हत्या में फंसी पुलिस

आदर्श चौहान

हर साल सैकड़ों बार अपने ही हाथों से पुलिसकर्मी अपनी वर्दी पर कालिख पोतते हैं। हालांकि कई बार कीचड़ दूसरों द्वारा भी उछाला जाता है। प्रायः समाज में दोनों ही प्रकार के मामले आते रहते हैं और सौ-दो सौ की जांच हमेशा ही चलती रहती है। एक पर वर्दी का रौब भारी है तो दूसरे पर वर्दी का खौफ तारी है। खुद को ऊंट व 95 फीसदी लोगों को इंसान तक न समझने वाले पुलिसकर्मी शेष पांच के पास जब पहुंचते हैं तो ऊंट को भी पता चल जाता है कि पहाड़ होता क्या है?

इसी कारण से कुछ लोग इसे रैगिंग से जोड़कर देखते हैं कि जितने गंदे तरह से जिसकी रैगिंग होगी, वह उतनी ही गंदी रैगिंग करेगा बाकियों से। यानी कि जितना नजला वह ऊपर से लेकर आया है, उससे कई गुना ज्यादा नीचे वालों पर गिराएगा। अपने समाज में वक्त-बेवक्त बड़े-बुजुर्गों द्वारा आगाह करने की परंपरा सदियों से रही है कि ऊपर वाले से डरो। इतनी मनमानी न करो कि ऊपर वाले का भी धैर्य डोल जाए और एक दिन आसमान पापियों के ऊपर फट पड़े। इसके बावजूद चकेरी थाने के तहत एक दलित परिवार पर कहर बनकर टूट पड़े पुलिस वालों पर आखिरकार ऊपर वाले का हंटर चल ही गया।

भले ही इस काम में थोड़ी देर लगी, पर बुजुर्गों की कहावत चरितार्थ हो गई कि ऊपर वाले के घर देर है, अंधेर नहीं। यह दीगर बात है कि जान की भरपाई तो ऊपर वाला भी नहीं करता है। वैसे चमत्कारों से इंकार कभी साहित्य भी नहीं कर पाया, पर अगर रोज होने लगे तो फिर उन्हें चमत्कार कौन कहेगा? कुल मिलाकर जिस मां का बेटा पुलिस वाले खा गए, वह तो अब वापस आने से रहा, बस पुलिस यह महसूस करे कि यदि यह बेटा उनमें से किसी का होता तो..। आधा दर्जन पुलिस वालों द्वारा की गई पिटाई के कारण युवक की हवालात में मौत हुई थी, उन्हें दोषी मानते हुए मुकदमा चलाने का आदेश विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी एक्ट कानपुर नगर ने दिया है।

अब आटा-दाल का भाव पुलिसकर्मियों को पता चल रहा है और गुडवर्क या पैसे के लिए छोटी-मोटी बात पर भी लोगों को जेल भेजने व अपराधियों की तरह कोर्ट के चक्कर में फंसाने वालों के भी अपराधियों की तरह जूते घिसे जा रहे हैं चक्कर लगाते-लगाते। दरअसल उन्होंने अपराध ही इतना अक्षम्य किया है। प्राथमिकी में किशनलाल पुत्र स्व. पन्नालाल निवासी ई-18 केडीए कॉलोनी रामपुरम् (श्यामनगर) थाना चकेरी कानपुर नगर ने बताया था कि दो अगस्त 2016 की शाम लगभग 8:30 बजे चकेरी थाने में तैनात स्पेशल टीम के सिपाही जनार्दन सिंह पांच-छह अन्य के साथ घर पहुंचे थे और बड़े बेटे कमल और छोटे निर्मल को पूछताछ के नाम पर सफेद प्राइवेट बोलेरो से ले गए थे। काफी पूछने पर कुछ नहीं बताया। अपने स्तर से पता करने की कोशिश की तो बदले में गालियां मिलीं। पुलिसकर्मियों ने कमल की पीट-पीट कर हत्या कर दी।

उसको इतना पीटा गया कि दो दिन बाद चार अगस्त को उसकी पुलिस अभिरक्षा में ही मौत हो गई। खानापूर्ति के लिए पुलिसकर्मियों ने बेटे के शव को हैलट भेजा, जहां उसे मृत घोषित ही किया जाना था, सो कर दिया गया। उसके बाद निर्मल को छोड़ दिया। वह कहते हैं कि फिर उस लूट व चोरी का क्या हुआ, जिसे जबरन कुबूल करवाने के लिए एक बेटे की जान लेकर ही दूसरे को छोड़ा गया। बार-बार सुबह-शाम जाकर दो दिन पुलिसकर्मियों से कहते रहे कि वे चोर नहीं हैं, बल्कि निर्दोष हैं, लेकिन हम लोगों की एक न सुनी।

दोनों बेटों को पुलिस ने कथित रूप से दो मुखबिरों विश्राम व कमल कुरील की फर्जी सूचना पर उठाया था, जो कि पहले से रंजिश रखते थे। मौत के कुछ घंटे पहले ही किसी भले आदमी से फोन (8417-1837) मांगकर कमल ने बताया था कि बहुत मार रहे हैं, पुलिस वाले कह रहे हैं कि लूट व चोरी कुबूल कर लो, नहीं तो जान से मार देंगे। उसने यह भी कहा था कि बिजली का करंट देकर जबरदस्ती लूट की घटना कुबूल कराना चाहते हैं। कुछ भी करके बचा लो। थोड़ी ही देर बाद सूचना मिली कि कमल वाल्मीकि की मौत हो गई है।

उक्त रिपोर्ट के आधार पर धारा 147, 323, 506 302 व एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत सिपाही जनार्दन प्रताप सिंह आदि नाम व पता अज्ञात के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत किया गया था। यहां एक हास्यास्पद तथ्य बताना जरूरी है कि आरोपी ही आरोपों की जांच कर रहा था, लिहाजा क्लीनचिट दे दी थी। आपत्ति के बाद जांच सीओ को दी गई। उन्होंने सभी के बयान दर्ज किए, पर मनमाने तरीके से। सभी आरोपियों को बरी करते हुए विवेचना के बाद खानापूर्ति के लिए विश्राम एवं कमल कुरील को अभियुक्त बनाया और उनके विरुद्ध धारा 147, 323, 506, 306, 342 व एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत आरोप पत्र पुलिस ने कोर्ट को प्रेषित कर दिया।

सुनवाई व गवाहों के बयानों के अवलोकन के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि कमल की मृत्यु पुलिस अभिरक्षा में चौकी अहिरवां में हुई थी। इससे पहले गवाह नंबर-एक किशन लाल द्वारा न्यायालय में बयान दर्ज कराया गया कि उसके लड़के कमल व निर्मल को छह-सात पुलिस वाले गाड़ी में घर से डालकर ले गए थे। परिजन कृष्णा नगर चौकी पहुंचे तो दरोगा संजय शुक्ला व छोटा लड़का निर्मल मिला था। संजय शुक्ला ने बताया कि कमल को कुछ सिपाही पूछताछ के लिए ले गए हैं। चकेरी थाने पहुंचे तो कमल वहां भी नहीं मिला।

थाना प्रभारी चकेरी जीवाराम व संजय शुक्ला व कुछ सिपाही मिले। बेटे के बारे में पूछने पर कहा कि उसने लूट व चोरी की है, पूछताछ चल रही है। सफाई पेश करने पर गाली देकर भगा दिया। चार अगस्त की भोर में तीन बजे पड़ोस की नंदिनी आई कि अहिरवां चौकी से कमल का फोन आया है, बात कीजिए, पर फोन कट गया था। सुबह छह बजे फिर फोन आया तो नंदिनी ने कमल की मां मीना से बात कराई। उसने बताया था कि पुलिस वाले बहुत मार रहे हैं तथा बिजली का करंट लगाकर जबरदस्ती लूट की घटना कुबूल करा रहे हैं। हमको बचा लो। बयान में यह भी कहा कि हमें थाने में घुसने नहीं दिया गया। जीवाराम व चौकी इंचार्ज संजय से मिले।

जीवाराम ने तीन अगस्त को कहा था कि तुम लोग भाग जाओ यहां से और दोबारा दिखाई न पड़ना। उससे पूछताछ चल रही है। गवाह नंबर दो मीना द्वारा अपने साक्ष्य में कथन किया गया कि कमल-निर्मल को पांच-छह पुलिस वाले घर से उठा ले गए थे, जो कि जनार्दन प्रताप सिंह के साथ आए थे। हम लोग पहले कृष्णानगर चौकी गए, जहां दो-तीन पुलिस वाले बैठे थे, जब निर्मल से बात करनी चाही तो दरोगा संजय शुक्ला व सिपाही अखिलेश गौड़ हम लोगों को डांटने लगे और भगा दिया। इतने में ही दरोगा जीवाराम आ गए। कमल का पता नहीं चल रहा था।

उसके बारे में पूछने पर जीवा ने बताया कि अहिरवां चौकी में पूछताछ चल रही है, उसने कई चोरी व राहजनी की बात स्वीकार की है। उसे निर्दोष बताने पर थानाध्यक्ष जीवाराम बहुत गुस्सा गए और गाली-गलौज करते हुए थाने से भगा दिया। कमल को खाना देने अहिरवां चौकी गई तो वह कराह रहा था, रो रहा था और बचाने की गुहार लगा रहा था और पुलिसवालों ने खाना तक नहीं दिया था। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि संबंधित पुलिस द्वारा वादी मुकदमा के लड़के कमल व निर्मल को पकड़कर ले जाया गया था। बाद में कमल की चौकी अहिरवां में ही पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु हो गई। यहां यह उल्लेखनीय है कि स्पष्ट रूप से यह साक्ष्य में आया है कि कमल के साथ निर्मल को भी पुलिस ले गई थी। कमल को अहिरवां पुलिस चौकी तथा निर्मल को अहिरवां चौकी न ले जाकर कृष्णानगर चौकी ले गई थी।

इस संबंध में निर्मल का भी साक्ष्य महत्वपूर्ण हो जाता है, जिसने कहा है कि दो अगस्त 2016 को हम दोनों को सफेद रंग की बोलेरो में सादी वर्दी में जनार्दन प्रताप सिंह, राजीव यादव, अखिलेश आदि ले गए थे। इनके अलावा तीन-चार अन्य पुलिस वाले भी थे, जिनके नाम नहीं जानता। वे सीधे कृष्णानगर चौकी पहुंचे और मां-बहन की गंदी गंदी गाली देते हुए मारने लगे। बाद में कमल को लेकर चले गए। शराब के नशे में संजय शुक्ला ने डंडे और पट्टे से बहुत मारा था, फिर कमल का कोई पता नहीं लगा।

साक्षी ने यह भी कथन किया है कि दरोगा जीवाराम ने लात-घूसों से मारा था। कह रहे थे कि लूट कुबूल कर लो। नहीं तो जैसे तुम्हारे भाई को मारा है, वैसे तुमको भी मार देंगे। दूसरे दिन योगेंद्र सोलंकी ने दरोगा जीवाराम और संजय शुक्ला से कहा कि इतना मारा कि मर गया, फिर भी लूट कुबूल नहीं की। उसके बाद सभी ने चौकी से हमें भगा दिया। उपलब्ध साक्ष्य से यह परिलक्षित हो रहा है कि मृतक कमल की मृत्यु अहिरवां पुलिस चौकी में पुलिस अभिरक्षा में हुई है। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि पांच-सात पुलिस वाले ही घर से ले गए थे। प्रताड़ना देने वालों के नाम जीवाराम, अखिलेश, संजय शुक्ला, राजीव, योगेंद्र सिंह सोलंकी और जनार्दन सभी के बयान में उजागर हुए हैं।

उक्त की कार्रवाई के ही कारण उसने हत्या / आत्महत्या की है। यह बाद का विषय है कि उसे मारा गया या मर गया, पर प्रथमदृष्टया उक्त की संलिप्तता परिलक्षित हो रही है। मीना व नंदिनी सहित सभी गवाहों ने भी बार-बार उक्त बातों पर ही जोर दिया है। उनके बयानों में भी साम्य है। ऐसे में पुलिस द्वारा हासिल किया गया नंदिनी का शपथ पत्र, जिसमें कहा गया है कि उसकी न तो कमल से बात हुई और न ही उसने मीना या किसी से बात कराई। कॉल डिटेल भी मिल गई है। यह बरगलाने का प्रयास लगता है कि नंदिनी के यहां कोई प्लंबर आया था, वह फोन करता था। ऐसी कोई कॉल डिटेल नहीं मिली है, जिसे तथ्य भ्रामक प्रतीत होता है।

साक्ष्य के विश्लेषण के समय इस तथ्य को भी ध्यान में रखा गया है कि सभी अभियुक्तगण पुलिस वाले हैं और नंदिनी एक घरेलू महिला। इसकी विवेचना न करके उससे शपथ पत्र लेना चौंकाता है। उक्त सभी पुलिसवालों की संलिप्तता साबित हो रही है तथा जिन अभियुक्तगण का विचारण चल रहा है, उनके साथ ही साथ स्पष्ट रूप से इनके द्वारा भी अपराध कारित किया जाना प्रतीत हो रहा है। यह तथ्य पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से परिलक्षित हो रहा है। ऐसी दशा में इन अभियुक्तों को भी विचारण के लिए तलब किया जाना न्यायोचित प्रतीत हो रहा है।

अदालत ने कहा कि संपूर्ण विवेचना के आधार पर मामले के तथ्य, परिस्थितियों एवं न्याय की मंशा को दृष्टिगत रखते हुए अभियुक्तगण एसओ जीवाराम, चौकी इंचार्ज संजय शुक्ला, चौकी इंचार्ज योगेंद्र सिंह सोलंकी, राजीव यादव, जनार्दन प्रताप सिंह व अखिलेश को धारा-147, 323, 506, 306, 342 व एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत मामले के विचारण के लिए आहुत किया जाए। इससे परिजन में खुशी की लहर तो जरूर दौड़ गई थी, पर धारा 302 का कहीं उल्लेख न होना परेशान करता है। इसके लिए परिजन फिर अदालत के चक्कर लगा रहे हैं। कई साल से केस लड़ते-लड़ते माता-पिता जर्जर हो चुके हैं, नजर भी धुंधली हो रही है तो न्याय की उम्मीद भी क्योंकि केस कई-कई साल चलते हैं।

परिजन जहां न्याय के लिए बेहाल हैं बीते कई साल से, वहीं आरोपित पुलिसकर्मियों ने अभी तक जमानत तक नहीं कराई है और न ही हाजिर हुए हैं। रेमेडी के लिए आरोपी हाईकोर्ट गए थे, वहां से कोई राहत नहीं मिली है। किसी का जवान बेटा चला गया और अभियोजन सहित हर स्तर से खेल चल रहा है। आमतौर पर जब नौकरी पेशा किसी केस में फंसता है तो उसका प्रयास यही होता है कि सौ-50 देकर मामले को रिटायरमेंट तक खींचते रहो। अकेला कमाने वाला निर्मल भी परेशान है। अंधेरा अब भी कायम है और इस रात की सुबह कहीं आसपास नहीं दिख रही है।

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