दिसंबर 1991 जब सोवियत संघ बिखर गया और रूस को अपने सबसे बुरा दौर भी देखने को मिला। पुतिन ने इसी दौर में केजीबी छोड़ दिया। पुतिन पॉलिटिकल ब्योरोक्रेसी में आ गए। तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के साथ जुड़ गए। इसके बाद उनका संपर्क ओलिगार्क से हुआ। रूस के वो रईस लोग जिनके पास रूस का ज्यादा पैसा और कॉन्टैक्ट से जिसकी चाहे उसे सत्ता का नियंत्रण हासिल हो जाए। इनके सपोर्ट से पुतिन 1999 में पहले प्रधानमंत्री बने और फिर राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली। तब से पुतिन का दौर शुरू हुआ। उन्होंने रूस को वर्ल्ड गेम में वापसी करवाई और सुपरपावर अमेरिका को चैलेंज किया।
23 अक्टूबर 2002 को कुछ हमलावर मॉस्को के एक थियेटर में घुस गए। उन्होंने वहां लोगों को बंधक बना लिया। इसके साथ ही मांग रखी कि अगर रूस चेचन्या से अपनी फौज हटाने को राजी नहीं होता तो वो सारे बंधकों को मार देंगे। रूस ने जवाब में कहा कि अगर हमलावर बंधकों को जाने दें तो उनकी जिंदगी बख्श दी जाएगी। हमलावर नहीं माने। तीन दिन बाद 26 अक्टूबर को रूसी सिक्योरिटी फोर्सेज ने बिल्डिंग के अंदर जहरीली गैस छोड़ दी। फिर अंदर दाखिल होते हुए पांचों हमलावरों को मौत के घाट उतार दिया। 750 बंधक रिहा कराए गए और 118 मारे भी गए। ये पुतिन का आंतकवादियों को सीधा संदेश था कि रूस किसी भी कीमत पर खुद को ब्लैकमेल नहीं होने देगा। चाहे फिर इसके लिए उसे अपने लोगों की जान ही क्यों न देनी पड़े। रूस के लोगों को पुतिन का ये रवैया पसंद आया।
रूसी सरकार ने इस ऑपरेशन को अपनी कामयाबी बताया। बंधकों के मारे जाने पर बस खेद भर जताया। मामले को रफा दफा करने की भी कई कोशिशें अमल में लाई गई। मरने वाले लोगों की मौत की वजह में जहरीली गैस को नहीं गिना गया और कहा गया कि भूख प्यास से मरे। इस वाक्ये के बाद पुतिन का सिक्का जम गया। उन्होंने अपने इस कदम का बचाव किया। कहा कि ये जरूरी था। उन्होंने कहा कि बहुत सारे लोगों को बचाने के लिए कुछ लोगों की जान का रिस्क लेना पड़ा। ब्रिटेन और अमेरिका ने भी रूस की पीठ थपथपाई। उस दौर में एक साल पहले ही अमेरिका ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का हमला झेला था।