पारंपरिक चिकित्सा को प्रोत्साहन देने से स्वास्थ्य क्रांति का सू़त्रपात

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) में शामिल करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा गया था। यह याचिका भारत के पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों, खासकर आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी चिकित्सा, को स्वास्थ्य सेवाओं में एकीकृत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है। यह मांग न केवल समयोचित बल्कि अत्यंत प्रासंगिक भी है, क्योंकि यह भारत की समृद्ध चिकित्सा धरोहर को पुनः स्थापित करने का एक सराहनीय प्रयास है।आज के समय में, जब लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियां जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं, पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियां एक कारगर और सस्ती वैकल्पिक उपचार के रूप में उभर सकती हैं।

आयुर्वेद, योग और अन्य पारंपरिक पद्धतियों का प्रभावी उपयोग न केवल इन बीमारियों के इलाज में सहायक हो सकता है, बल्कि ये शरीर और मन को संतुलित करने में भी मदद करते हैं। आयुर्वेद में रोगों की जड़ तक जाकर उपचार की प्रक्रिया होती है, जो अक्सर सिंथेटिक दवाओं के मुकाबले सस्ता और सुरक्षित होता है। अनेक अनुसंधान एवं शोध में बताया गया है कि ध्यान एवं योग करने वाले व्यक्तियों की मनोविज्ञान में असाधारण रूप से परिवर्तन होता है। ऐसे व्यक्तियों में घबराहट, उत्तेजना, मानसिक तनाव, उग्रता, मनोकायिक बीमारियां, स्वार्थपरता और विकारों में कमी पाई गयी हैं तथा आत्मविश्वास, सहनशक्ति, स्थिरता, कार्यदक्षता, विनोदप्रियता, एकाग्रता आदि गुणों में वृद्धि देखी गयी है। ये ध्यान-साधना एवं योग में प्रत्यक्ष लाभ अनुभूत किये गये हैं जो तरह-तरह की बीमारियों पर नियंत्रण का सशक्त माध्यम है। इसीलिये आधुनिक बीमारियों को परास्त करने के लिये इन गुणों युक्त जीवनशैली को अपनाया जाना चाहिए। सम्पूर्ण आस्था एवं विश्वास के साथ जीवनरूपी प्रयोगशाला में इसे प्रायोगिक रूप देकर जीवन में तरह-तरह की बीमारी रूपी-राक्षस को निस्तेज करके जीवन में आनन्द का अवतरण किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, जिसे Ayushman Bharat के नाम से भी जाना जाता है, भारत के सबसे बड़े स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रमों में से एक है। इस योजना का उद्देश्य देश की गरीब और वंचित आबादी को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना है। यदि पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को इस योजना में शामिल किया जाता है, तो इससे न केवल स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच में वृद्धि होगी, बल्कि इन पद्धतियों के प्रोत्साहन से एक बड़े वर्ग को सस्ती और प्रभावी चिकित्सा सेवाएं भी मिल सकेंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, सरकार ने पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री आयुष मंत्रालय के माध्यम से आयुर्वेद और योग को न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर प्रोत्साहित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। यदि पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को PMJAY में शामिल किया जाता है, तो यह एक बड़ी स्वास्थ्य क्रांति का आह्वान करेगा। यह कदम पारंपरिक चिकित्सा को मुख्यधारा में लाने के लिए एक मजबूत बुनियाद प्रदान करेगा, साथ ही इससे इन पद्धतियों की स्वीकार्यता भी बढ़ेगी।आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति सदियों से आज तक जीवित और समृद्ध रही है। इस प्रकृति आधारित चिकित्सा के विशाल ज्ञान, मानव शरीर की संरचना और प्रकृति के साथ कार्य करने के संबंध और ब्रह्मांड के तत्व में समन्वय में कार्य करते हैं और जीवित प्राणियों को प्रभावित करते हैं, के साथ यह प्रणाली आने वाले युगों में भी समृद्ध होने की संभावनाओं को ही उजागर कर रही है।

शोधकर्ताओं, चिकित्सकों और क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा अभी भी कई रास्ते तलाशे जाने बाकी हैं ताकि इस ज्यादा सुरक्षित, कारगर एवं कम खर्चीली पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को जीवंत बनाकर स्वास्थ्य की चुनौतियों को कमतर किया जा सके। फोर्ब्स की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में से हर साल लगभग 58 लाख लोगों की मौत होती है। इनसे बचाव में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति कारगर साबित हो सकती है। केंद्र ने कुछ अरसा पहले ही प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में 70 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों को भी शामिल करने की मंजूरी दी थी। पारंपरिक चिकित्सा बढ़ती बुजुर्ग आबादी की जरूरतों को भी बेहतर तरीके से पूरा कर सकती है। आयुर्वेद दवाओं के साथ-साथ असाध्य बीमारियों को दूर करने में सहज, प्रकृतिमय और चिन्तामुक्त जीवन, शुद्ध वातावरण, शुद्ध हवा-पानी, सात्विक-संतुलित आहार और भरपूर मेहनत को बल दिया जाता है। महानगरों की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में आदमी मात्र मशीन बनकर रह गया है। अपने स्वास्थ्य के बारे सोचने एवं समझने का समय भी उसके पास नहीं है। विकास की तीव्र गति से उपजी अति तनावपूर्ण जीवनशैली एवं प्रतिस्पर्धाओं ने चिन्ता एवं तनावों को जन्म दिया है, जो आधुनिक बीमारियों को बढ़ाते हैं। 

सस्ते और प्रभावी उपचार की जरूरत को देखते हुए, यदि आयुर्वेद और अन्य पारंपरिक पद्धतियां प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का हिस्सा बनती हैं, तो यह एक सकारात्मक बदलाव साबित हो सकता है। इससे न केवल देश की गरीब और वंचित आबादी को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिलेगा, बल्कि पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को भी पुनः प्रासंगिक बनाया जा सकेगा। साथ ही, यह भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को विश्व स्तर पर मान्यता दिलाने में मदद कर सकता है, जैसा कि पिछले कुछ वर्षों में आयुर्वेद और योग की लोकप्रियता ने दिखाया है। भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति जैसे कि आयुर्वेद और योग दूसरी पद्धतियों के मुकाबले सस्ती एवं सुगम हैं। इसके लिए ज्यादा इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत नहीं पड़ती। मौजूदा स्वास्थ्य ढांचे के जरिये ही इन्हें भी लागू किया जा सकता है।

इससे न सरकार पर ज्यादा बोझ आएगा और न जनता पर, बल्कि स्वास्थ्य बीमा का विस्तार होने से देश की कुल चिकित्सा लागत में कमी ही आएगी। हालांकि यह मामला ऐसा नहीं है, जिस पर सरकार को फैसला लेने में बहुत दिक्कत हो। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना या आयुष्मान भारत दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है। लगभग 55 करोड़ लोग इसके दायरे में आते हैं। लेकिन एक बड़ी आबादी अब भी इसके लाभ से छूटी हुई है। पारंपरिक चिकित्सा और भी लोगों को जोड़ सकती है। इसको तेजी से विकसित कर व्यक्ति-व्यक्ति एवं घर-घर पहुंचाया जा सकता है। पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को पूरी दुनिया में ज्यादा स्वीकार्य बनाने के लिए सरकार ने काम शुरु कर दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर यह भी देखा जा रहा है कि किस तरह से भारत का पारंपरिक ज्ञान दुनिया को सेहतमंद रखने में योगदान दे सकता है। इस दिशा में रिसर्च और इनोवेशन पर ध्यान दिया जा रहा है। याचिका में उठाई गई मांग को पूरा करके सरकार अपने काम को ही आगे बढ़ाएगी एवं दुनिया के लिये एक स्वास्थ्य उजाला करेगी।


सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को शामिल करने की मांग सही दिशा में उठाया गया कदम है। इससे न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ेगी, बल्कि पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का पुनः प्रचार-प्रसार होगा, जो भारत की सांस्कृतिक धरोहर को भी सम्मानित करेगा। सरकार को इस दिशा में गंभीर प्रयास करने चाहिए, ताकि भारत की समृद्ध पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान मिल सके और एक अभिनव स्वास्थ्य क्रांति की शुरुआत हो सके।विशेषज्ञों का मानना है कि शारीरिक निष्क्रियता भी बीमारियों की जड़ है। शारीरिक गतिविधि जैसे नियमित रूप से योग-व्यायाम और खेलकूद से वजन को नियंत्रित किया जा सकता है और इससे ब्लड शुगर के स्तर को कंट्रोल में रखा जा सकता है। योग एवं आयुर्वेद में आशावादी दृष्टिकोण एवं आहार संयम को अपनाने की बात की जाती है। किसी भी बीमारी से लड़ने के लिये संकल्प जगाने एवं प्रमाद त्यागने पर बल दिया जाता है। संतुलित जीवन जीने एवं तनावों-दबावों को अपने पर हावी न होने देने के साथ आयुर्वेद दवाओं को उपयोग में लाया जाता है, जिससे बीमारी पर नियंत्रण करने का प्रभावी असर देखने को मिलता है। सोचो, जिन्दगी मात्र जीने के लिये नहीं, स्वस्थता एवं सरसता से जीने के लिये हैं और योग-आयुर्वेद उसका अचूक उपाय है। आयुर्वेद एवं योग रूपी जीवनशैली, इच्छाशक्ति, योग-साधना और स्वस्थ आहार आदतों से तरह-तरह की बीमारियों को रोका जा सकता है

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