कर्नाटक में जातिगत जनगणना रिपोर्ट से सियासी घमासान

नई दिल्ली। कर्नाटक में जातिगत जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक होने से पहले ही इसको लेकर सियासी तूफान उठ खड़ा हुआ है। इस जनगणना के संभावित आंकड़ों के लीक होने के बाद प्रदेश के दो प्रभावशाली समुदायों वोक्कालिगा और लिंगायतों में खलबली मची हुई है। मुख्यमंत्री सिद्दारमैया की ओर से इस रिपोर्ट को जारी करने को लेकर 17 अप्रैल को बुलाई गई विशेष कैबिनेट बैठक अब केवल एक प्रशासनिक कवायद नहीं रह गई है, बल्कि उनकी सरकार के राजनीतिक अस्तित्व और प्रभाव के लिए भी एक निर्णायक जंग बन गई है। सवाल यह है कि कांग्रेस ने कहीं बर्रे के छत्ते में तो हाथ नहीं डाल दिया है?

लीक हुई जाति जनगणना रिपोर्ट के आंकड़ों अनुसार, मुसलमानों को राज्य की सबसे बड़ी आबादी वाला समूह बताया गया है, इसके बाद अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) का नंबर आता है। वोक्कालिगा (Vokkaliga) और लिंगायत (Lingayat) जैसी पारंपरिक रूप से प्रभावशाली मानी जाने वाली जातियां जनसंख्या के लिहाज से अब पीछे दिखाई गई हैं। यह वही जातियां हैं, जिनके समर्थन पर दशकों से कर्नाटक की राजनीति का संतुलन टिका रहा है। ऐसे में इन आंकड़ों ने न केवल सत्ताधारी कांग्रेस के भीतर दरार की आशंकाएं बढ़ा दी हैं, बल्कि बीजेपी को भी हमला करने का एक नया हथियार थमा दिया है।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और राहुल गांधी जैसे नेता इस रिपोर्ट को सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम मान सकते हैं। लेकिन डिप्टी सीएम और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष , डी के शिवकुमार जो स्वयं वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं, उनके लिए यह रिपोर्ट एक सियासी सिरदर्द बन गई है। शिवकुमार जैसे नेताओं की राजनीतिक शक्ति काफी हद तक उनकी जातिगत जनसंख्या के आधार पर तय होती रही है। अगर अब यह आधार ही कमजोर पड़ता दिखे, तो उनका राजनीतिक कद भी खतरे में पड़ सकता है।

कर्नाटक के उद्योग मंत्री एमबी पाटिल, जो कि लिंगायत समुदाय से आते हैं, जाति को सिरे से नकारते हुए दावा कर चुके हैं कि उनके बिरादरी की वास्तविक आबादी 1 करोड़ से अधिक है, जबकि रिपोर्ट में इसकी तुलना में यह काफी कम बताई गई है। उनका कहना है कि समुदाय के कई लोगों ने खुद को सब-कास्ट के रूप में दर्ज कराया है, ताकि वे आरक्षण का लाभ ले सकें।

रिपोर्ट में कुल आरक्षण को मौजूदा 50% से बढ़ाकर 73.5% करने का प्रस्ताव रखा गया है। इसमें SC के लिए 15% और ST के लिए 7.5% आरक्षण शामिल है। कैटेगरी III(A) में वोक्कालिगा और दो अन्य समुदाय शामिल हैं, जिनकी आबादी 73 लाख बताई गई है और उन्हें 7% आरक्षण दिया गया है। वहीं, कैटेगरी III(B) में लिंगायत समुदाय और पांच दूसरे समुदायों को जगह दी गई है, जिनकी जनसंख्या 81.3 लाख है और उन्हें 8% आरक्षण दिया गया है।

हालांकि, इन आंकड़ों में स्पष्टता की कमी और समुदायों के विभाजन के तरीके ने आरक्षण नीति को एक और जटिल मोड़ पा ला दिया है। ये आंकड़े जहां कुछ समुदायों के लिए बहुत बड़ी राहत लेकर आए हैं, वहीं प्रभावशाली जातियों में असंतोष और राजनीतिक बेचैनी बढ़ा रहे हैं।

बीजेपी ने इस रिपोर्ट को लेकर सीधा हमला बोला है। विपक्ष के नेता आर अशोक ने इसे ‘संख्याओं की हेराफेरी’ बताते हुए कहा कि मुसलमानों को ‘बहुसंख्यक’ बताने की कोशिश सीधे-सीधे कांग्रेस पार्टी तुष्टीकरण की राजनीति का नतीजा है। बीजेपी पहले ही कांग्रेस पर मुस्लिम समुदाय को सरकारी टेंडरों में आरक्षण देने के फैसले को लेकर बवाल मचा रही थी, अब यह नया मुद्दा उसे और धार दे रहा है।

कांग्रेस के लिए यह मामला दोधारी तलवार की तरह बनता जा रहा है। एक ओर, अगर वह इस रिपोर्ट को लागू करती है, तो उसे सामाजिक न्याय के पैरोकार के रूप में समर्थन मिल सकता है, खासकर OBC, SC/ST और मुस्लिमों वर्गों से। लोकसभा में नेता विपक्ष और पार्टी सांसद राहुल गांधी की राजनीति आज इसी दिशा में बढ़ भी रही है। दूसरी ओर, अगर उसने प्रभावशाली जातियों को नाराज किया, तो अगले चुनावों में इसका भारी खामियाजा तो भुगतना ही पड़ सकता है, मौजूदा समय में भी विरोध का दबा पाना आसान नहीं होगा।

यह भी गौर करने वाली बात है कि कर्नाटक में टिकट वितरण से लेकर मंत्रिमंडल गठन और मुख्यमंत्री पद के दावेदारी भी जातिगत पृष्ठभूमि से ही तय होती है। ऐसे में अगर जातीय संतुलन बिगड़ता है, तो पार्टी में आंतरिक संघर्ष और विद्रोह की स्थिति पैदा हो सकती है।

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