पांडवों का वनवास और अज्ञातवास महाभारत की एक महत्वपूर्ण कथा है। जब पांडवों ने कौरवों के साथ चौसर का खेल खेला और हार गए, तब उन्हें 12 वर्षों का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास दिया गया। इस वनवास के दौरान, पांडवों ने अपनी मुश्किलों का सामना किया और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए कई उपाय किए।
डूंगरपुर जिले के छापी गांव में पांडवों ने एक महायज्ञ किया, जिसका उद्देश्य भगवान शिव को प्रसन्न करना और कौरवों को हराने के लिए शक्ति प्राप्त करना था। यह यज्ञ न केवल धार्मिक बल्कि सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसके माध्यम से पांडवों ने अपने बल और समर्थन को मजबूत किया। यह कथा भारतीय संस्कृति और इतिहास में गहराई से बसी हुई है, और आज भी लोग इस क्षेत्र में पांडवों के नाम से जुड़े स्थलों की यात्रा करते हैं।
पांडवों का यज्ञ छापी गांव में भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जब पांडव वनवास के दौरान वहां रुके, तब उन्होंने युद्ध में विजय के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से यज्ञ किया। इस यज्ञ के दौरान उन्होंने शिवलिंग, नंदी और हवन कुंड बनाए, जिनके अवशेष आज भी मौजूद हैं।
पांडवों की धुनी, जो आज भी प्रज्वल्लित है, इस बात का प्रमाण है कि उस समय की धार्मिक परंपराएं आज भी जीवित हैं। यहां पाए गए दो शिवलिंग, हवन कुंड और मूर्तियों के अवशेष हजारों साल पुराने हैं, जो उस युग की भव्यता को दर्शाते हैं।
स्थानीय लोग इस धुनी का नियमित रख-रखाव करते हैं और इसे पांडवों की धुनी के रूप में पूजा करते हैं। उनके अनुसार, यह धुनी वैसी ही है जैसी उस समय थी, भले ही समय के कारण कुछ हिस्से क्षतिग्रस्त हुए हों। यह स्थान न केवल पांडवों की कहानी को जीवित रखता है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी महत्वपूर्ण है।