैयार रहते हैं। इसके उलट टियर-2 शहरों में अब तक इसका अभाव था।
ब्रोकरेज फर्म ईम्के की रिपोर्ट के मुताबिक, टियर-2 शहरों में क्विक कॉमर्स के लिए स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। छोटे शहरों के लोग अब इन ऐप्स पर मिलने वाले ज्यादा उत्पाद विकल्पों और सुविधाओं के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। जहां स्थानीय किराना दुकानों में आमतौर पर केवल 1,000 वस्तुएं मिलती हैं, वहीं क्विक कॉमर्स ऐप्स पर 8,000 तक वस्तुएं उपलब्ध हो जाती हैं। वहीं, छोटे शहरों में गोदाम चलाने की लागत – जैसे किराया और कर्मचारियों का वेतन कम होते है, इसलिए कम ऑर्डर में भी मुनाफा निकलने लगा है।
क्विक कॉमर्स कंपनियां अब टियर-2 और टियर-3 शहरों में तेजी से विस्तार कर रही हैं। कई बड़ी कंपनियों का नेटवर्क 100 से अधिक छोटे शहरों में फैल चुका है। नए शहरों में कानपुर, वाराणसी, पटना, भोपाल, उदयपुर, अमृतसर, लुधियाना, भटिंडा, हरिद्वार, जयपुर, चंडीगढ़, मंगलुरु, वारंगल, सेलम, कोच्चि और विजयवाड़ा शामिल हैं।
छोटे शहरों में रास्ते और पते उतने साफ-सुथरे नहीं होते, जिससे 10 मिनट में डिलीवरी करना मुश्किल हो जाता है। डिलीवरी कर्मचारी और अन्य स्टाफ की उपलब्धता भी मेट्रो शहरों के मुकाबले कम है। लोगों का ऑर्डर मूल्य भी कम होता है, जिससे मुनाफा कमाने में दिक्कत हो सकती है। लॉजिस्टिक्स यानी सामान लाने-ले जाने की लागत कुछ शहरों में ज्यादा हो सकती है।
स्विगी इंस्टामार्ट के सीईओ अमितेश झा के अनुसार, 2025 की पहली तिमाही में हर चार नए उपयोगकर्ताओं में से एक टियर-2 और 3 शहरों से आया है। इन शहरों में अब उपभोक्ताओं का व्यवहार दर्शाता है कि क्विक कॉमर्स अब एक प्रीमियम सेवा नहीं, बल्कि मुख्य आवश्यकता बन रही है। छोटे शहरों में मांग बढ़ना सकारात्मक संकेत हैं। यदि कंपनियां छोटे शहरों के लिए लॉजिस्टिक्स और मूल्य निर्धारण का सही संयोजन खोज लें और सेवा की गुणवत्ता बनाए रखें, तो क्विक कॉमर्स का बाजार कई गुना बढ़ा सकता है।