अमेरिका, जो लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया भारत से अलग और अधिक जटिल होती है। आगामी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच सीधी टक्कर होगी। ट्रंप, जो पिछले चुनाव में हार गए थे, अब पुनः चुनावी मैदान में हैं, जबकि कमला हैरिस मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन की नीतियों को आगे बढ़ाना चाहती हैं।
5 नवंबर को होने वाले इस चुनाव पर दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि अमेरिका का राष्ट्रपति केवल देश में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव रखता है। वहां की चुनावी प्रक्रिया में प्राथमिक चुनाव, कॉकस, और इलेक्टोरल कॉलेज जैसी कई परतें होती हैं, जो इसे भारत की प्रक्रिया से अलग बनाती हैं। इस चुनाव का परिणाम न केवल अमेरिका, बल्कि वैश्विक राजनीति पर भी असर डालने वाला है।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों का आयोजन दो प्रमुख पार्टियों—रिपब्लिकन और डेमोक्रेट—द्वारा किया जाता है। अमेरिकी संविधान के आर्टिकल 2 के सेक्शन 1 में राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारों की शर्तें स्पष्ट की गई हैं:
- पैदाइशी अमेरिकी होना: चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति का अमेरिका में जन्मा होना आवश्यक है।
- उम्र: उम्मीदवार की उम्र कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए।
- निवास: उसे कम से कम 14 वर्षों तक अमेरिका में रहना चाहिए।
बैलेट और वोटिंग प्रक्रिया
अमेरिका में बैलेट का उपयोग 18वीं सदी से हो रहा है, और इसे चुनाव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। ई-वोटिंग का एकमात्र तरीका ईमेल या फैक्स के माध्यम से वोट करना है, जिसमें मतदाता को बैलेट फॉर्म भेजा जाता है।
2000 का चुनाव और ‘हैंगिंग चैड्स’
साल 2000 का चुनाव जॉर्ज डब्ल्यू बुश और अल गोर के बीच हुआ था, जो विवादों में रहा। उस चुनाव में पंच-कार्ड वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल किया गया, जिसमें मतदाता कागज पर मुक्का मारकर अपना चुनाव करते थे। इस प्रक्रिया में ‘हैंगिंग चैड्स’ समस्या उत्पन्न हुई, जिससे मतगणना में अराजकता फैल गई। अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोरिडा में पुनर्मतगणना को रोक दिया, और बुश को विजेता घोषित किया।
इसके बाद, 2002 में हेल्प अमेरिका वोट एक्ट (HAVA) पारित किया गया, जिसमें नए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग उपकरण खरीदने के लिए अरबों डॉलर का बजट निर्धारित किया गया। हालांकि, पेपरलेस वोटिंग में बड़े बदलाव नहीं आए, और पारंपरिक पेपर बैलेट का महत्व बना रहा।