रूसी मैगजीन कॉम्पेनिया के कवर पर पीएम मोदी की तस्वीर नजर आई। व्लादीवोस्तक में आयोजित ईस्टर्म इकोनॉमिक फोरम में इसकी खूब चर्चा हुई। इस मैगजीन में पीएम मोदी की जीवनयात्रा को दर्शाते हुए एक एक पूरी मैगजीन की एडिशन उनके नाम कर दी।
जिसमें बताया गया कि कैसे नरेंद्र मोदी ने गुजरात से अपना सफर शुरू किया और फिर वो देश के प्रधानमंत्री बन गए। इसमें पीएम मोदी का अनूठा मार्ग और राष्ट्रवाद व प्रगति शीर्षक वाले लेख में पश्चिमी दबाव के आगे झुकने से इनकार करने के लिए भारतीय नेता की खूब तारीफ की गई है। इस लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजराती टाइगर और रूस का मित्र बताया गया है। इसमें पीएम मोदी की खूब तारीफ की गई है।
बताया गया है कि इस मल्टीपोरल और मल्टीलैटरल दुनिया में उन्होंने पश्चिमी दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया। इसी वजह से इस मैगजीन ने अपने कवर पेज पर जगह दी है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच कई समानताएं बताई गई हैं।
बताया गया है कि दोनों ही अपने देशों को मूल सभ्यताएं कहते हैं। जिन्हें विकास के लिए एक विशेष मार्ग का अधिकार है। दोनों ही पश्चिम की आलोचना कर एक बहुध्रुविय दुनिया की वकालत करते हैं। साथ ही वैश्विकरण के संरक्षण का समर्थन करते हैं। दोनों ही राजनेता दक्षिणपंथी उदारवादी रूढिवादी हैं जो बाजार क्षमता के साधनों का उपयोग करके अपने लोगों को पारंपरिक मूल्यों की ओर मोड़ते हैं।
लेख में ये भी कहा गया कि मोदी पुतिन की तरह की वाशिंगटन के विरोधियों चाहे वो ईरान हो या म्यांमार के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने से नहीं डरते। इसके अलावा दोनों ही नेताओं के बीच साझा किए गए बेहतरीन तालमेल पर प्रकाश डाला गया है।
लेख में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि मोदी ने साल 2014 से छह बार रूस का दौरा किया है। इसी दौरान उनकी पुतिन से 22 बार बात किया गया है। लेख में मोदी की मास्को यात्रा को पुतिन के लिए पूर्ण और बिना शर्त कूटनीतिक जीत” बताया गया है, क्योंकि यह नाटो सहयोगियों के मुंह पर तमाचा था, जो रूस को अलग-थलग करने में सफल होने का दावा करते हैं।
कवर स्टोरी ने रूस-भारत रक्षा साझेदारी की निरन्तर मजबूती के बारे में आशा व्यक्त की गई है तथा कहा गया है कि ब्रह्मोस मिसाइल के संयुक्त विकास के साथ जिस तरह से चीजें आगे बढ़ रही हैं, उससे भारत काफी खुश है।
लेख में कहा गया है कि रूस के सैन्य-औद्योगिक परिसर से जुड़े विदेशी बैंकों के खिलाफ अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिबंधों के खतरे के बावजूद, नई दिल्ली और मास्को के बीच रक्षा सहयोग आने वाले वर्षों में बढ़ता रहेगा।